बनारस में नागपंचमी: जब पार्षदों ने दूध पिया.
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..... जहां तक याद आता है संभवतः 1998 का वर्ष था. मैं वाराणसी नगर निगम में अपर नगर आयुक्त था. भाजपा की सरोज सिंह जी मेयर थीं. बाबा हरदेव सिंह जी नगर आयुक्त होकर आ चुके थे. मैं रोज की तरह अपने कार्यालय पहुंचा. के डी सिंह मिले. केडी सिंह बड़े प्रभावी उप नगर अधिकारी हुआ करते थे. बातों में ही बताया कि आज नागपंचमी है. किसी अखाड़े से उनके चेले का न्योता आया है, किसी कुश्ती प्रतियोगिता के उद्घाटन के लिए.
' बड़ा चिरौरी कइले ह कि कैप्टेन साहब के जरूर लेहले अइहीं.'
' चला, चलल जाईं. का करेके हौ सरवा इहाँ दफ्तरे में.' मैंने कहा. उस दिन कहीं और का कोई भ्रमण कार्यक्रम नहीं था..न ही कहीं अतिक्रमण अभियान लगा था.
'नागपंचमी' ..फिर अचानक एक विचार कौंधा. केडी सिंह जी, जरा वो बादाम वाला दूध एक पचीस गिलास पैक मंगवाइये. बनारस में लहुराबीर के पास की किसी उच्चस्तरीय मिठाई वाले की दुकान से कभी कभी दूध मंगवाया जाता था. वो बरामदे में निकले, कोई ठेकेदार टाइप का चेला दिख गया.
'ए चल जा, फलनवां के इहां से तीस-पैतीस पैक गिलास बदाम दूध लेहले अइह.' खैर करीब आधे घंटे में दूध के गिलास आकर बगल की मेज पर सज गये. हमारा कमरा नगर निगम के पार्षदों विशेष कर विरोध पक्ष के सपाई व असंतुष्ट भाजपाई सदस्यों का अड्डा हुआ करता था. बाबा ने मुझे ₹ 25000/ की वित्तीय पावर व तृतीय श्रेणी तक के कर्मचारियों के स्थानांतरण का अधिकार डेलीगेट कर रखा था. बाबा के यहां जाने की हिम्मत भी सब में नहीं थी तो अक्सर पार्षदों के छोटे मोटे काम मेरे यहां से ही सरलता से हो जाते थे. फिर वहां जाने की क्या जरूरत ? दो एक पार्षदगण आये. महेंद्र पाण्डे जो सपा के जुझारू पार्षद थे, वे आये. मैंने कहा 'आज पार्षद लोग नहीं दिख रहे हैं पाण्डे जी, कहां चलि गइलन सब ?'
यहीं है सर. कहां जाएंगे. अबहियै बुलवाई ला. उन्होंने खबर कर दिया तो और जो पार्षद नगरनिगम में कहीं न कहीं अपनी फाइलें चला रहे थे या कहीं बैठे थे वे सब धड़ाधड़ आने लगे. किसी ने कहा सर, चाय समोसा हो जाये.
केडी सिंह ने कहा समोसा भी आ रहा है. ये दूध लीजिए आप सब. वाह केडी भइया, चलीं कुछ खर्चा त कइलीं आप. वाह वाह ! फिर गिलास बंटे. सब हमारे पार्षदगण बड़े मनोयोग से दूध पीने लगे. केडी सिंह ने दूसरा चेला कैंटीन से समोसे के लिए दौड़ाया. कुछ पार्षद और भी आये, दूध बंट रहा है. सुन कर समाचार खोजते पत्रकारगण भी आये. लीजिए लीजिए, आप भी लीजिए.
क्या सर कोई बर्थ डे है ?
किसका ? आपका ? बाबा का ?
अरे सर, पता होता तो गुलदस्ता ले आते.
तो जानना न चाहिए आप लोगों को, किसी ने कहा.
अपर साहब का बर्थडे जानते ही नहीं है, बस फाइल पर दस्तखत कराना आता है आप लोगों को.
आपसी नोकझोंक भी चल रही थी. लोग अंदाज लगाते रहे कि मौका क्या है. अरे पत्रकारों को भी दीजिए. किसी ने बताया डिप्टी मेयर साहब आ गये हैं. नीचे अपने कक्ष में केडी सिंह को बुला रहे हैं. केडी सिंह ने चार गिलास दूध वहां भी भिजवाया. डिप्टी मेयर साहब, पं देवदत्त तिवारी जी थे. लम्बी सफेद दाढ़ी, सफेद धोती-कुर्ता, मस्तक पर टीका, लम्बा गेरुआ गमछा, कर्कश ध्वनि, सदन संचालन के माहिर, वार्ता में अद्वितीय. फिर समोसा भी आया और कुछ और दूध भी आया. पत्रकारों के साथ आए एक फोटोग्राफर से मैंने कहा कि अरे यार, देखो हम लोगों में इतना सौहार्द है आप फोटो-वोटो तो खीचो. ऐसा लग रहा था कि जैसे ये बाबा विश्वनाथ के ये बड़े बड़े फन वाले चेले फुफकारना छोड़ कर शांति से दूध पी रहे हों.
'सर मजा आ गया.' सामान्यतः सब ने कहा. अब तक 30-35 पार्षदगण दुग्धपान कर चुके थे. कुछ धन्यवाद देकर निकल रहे थे. मनोज 'पप्पू' ने पूंछा,
'सर, ये ठीक नहीं है. आप बता नहीं रहे हैं कि क्या अवसर है ?'
'अरे कुछ खास नहीं यार, बस आज 'नागपंचमी' थी तो ये विचार बना कि आप सब को दूध पिलाया जाए.'
