नासिक में सोकर उठे तो कमरे की खिड़की से बाहर दृष्टि डालने पर पर जमीन भीगी हुई दिखी । यानी रात में बरसात हुई थी । आज के यात्रा कार्यक्रम में त्र्यंबकेश्वर मंदिर प्रमुख था । चूँकि अभी वर्षा नहीं हो रही थी, इसलिए तैयार होने में हम लोगों ने काफी तत्परता दिखाई और ऑटो से बस स्टैंड पहुंच गए।
जहां पर राजकीय परिवहन की एक बस त्रयंबकेश्वर जाने के लिए तैयार खड़ी थी। इस तरह 40 किमी का सफर उत्साह पूर्वक शुरू हुआ । आसमान में धूप बिल्कुल नहीं थी , अत: मौसम सुहावना था । बस नगर से बाहर निकली तो गंतव्य की ओर बढ़ते हुए हम प्रकृति का नैसर्गिक सौंदर्य देखने में रम गए । ऊंचे - नीचे पहाड़ी रास्ते, बरसात से साफ-सुथरी हुई सड़कें और नाना प्रकार के वृक्ष एक मनभावन नजारा प्रस्तुत कर रहे थे ।
जब हमारी बस त्र्यंबकेश्वर पहुंचने वाली थी , तो पहाड़ों पर रुई की मानिंद गुच्छे- गुच्छे बादल खूब चमकदार लग रहे थे ।
बस स्टैंड तक पहुंचते-पहुंचते तेज बरसात भी होने लगी। स्थिति यह रही कि हमें बस से उतरते ही भागकर एक छज्जे में शरण लेनी पड़ी। लेकिन वहां कब तक रुकते । वर्षा धीमी होते ही एक प्लास्टिक पेपर खरीदा और उसे ओढ़कर पास ही में स्थित मंदिर की ओर बढ़ गए।
त्र्यंबक गांव में अवस्थित त्र्यंंबकेश्वर महर्षि गौतम की तपोस्थली के रूप में ख्यात है । उन्हीं की साधना के फलस्वरूप यहां से गोदावरी नदी का उद्गम होता है और प्रसन्न होकर भगवान शिव भी इस स्थान पर विराजने को तैयार हो गए थे।
जहां तक वर्तमान मंदिर की बात है, तो उल्लिखित जानकारी से पता चलता है कि प्राचीन मंदिर का पुनर्निर्माण पेशवा बालाजी बाजीराव ने 18वीं शताब्दी में करवाया था । कहा जाता है कि इस मंदिर के बनने में 31 साल लगे थे। इसी मंदिर को अहिल्याबाई होल्कर ने भी और आकर्षक स्वरूप दिया था।
इस तरह ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में इसे मराठा स्थापत्य कला का एक उदाहरण समझा जा सकता है । काले पत्थरों से निर्मित इस मंदिर के गर्भगृह में एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे शिवलिंग प्रतिष्ठित हैं । इनको ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक माना जाता है । जिस वक्त हम दर्शन के लिए वहां पहुंचे , चारों तरफ पहाड़ और हरियाली मुझे ही नहीं हर किसी को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त कारण थी।अभी भी पहाड़ों पर बादल ठहरे हुए थे ।
गर्भ गृह में मुख्य विग्रह के ऊपर बड़ा सा शीशा लगा हुआ था । श्रद्धालु उसमें दिख रहे प्रतिबिंब का भी दर्शन कर रहे थे। भीड़ अधिक नहीं थी इसलिए कतार बंद होकर दर्शन करने में सब को सुविधा हो रही थी।
मंदिर में मोबाइल ले जाने पर कोई रोक-टोक नहीं थी। अतः मनमाफिक तस्वीर लेने में पूरी स्वतंत्रता थी। पूरे वातावरण के सौंदर्य को समेटने के लिए मैंने एक वीडियो भी बनाया । दर्शन के उपरांत मंदिर परिसर से बाहर निकल आए और एक दुकान पर चाय पी और पावभांजी का स्वाद चखा।
त्र्यंबकेश्वर में सड़क पर घूमते हुए मुझे अनेक ज्योतिषियों के कार्यालय दिखे । यह भी पता चला कि कालसर्प दोष की निवृत्ति हेतु यहां श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं । ऐसा लगा कि ज्योतिषियों का यहां अच्छा खासा कारोबार फल-फूल रहा है । अधिकतर ज्योतिष कार्यालयों पर फोन नंबर जरूर दर्ज थे।
