रात आधी से ज्यादा बीत चुकी है और हम पति पत्नी भावनाओं में डूब-उतरा रहे हैं। कभी हंस रहे हैं, कभी आंसू छलक रहे हैं। मूर्त रूप में हम लोग हैं, अमूर्त रूप में सामने मेरे बाबूजी हैं जो कुछ कह रहे हैं। दरअसल गांव में बाबूजी की लिखी एक डायरी मिली है, जिसे मेरे भतीजे छोटू ने मेरे पास भेजा है। डेढ़ सौ से ज्यादा पेज में बाबूजी ने अपनी जिंदगी के तमाम संस्मरण दर्ज किए हैं। डायरी मैंने रात में पढ़नी शुरू की। बस बाबूजी उपस्थित हो गए।
बाबूजी का आधा जीवन तो तमाम संघर्ष और मुकदमेबाजी में गुजरा। लोगों की समस्याओं को दूर करने में गुजरा, लेकिन आखिरी के 20-25 साल बस प्यार और परिवार में रमते थे बाबूजी। 2009 में मैंने बाबूजी और अम्मा को बदरीनाथ-केदारनाथ यात्रा पर भेजा था। साथ में दो पंडित जी भी थे। मेरी पत्नी थीं, भानजी, भतीजा छोटू और पुत्र समन्वय भी थे। पूरे कुनबे के साथ बाबूजी ने बाबा केदारनाथ और बदरी विशाल के दर्शन किए थे। वहां मांगा कुछ नहीं था, ईश्वर को धन्यवाद किया था। इस यात्रा के बाद जब बाबूजी और अम्मा का मेरे पास से जाने का वक्त आया तो उस प्रसंग को बाबूजी ने डायरी में कुछ इस तरह लिखा है-
'बहू में जो गुण, सौंदर्य और माधुर्य पाया, व्यक्त करना कठिन है। पूर्वजों, पितरों के आशीर्वाद का फल बेटे-बहू के सान्निध्य में पाया। तीनों बहुओं का सामंजस्य भगवती बनाए रखें, कोई किसी से कम या अधिक नहीं है। यह सुख अपने पूर्वजों के आशीष का फल है। अब घर की याद आ रही है। लंबी गृहस्थी का मोह और दायित्व.. एक जगह केंद्रित रहना संभव ही नहीं है। जब प्रस्थान करूंगा तो एक सुखद वर्तमान का अनादर ही समझकर। विकास और बहू नहीं चाहते थे कि हम जाएं, लेकिन हमने समझाया-अपने मन में मेरे प्रति मोह को सजाए अपने एकल जिम्मेदारी में विस्तार चिंतन में सुखी रहो, यही आशीर्वाद मेरा है। ... स्टेशन पर बहू के आंसू में सहज विकलता को भूला नहीं हूं। सीधी-सादी देहात में पली बढ़ी, सयानी होकर मेरी बहू बनकर जो सेवा किया, मां भगवती उसके आंचल को खुशियों से भरती रहें। यही प्रतिपल की अपेक्षा है।'
बाबूजी की डायरी में ये प्रसंग मैं पढ़कर सुना रहा था, हम दोनों को आनंद भी आ रहा था, आंसू भी छलक रहे थे। श्रीमती जी तो रोने ही लग गईं।
बाबूजी अक्सर बातों बातों में कुछ ऐसी बात कह जाते थे, जो अच्छे से अच्छा डायलॉग लेखक भी नहीं लिख पाता। डायरी में उन्होंने एक प्रसंग लिखा है, जब एक रिश्तेदार ने एक लड़की से सिर्फ इस नाते तय हुआ विवाह तोड़ लिया था क्योंकि वो लड़की संपन्न घराने से थी। लड़की के पिता नहीं थे। सिर्फ मां थीं और उन्हें आस थी तो बस बाबूजी से ही। बाबूजी डायरी में उस प्रसंग का जिक्र करते हुए लिखते हैं- 'मैंने उनसे कहा- 14 साल बाद हर समझदार कन्या पितागृह को धर्मशाला समझती है। उसकी अपनी कुटिया ईश्वराधीन है। कन्या एक उमर तक माता पिता के पास सुकून से रहती है। बाद में वो प्रतिपल अविवाहित रहने का दर्द माता पिता के साथ अनुभव करती है। संपन्न माता पिता की संस्कारों से भरपूर कन्या आज तुम्हारी भावना के चलते अपने को अयोग्य मानने पर मजबूर हो रही है। पुरुष बनकर उसकी बेबसी समाप्त करो, पुरुष होने का दायित्व निभाओ।'
(इस प्रसंग को कृपया 50-60 के दशक की परिस्थितियों के हिसाब से देखें)
बाबूजी के समझाने के बाद वे शादी के लिए राजी हुए। एक विधवा की बेटी का विवाह बाबूजी की वजह से संपन्न हुआ था। बाबूजी डायरी में लिखते हैं- 'बेटी की विदाई के बाद वे आंखों में आंसू भरकर आईं, बोलीं कि आपकी वजह से मेरी बेटी की मांग में सिंदूर पड़ा। मैं आपको क्या दे सकती हूं, भगवान आपको वंश दें। बाद में घर में बड़े पुत्र का जन्म हुआ, ये मैं उन्हीं का आशीर्वाद मानता हूं।'
बाबूजी एक जगह लिखते हैं- आज मेरे बच्चे और पौत्रों में अधिकतम लोग वयस्क और उच्च शिक्षित हैं। स्थिति विशेष के अलावा सत्य की मान्यता का मैं पक्षधर रहा। विकास हर दशा में स्वागत योग्य है, लेकिन परिवार में संवाद ही सुखी जीवन का मुख्य आधार है। संवादहीनता की वजह से परिवार बलहीन होता जाता है।
ऐसे तमाम प्रसंग बाबूजी ने लिखे हैं, अपनी कुछ कविताएं और उनके प्रसंग लिखे हैं। पढ़ रहा हूं तो आंसू छलक रहे हैं। डायरी एक ही है, समय-समय पर इसे लिखते रहे हैं। आखिरी पन्ना 11 जुलाई 2016 को लिखा है, यानी मेरी मां के निधन के करीब 8 महीने बाद।
बाबूजी लिखते हैं- 'कई दिन से अनुभव कर रहा हूं कि जीवन की समाप्ति की बेला में हूं। श्रीमतीजी का स्वर्ग से आग्रह की प्रेरणा मन में बार-बार आती है।'
मेरी मां के निधन के बाद से ही बाबूजी की याद्दाश्त तेजी से खराब होने लगी थी। उन्हें पिछले 10-12 साल की बातें सिर्फ भूली थीं, पुरानी बातें सब याद थीं। तमाम बातें बाबूजी मां के निधन से पहले ही डायरी में दर्ज कर चुके थे। मां का निधन अक्टूबर 2015 में हुआ था। 11 जुलाई 2016 के बाद बाबूजी ने डायरी में कुछ नहीं लिखा, जो भी उनके दिल में था, उसे दिल में ही रखकर 4 अप्रैल 2019 को बाबूजी ने हमेशा हमेशा के लिए आंखें मूंद ली थीं। ( टीवी न्यूज चैनल न्यूज नेशन के वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र की कलम से)
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