अरे ... ! क्षण भर के लिए जैसे सब शाक में आ गये फिर उसके बाद वो जबरदस्त ठहाका लगा कि पूंछो ही मत. अरे बाप रे ! महेंदर पाड़े और मनोज पप्पू तो हंसते जमीन पर बैठ गये. एकाध तो दोनों हाथ सर के ऊपर जोड़ कर खड़े हो गये. 'धन्य हो प्रभू !' जो अभी पी ही रहे थे उनसे न पीते बने न उगलते. हंसी की बौछार तो जैसे खतम होने का नाम ही नहीं ले रही थी. हंसते हंसते लोग दोहरे हुए जा रहे थे. कुछ की आंख से तो पानी आने लगा. बाबा हरदेव सिंह जी ने बगल से अपने स्टेनो को भेज कर पुंछवाया कि देखो, क्यों शोर मचा हुआ है. कुछ हो तो नहीं गया ? वह पता कर वापस गया तो वहां वह बोल ही नहीं पा रहा था, बेसाख्ता हंसता रहा.
किसी ने कहा कि हम लोग नाग तो हैं ही, इसमें कहां शक है लेकिन कैप्टेन साहब ने आज सार्टिफिकेट दे दिया. फिर कुछ लोग यह गजब का समाचार लेकर हंसते हुए बाबा हरदेव जी के कक्ष में, कुछ नीचे डिप्टी मेयर को बताने चले गये. सारे नगर निगम में खबर फैल गई. सब जगह वही हाल वही बात. कर्मचारियों को मजा आ गया.नियाज मंजू, कल्लू भाई तीन चार पार्षदगण और आये, हंसते रहे. फिर बोले कि हमको भी दूध चाहिए. जरूर जरूर ... उन्हें भी दिया गया. दो बार और मंगवाना पड़ा. पत्रकारों को भी जिद करके दूध पिलवाया गया, देखिये ये आपका भी त्यौहार है.
केडी सिंह डिप्टी मेयर से मिलकर आ गये थे. उनसे डिप्टी मेयर ने डपट कर कहा कि क्या मैं नाग हूं जो दूध भेजा था अपर साहब ने ? हमलोग तो पी भी गये. केडी सिंह ने जवाब दिया कि अरे सर, आपके दूध पिये बगैर तो नापंचमी जग ही नहीं सकती. ठहाके पर ठहाके...!
...... दोपहर बाद कुश्ती उद्घाटन में हमलोग पंहुचे. छोटा कैम्पस बड़ी टाइट भीड़. उद्घाटन से पूर्व एनाउंसर ने पब्लिक को हम सबका परिचय दिया. क्षेत्रीय पार्षद भी थे.उनका भी परिचय दिया. साथ ही यह भी कहा कि आज नागपंचमी है,नागों को दूध पिलाने का दिन है. हमारे पार्षद जी आज नगर निगम से बाकी पार्षदों के साथ दूध पीकर आये हैं. भीड़ हंसने लगी. पार्षदजी भी खिसियानी हंसी हंसने लगे. लो ! यहां भी खबर आ गई, मैंने कहा. उद्घोषक ने कहा, अरे साहब, नगर निगम तो बनारस की राजधानी है. वहां से बात तो हवा में उड़ आती है !
दूसरे दिन सभी अखबारों में छपा, "अपर ने नागपंचमी पर पार्षदों को दूध पिलाया". सम्मान तो पत्रकारों का भी हुआ पर अपनी बात वे गोल कर गये. दोपहर बाद कुछ पार्षदगण आये.
'बड़ी सांसत भइल बा सर.'
काहे ? का भयल ? मैने पूंछा.
आज त सगरौ बनारस इहै समाचार पढ़ले बा. हम्मन के देखतै जे के देखा,ऊ ताली पिटि के हंसत बा ... आवा नेता जी, दूधवा पियले जा.' फिर हंसी का अगला दौरा.
'सही कहत हईं. दुइ एक दिन त घरे से बहरे निकरे के लायक नाहीं बा.' किसी पार्षद ने कहा.
उधर डिप्टी मेयर तिवारी जी गले में गेरुआ पटका संभाले मेयर मैडम के चैम्बर में कह रहे थे, 'जी, ये अपर आर. विक्रम सिंह कैसा अधिकारी है ? कहां से ले आईं हैं ? ऐसा तमाचा मारा है कि गाल भी सहलाते नहीं बन रहा है.' वे भाषा मुहावरों के बड़े धनी थे. मेयर खिलखिला कर हंसी. हंसती रहीं.
कितने साल बीत गये. बहुत कुछ बदल गया. फिर कभी नगर निगम में जाना नहीं हुआ. पुराने पार्षदों में अब बहुत कम लोग होंगे. विजयपाल से बात होती है. भारत भूषण से भी कभी कभी बात हो जाती है. अमरदेव हैं तो लेकिन बहुत दिन से बात नहीं हुई. महेन्दर पांड़े, मनोज पप्पू अब दुनिया में नहीं रहे. पं देवदत्त तिवारी जी व स्नेहमयी सरोज सिंह जी भी चिरनिद्रा में चली गयीं. पिछले साल केडी सिंह जी भी चले गये. और भी बहुत से विदा हो गये होंगे. बशीर बद्र का एक शेर है :
'मैं तुम्हें भूल जाऊंगा इक दिन,
वक्त सब कुछ बदल चुका होगा.'
आज नागपंचमी है तो बनारस की भूली हुई सी आनंदित करने वाली अपने लोगों की यह दास्तान याद आ गई. अंत में तो बस कहानियां ही बची रह जाती हैं.
आप सब को नागपंचमी की शुभ कामनाएं .... ! @मुख्य नगर अधिकारी पद पर तैनात रहे कैप्टर आर विक्रम सिंह की कलम से
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