पति, पत्नी, वो और हत्या की सनसनीखेज कहानी के विलेन को तो सब जानते है। मधुमिता की बहन के आजतक जारी संघर्ष से भी लोग परिचित हैं। लेकिन कुछ कैरेक्टर और है, जिसके बगैर ये कहानी अधूरी है। उन किरदारों की चर्चा नहीं करना चाहता, जो पत्रकार तो थे लेकिन अमरमणि के मददगार थे। लखनऊ के क्राइम रिपोर्टर्स की उस दौर में तूती बोलती थी। ये रिपोर्टर्स ही मधुमिता के गर्भवती होने के मुद्दे को हाइलाइट कर पाए और सज़ा हुई। अगर उसके गर्भवती होने की बात सामने नही आती तो आज शायद अमरमणि देश या प्रदेश का बड़ा नेता या मंत्री होता। इनमें से कुछ क्राइम रिपोर्टर्स का नाम बता दूँ। उस समय मनीष मिश्रा दैनिक जागरण में, आनंद सिन्हा अमर उजाला, भूपेंद्र पांडेय हिंदुस्तान टाइम्स और परवेज़ इक़बाल सिद्दीकी टाइम्स ऑफ इंडिया में थे।
बात शुरू करते हैं मधुमिता की हत्या के अगले दिन से। उस दिन अमरमणि ने हजरतगंज के लॉरेंस टेरेस कॉलोनी स्थित अपने सरकारी आवास पर एक प्रेस कांफ्रेंस बुलाई थी। ये स्थापित करने के लिए कि उसका मधुमिता से कुछ लेना-देना नहीं है। नेता की प्रेसवार्ता थी, ज़ाहिर है कवर करने के लिए राजनीतिक संवाददाता पहुंचे थे। इनके बीच दो क्राइम रिपोर्टर मनीष मिश्रा और आनंद सिन्हा भी मौजूद थे। धुरंधर पॉलिटिकल रिपोर्टर्स की भीड़ में दोनों किसी कोने में बैठ गए।
अमरमणि पहले से ही तैयार एक प्रेस नोट लाया था। कहा जाता है कि इसे कुछ पत्रकारों ने ही तैयार करवाया था। अमरमणि ने पढ़ना शुरू किया- जो लोग मधुमिता से मेरे संबंध जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, वह पहले यह बताएं कि उनके अपने बच्चे किसके हैं? उनके खुद के बच्चे टेस्टट्यूब बेबी हैं। (इशारा दिवंगत सपा नेता अमर सिंह की तरफ था।) प्रेस नोट पढ़ने के साथ ही प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म। कोई सवाल नही आया। साइड की कुर्सी से एक आवाज़ आयी। मनीष मिश्रा का सवाल - 'त्रिपाठी जी आप मधुमिता को जानते थे या नहीं।' अमरमणि थोड़ा सकपकाया। पूछा, 'आपका परिचय?' जवाब, 'मैं दैनिक जागरण से हूँ।' जवाब के जवाब में अमरमणि ने जागरण के कई धुरंधर पत्रकारों के नाम गिना दिये। प्रतिउत्तर में मनीष ने कहा - 'विनोद शुक्ला जी भी हैं, वह हमारे संपादक हैं।' बात तल्ख होती जा रही थी। अमरमणि सवालों के जवाब से बच रहा था। मनीष का फिर सवाल - 'त्रिपाठी जी मधुमिता को जानते थे या नहीं?' वह बोला, 'हां जानता था, जैसे मैं नीरज, सोम ठाकुर, अशोक चक्रधर को जानता हूं। वैसे ही मैं मधुमिता को जानता था। वह गोरखपुर में कवि सम्मेलन करने आई थी। बस इतना ही संबंध था।' अगला सवाल - 'मधुमिता से आपकी आखिरी मुलाकात कब हुई?' 'हाल में नहीं।' अमरमणि का जवाब। फिर सवाल -
