झारखंड में रांची से सटे जिले रामगढ़ के अरगडा गांव में मेरी मुलाकात आज आदिवासी दिवस पर विष्णु मुंडा से हुई। हम दोनों ने साथ में चाय पी और समोसे खाए। आदिवासी समाज के उत्थान के लिए किए जा रहे सरकारी प्रयासों से वो नाखुश नजर आए। विष्णु मुंडा ने बातों ही बातों में कृषि उत्पादन पर भी चर्चा की और सांप, बिच्छू के काटने पर किए जाने वाले देशी नुस्खे भी बताए। उन्होंने आदिवासी दिवस की जानकारी दिए जाने पर इसे सरकारी खानापूर्ति बताया।
बताते चलें कि भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम हिस्सों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं, जिनका रहन-सहन, खानपान, रीति-रिवाज वगैरह आम लोगों से अलग है। समाज की मुख्यधारा से कटे होने के कारण ये पिछड़ गए हैं। इस कारण भारत समेत तमाम देशों में इनके उत्थान के लिए, इन्हें बढ़ावा देने और इनके अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए कई तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं। इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पहली बार 1994 को अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी वर्ष घोषित किया था। इसके बाद से हर साल ये दिन 9 अगस्त को मनाया जाता है।
विश्व आदिवासी दिवस मनाए जाने में अमरीका के आदिवासियों का बड़ा योगदान है। अमेरिका में 12 अक्टूबर को हर साल कोलंबस दिवस मनाया जाता है। वहां के आदिवासियों का मानना था कि कोलंबस उस उपनिवेशी शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसके लिए बड़े पैमाने पर जनसंहार हुआ था। इसलिए कोलंबस दिवस की जगह पर आदिवासी दिवस मनाया जाना चाहिए। इसके लिए 1977 में जेनेवा में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस मनाने की मांग की गई। 1989 से आदिवासी समुदाय के लोगों ने इस दिन को सेलिब्रेट करना शुरू कर दिया। इसके बाद हर साल 12 अक्टूबर को कोलंबस दिवस की जगह आदिवासी दिवस मनाने लगे। इसके बाद यूनाइटेड नेशन ने साल 1994 में आधिकारिक रूप से आदिवासी दिवस 9 अगस्त को मनाने का ऐलान किया।
भारत की बात करें तो यहां मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार आदि तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं। मध्य प्रदेश में 46 आदिवासी जनजातियां निवास करती हैं। एमपी की कुल जनसंख्या के 21 फीसदी लोग आदिवासी समुदाय के हैं। वहीं झारखंड की कुल आबादी का करीब 28 फीसदी आदिवासी समाज के लोग हैं। इसके अलावा भी तमाम राज्यों में आदिवासी समुदाय के लोग रहते हैं।
मध्य प्रदेश में गोंड, भील और ओरोन, कोरकू, सहरिया और बैगा जनजाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। गोंड एशिया का सबसे बड़ा आदिवासी ग्रुप है, जिनकी संख्या 30 लाख से अधिक है। मध्य प्रदेश के अलावा गोंड जनजाति के लोग महाराष्ट्र, बिहार, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में भी निवास करते हैं। वहीं में संथाल, बंजारा, बिहोर, चेरो, गोंड, हो, खोंड, लोहरा, माई पहरिया, मुंडा, ओरांव आदि आदिवासी समूह के लोग रहते हैं।( काशी के कलमकार अनूप कर्णवाल की कलम से)
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