त्र्यंबकेश्वर के करीब ही पक्का बना हुआ कुशावर्त कुंड है । यहां पर टहलते हुए पहुंचे तो कुंड में अनेक लोग नहाते दिखे । इस कुंड का निर्माण गोदावरी के जल से हुआ बताया जाता है । सिंहस्थ पर्व पर हर 12 वर्ष में यहां कुंभ मेला लगता है। तब बड़ी संख्या में लोग यहां स्नान करने आते हैं।
ऐसी मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने के बाद त्र्यंंबकेश्वर दर्शन करने जाना चाहिए । मैंने कई दंपतियों को स्नान के बाद सफेद परिधान में मंदिर की ओर जाते हुए देखा । गोदावरी को दक्षिण की गंगा भी कहा जाता है। इस कुंड में स्नान से समस्त पापों के शमन की बात कही जाती है ।
इस बीच फिर से बरसात होने लगी । इस समय का उपयोग हमने कुंड के चारों तरफ बने मंदिरों को देखने के लिए किया । यहां चार कोनों पर केदारेश्वर महादेव , साक्षी विनायक , कुशेश्वर महादेव और गोदावरी मंदिर हैं। हमने वह स्थान भी देखा जहां से गोदावरी का जल अनवरत कुंड में गिर रहा था । निकट में ही गंगा गोदावरी का मंदिर भी है।
इस स्थान के करीब ही ब्रह्मगिरि से गोदावरी नदी का उद्गम होता है । हालांकि यह काफी ऊंचाई पर है । साथ ही काफी दूर तक पैदल चलना पड़ता है । गोदावरी का उद्गम देखने की अति उत्कंठा के बाद भी मैंने एक बार आसमान के बादलों को निहारा । उन्हें देखकर लगा यह कभी भी बरस सकते हैं ।
आखिरकार अपने यायावरी मन को यह समझाना पड़ा कि पहाड़ पर रास्ते में बरसात हो गई तो चढ़ना - उतरना दोनों काफी मुश्किल हो जाएगा।
यहां से आगे बढ़ने से पूर्व उस पूरे वातावरण को आंखों से भरपूर निहारने के बाद हम अांजनेरी पर्वत जाने के लिए त्र्यंबकेश्वर बस स्टैंड पर पहुंचे। यह पर्वत त्र्यंबकेश्वर से साढ़े 9 किलोमीटर दूर नासिक जाने वाले रास्ते पर ही है। इस स्थान को हनुमान जी का जन्म स्थान माना जाता है। कुछ ही देर में हम वहां पहुंच गए । सड़क के किनारे पर लगे संकेतक ने बड़ी मदद की और हम उसी दिशा में पहाड़ की तरफ बढ़ने लगे ।
पर्वत के प्रारंभ में ही हनुमान जी का एक मंदिर बना हुआ है । जो लोग ऊपर पहाड़ पर नहीं जा सकते हैं , वे यहां पर दर्शन करके संतोष अनुभव करते हैं ।
नासिक में आज का मौसम बड़ा ही विचित्र लगा। कब बरसात होगी और कब तेज धूप, कुछ कहना मुश्किल था। अब तेज धूप थी और पसीने से कपड़े भीग रहे थे । एक दिन में यह मेरे साथ दूसरी बार हुआ कि ब्रह्मगिरि पर बरसात की आशंका से नहीं जा पाए और अांजनेरी पर्वत पर धूप के चलते ।
नीचे अवस्थित मंदिर में यह जानकारी मिली कि पर्वत पर लगभग 7:30 किलोमीटर चलने पर अंजनी माता का मंदिर आता है । कहा जाता है कि इस पहाड़ पर हनुमान जी के पैरों के निशान भी हैं । यह तो वहां जाने पर ही पता चलता । पर्वत के शिखर पर बने मंदिर में अंजनी माता की गोद में बाल हनुमान जी के दर्शन होते हैं। पहाड़ के आरंभ में ही श्रद्धालुओं के लिए यह सूचना दर्ज थी कि ऊपर चढ़ने के लिए सुबह का समय उत्तम होता है। दरअसल ऊपर जाने में ही तीन-चार घंटे लग जाते हैं ।
इसलिए धूप में यहां चढ़ने की मनाही लिखी हुई थी। मैंने आसमान की तरफ देखा तो सूरज सिर पर चमक रहा था। आखिरकार हमने पर्वत के नीचे वाले हनुमान मंदिर में चालीसा का पाठ किया और कुछ देर विश्राम करके सड़क पर आ गए।
क्रमशः ....
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