'हाल का मतलब? दो-चार दिन, दो-चार हफ्ते या 4-6 महीने?' (क्योंकि मधुमिता 6-7 महीने की गर्भवती थी)। इस सवाल ने अमरमणि को गुस्सा दिला दिया। बौखलाहट चेहरे पर साफ नज़र आ रही थी। बोला- 'तुम तो ऐसे पूछ रहे हो, जैसे पुलिस वाले हो।'
मनीष ने प्रेस नोट टेबल पर रखा। कहा - 'सवाल पूछना से आपको बुरा लग रहा है तो मैं जा रहा हूं, त्रिपाठी जी मैं प्रेसनोट लेने नहीं आया था, आप इसे ऑफिस भिजवा दीजिएगा।' अमरमणि ने मनीष के कंधे पर हाथ रखा। बोला - 'आप तो नाराज हो गए। आइए आपसे अलग से बात कर लेता हूं। आप कुछ खास नाराज दिख रहे हैं। लगता है किसी ने समझा कर भेजा है।' अमरमणि मनीष और आनंद को बात करते-करते घर के अंदर ले गए। समझाने की कोशिश की लेकिन उन दोनों पर खबर की धुन सवार थी।
प्रेस कॉन्फ्रेंस से निकल कर दोनों पत्रकारों ने खबरें लिखी, वो अमरमणि को लीडर से विलेन बनाने के लिए काफी थी। ऐसी ही खबरें भूपेंद्र पांडेय और परवेज़ इक़बाल सिद्दीकी ने भी लिखी। तकरीबन सभी अखबारों की (17 मई से 17 जून 2003 तक सीबीसीआईडी से सीबीआई जांच तक) डे टू डे रिपोर्टिंग से अमरमणि पर अपराधी होने का ठप्पा पुख्ता होता जा रहा था।
ये लखनऊ के अखबारों की रिपोर्टिंग ही थी कि जिस कारण मधुमिता के शव को पोस्टमार्टम के बाद लखीमपुर के रास्ते से दोबारा लखनऊ लाया गया था। यहाँ के क्राइम रिपोर्टरों की तारीफ सीबीआई के तमाम अफसरों ने की। लखनऊ की क्राइम रिपोर्टिंग की हनक कायम हुई, सीबीआई के अफसर मीडिया से खुलकर बात कर रहे थे। मधुमिता हत्याकांड में अमरमणि की गिरफ्तारी के बाद जब उसे डालीबाग स्थित वीआईपी गेस्ट हाउस लाया गया तो देर रात मनीष मिश्रा, भूपेंद्र पांडे, आनंद सिन्हा और परवेज इक़बाल को सीबीआई अफसर ने कहा कि आओ तुम्हें अमरमणि से मिलवाते हैं। इन लोगों को लगा कि जिसे सलाखों के पीछे होना चाहिए था, वो तो गेस्ट हाउस में है। इन सबने अफसरों से कहा भी कि यहां बेडरूम में रखने से क्या फायदा? लेकिन जब ये कमरे में घुसे तो वहाँ बेड नही था। कारपेट नुची हुई थी और एसी हटा दिया गया था। अमरमणि एक कंबल बिछाए और दूसरा कंबल ओढ़कर जमीन पर लेटा हुए थे। पत्रकारों को देखकर बोला - आओ देखो, मजे से आराम कर रहा हूं।
इन पत्रकारों के चलते अमरमणि की वो साजिश विफल हो गयी, जिसमें कुछ पत्रकारों की मदद से अमरमणि ने एक कहानी तैयार की थी। इसमें मधुमिता के एक परिचित युवक को हत्याकांड में लपेटने की कोशिश की। बताया गया कि आईआईटी कानपुर से तैयारी करने वाले युवक से मधुमिता के रिश्ते थे और उनकी निशातगंज के एक पंडित ने शादी भी करवाई थी। सीबीआई जाँच में ये सारी कहानी झूठी निकली। (लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार नवलकांत सिन्हा की कलम से)
पत्रकारिता की हनक याद दिलाने के लिए आभार दिनेश जी का , काश आज के रिपोर्टर भी सजग हो
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