#सैरसपाटा:महाराष्ट्र11
औरंगाबाद भ्रमण के लिए अपने पास दो दिन का समय था । जिसमें 1 दिन बीत चुका था । आज शहर में रुकने का मुख्य प्रयोजन बीवी का मकबरा और औरंगाबाद की गुफाएं देखना था। समय रहते 2- 4 अन्य स्थान भी देखे जा सकते थे। रात में पुणे के लिए ट्रेन थी ।
पहले दिन घूमने में ऑटो वाले का व्यवहार अच्छा लगा था, इसलिए दूसरे दिन भी उसी को साथ रखना उचित लगा । सुबह-सुबह नाश्ता करके ऑटो का इंतजार करने लगे। मौसम तो इतना अच्छा था कि पूछिए मत ।
बरसात होने की संभावना तो थी पर हो नहीं रही थी । समीर मंद-मंद नहीं बल्कि झकोरे के रूप में हमारे कमरे में दो दिशाओं में बनी वातायनों से प्रवेश कर रही थी। इससे तन-मन प्रफुल्लित था। मतलब कमरे में पंखा चलाने तक की आवश्यकता नहीं थी। इस प्रभात में उल्लसित होने की एक वजह और भी थी। मेरी खिड़की के सामने वाले घर की छत पर होने वाला चिड़ियों का कलरव।
मैंने देखा उस मकान की छत से दो कटोरियां लटक रही थीं। यहां चिड़ियों को दाना-पानी की व्यवस्था की गई थी ।अपने घर में भी चिड़ियों को आमंत्रित करने के सारे उपाय किए जाते हैं । इसलिए मैं यहां भी खिड़की के बाहर का नजारा देखते हुए चिड़ियों की चहचहाहट का आनंद लेने लगा।
तभी मोबाइल की घंटी से ध्यान भंग हुआ और ऑटो वाले ने होटल के नीचे खड़े होने की सूचना दी ।
दिन भर हमें शहर में घूमना ही था, तो सामान होटल में छोड़ने का औचित्य समझ में नहीं आया। वैसे भी हमारा होटल रेलवे स्टेशन से काफी दूर था। हमारी समस्या को देखते हुए ऑटो चालक ने आश्वस्त किया कि वह हमारा सामान भी रख लेगा और तय किए गए स्थलों को दिखाने के बाद स्टेशन तक छोड़ भी देगा।
इसके बाद हम सामान लेकर निकल पड़े । लेकिन एक शंका शाम तक बनी रही कि यदि चालक अवसर पाकर सामान लेकर रफूचक्कर हो गया तो क्या होगा। यद्यपि अपनी तसल्ली के लिए मोबाइल में ऑटो का नंबर ले लिया था । हमारी यह सतर्कता देखकर चालक मुस्कुराता रहा ।
सबसे पहले ऑटोवाला हमें सिद्धार्थ पार्क ले गया ।
उद्यान में प्रवेश करने से पूर्व मैंने पूछा कि यहां खास क्या है । तो उसने कहा कि अंदर जाकर खुद देख लीजिए। टिकट लेकर अंदर पहुंचे तो यहां चिड़ियाघर , बाग- बगीचा , मछली घर और संग्रहालय था।
यह पार्क इतना विशाल था कि सब कुछ देखना कम समय में संभव नहीं था । इसलिए बगीचे में जाकर सिद्धार्थ की प्रतिमा के पास फोटो खिंचवाई ।
इसके बाद बगीचे में तफरीह करते हुए कई मूर्तियों के पास जाकर फोटो का शौक पूरा किया । इस पार्क में कुछ फिल्मी सितारों की भी मूर्तियां बनी हुई थीं । फिर संग्रहालय में पहुंचे। जिसमें हैदराबाद मुक्ति संग्राम के सेनानियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई थी। हैदराबाद को आजाद कराने के लिए कभी व्यापक आंदोलन भी हुआ था यह यहां आकर पता चला । यहां सूचनाएं मराठी में अंकित होने से थोड़ी असुविधा भी हुई । इसके बाद अधिक समय न बिताकर हम आगे बढ़ चले।
यह पनचक्की नाम की जगह है । पता चला कि यहां कभी पानी की ऊर्जा से आटाचक्की चलाई जाती थी । 8 किमी दूर पहाड़ी से पानी को यहां लाया जाता है । यह पानी एक आयताकार से कुंड में ऊंचाई से गिरता है । कहा जाता है कि इस से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से किसी जमाने में चक्की चला करती थी, जिससे गेहूं पीसा जाता था।
जिससे गरीबों की मदद की जाती थी। पानी तो आज भी काफी ऊंचाई से गिर रहा था लेकिन चक्की चलने की बात नहीं दिखी। इस कुंड में रंग बिरंगी मछलियां लोगों का ध्यान जरूर खींच रही थी।
उस जमाने में बिना बिजली के पानी को इतनी दूरी से यहां पर ले आना और ऊंचाई से गिराना यह कम चमत्कारिक नहीं है। यह तो कौतूूहल उत्पन्न करने वाली चीज मुझे समझ में आई ।
इसी स्थान पर बाबा शाह मुसाफिर और शाह महमूद की मजारें हैं। कहा जाता है कि पनचक्की की सोच शाह मुसाफिर की ही थी । जो 300 साल पहले इस स्थान पर रहा करते थे । हालांकि इस पद्धति को आगे चलकर और विकसित किया गया था । बाबा चाहते थे कि यह पानी मनुष्यों और मवेशियों के काम आए। साथ ही सिंचाई की जरूरत भी पूूरी हो सके । यहां एक मस्जिद भी है । जहां ईमाम साहब ने पनचक्की और मजारों के बारे में रुचि लेकर बड़े विस्तार से समझाया । हालांकि सब चीजें मैं याद नहीं रख पाया ।
यहां परिसर में अनेक बिल्लियां निर्भीक घूमते दिखाई पड़ीं। उनकी तस्वीरें खींचने के लिए हमें प्रयास नहीं करना पड़ा । बिल्लियां खुद-ब-खुद हमारे पास चली आती थीं। परिसर में ही रहने वाली यह बिल्लियां खाने-पीने की चिंता से मुक्त दिखीं। इस स्थान पर एक पुराना बरगद का पेड़ है। जिसकी धार्मिक महत्ता बताई जाती है ।
यहां से आगे बढ़े तो कुछ ही दूरी पर बीवी का मकबरा था , जो पार्किंग वाली जगह से ही नजर आने लगा था। इतिहास की इस महत्वपूर्ण धरोहर को हम इत्मीनान से देखना चाहते थे। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश: .....
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