दामोदर नदी, झारखंड और पश्चिम बंगाल के करोड़ों लोगों के लिए जीवनरेखा है पर इसे बंगाल के शोक के तौर पर जाना जाता है। दशकों से इस पर काम होने के बावजूद इसके आस-पास रहने वाले लोगों का शोक कम नहीं हो रहा है। बस उसके रूप बदल रहे हैं।
छोटा नागपुर की पहाड़ियों से निकलने वाली और हुगली नदी में जाकर मिल जाने वाली यह नदी आजकल प्रदूषण और बाढ़ की वजह से पुनः सुर्खियों में है।
हाल ही में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) ने दामोदर घाटी निगम (डीवीसी) की चंद्रपुरा इकाई द्वारा दामोदर में प्रदूषण फैलाने के मामले को लेकर 1.69 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया। उधर पश्चिम बंगाल में आए बाढ़ में छह जिले बुरी तरह प्रभावित हुए तो वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को पत्र लिख कर डीवीसी पर कई आरोप लगाए।
विडंबना यह है कि डीवीसी बाढ़ नियंत्रण के लिए ही अस्तित्व में आया था। आजादी के पहले के दिनों में इस नदी की वजह से पश्चिम बंगाल में अक्सर बाढ़ आया करती थी और जान-माल की व्यापक क्षति होती थी। ऐसी ही एक भीषण बाढ़ दशकों पूर्व आई और सरकार के खिलाफ स्थानीय लोगों को गुस्सा बढ़ा। इसे देखते हुए बंगाल सरकार ने दामोदर बाढ़ जांच समिति के नाम से एक बोर्ड का गठन किया। इस बोर्ड के सुझाव पर देश की आजादी के तुरंत बाद 1948 में दामोदर घाटी निगम की स्थापना संसद में डीवीसी एक्ट पारित कर की गयी।
इधर बाढ़ की तीव्रता इत्यादि में कमी जरूर आई है पर नदी से होने वाले शोक में कोई कमी नहीं दिखती। इसकी वजह है, नदी का प्रदूषण।
दामोदर नदी को अपने उदगम बिंदु के आस-पास अपनी पवित्रता एवं स्वच्छता के कारण देवनद भी बुलाया जाता है। यह नदी देश के कुछेक खास खनिज संपन्न क्षेत्र से होकर गुजरती है। ये खनिज झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के लिए तो वरदान हैं पर यहां होने वाली खनन की गतिविधियों की वजह से, नदी और आस-पास रह रहे लोगों के लिए अभिशाप साबित हो रहे हैं।
दामोदर नदी झारखंड के जिले- लोहरदगा, लातेहार, रांची, चतरा, रामगढ़, धनबाद और पश्चिम बंगाल के पांच जिले- बांकुरा, पुरुलिया, बर्धमान, हावड़ा और हुगली से होकर गुजरती है। अपने उद्गम से शुरू होकर हुगली नदी में मिलने से पहले यह नदी 547 किलोमीटर की यात्रा पूरी करती है। इस नदी का कैचमेंट क्षेत्र 23,370.98 वर्ग किलोमीटर में फैला है। इस नदी में होने वाले जल प्रदूषण से ढाई करोड़ लोगों प्रभावित होते हैं।
दामोदर नदी किनारे खदान सहित कई तरह के संयंत्र स्थापित हैं जिसका कचरा नदी में ही समाहित होता है और इसे प्रदूषित करता है।
नदी की राह में कोयला खदानों, ताप एवं पन बिजली उत्पादन इकाइयों, स्टील प्लांट, उर्वरक, सीमेंट व रासायनिक कारखानों की भरमार है। इनसे निकल कचरा इस नदी को भयंकर रूप से प्रदूषित करता है।
जैसे 1990 में बोकारो स्टील लिमिटेड के प्लांट से तेल का बहाव हुआ, जिसका संज्ञान अधिकारियों ने चार दिन बाद लिया। तब तक यह कचरा बहकर 150 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर तक पहुंच गया था और इस दूषित जल को पचास लाख लोगों ने पी लिया था और हजारों लोग बीमार हो गए थे।
इसी तरह दो साल पहले यानी 2019 में चंद्रपुरा थर्मल पॉवर प्लांट से 13 अक्टूबर 2019 को 41 घंटे तक फर्निश ऑयल का बहाव दामोदर नदी में होता रहा। दामोदर बचाओ आंदोलन के संयोजक ने इस मामले की शिकायत एनजीटी में की और जांच के बाद डीवीसी पर कुल 1,640,8000 रुपये का जुर्माना लगा।
इस नदी में प्रदूषण के लिए फ्लाई ऐश (उद्योगों से निकली राख) भी एक बड़ी वजह है। 12 सितंबर 2019 को बोकारो थर्मल पॉवर प्लांट का फ्लाई एश पाउंड टूट गया था, जो बड़े स्तर पर प्रदूषण की वजह बना। जांच में पाया गया कि वह फ्लाई ऐश पाउंड न तो स्वीकृत योजना के अनुरूप बना था और न ही उसके अनुरूप उसका रखरखाव होता था। इस मामले में भी एनजीटी ने 2.89 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया।
ये अतिरेक घटनाएं नहीं हैं। हाल में ऐसे कई अध्ययन हुए हैं जिनसे दामोदर नदी में अत्यधिक प्रदूषण का पता चलता है।
मसलन वर्ष 2012 में एक अध्ययन प्रकाशित हुआ। इसमें कहा गया कि इस नदी का पानी पीने के योग्य नहीं है। नहाने के लायक भी नहीं। इस अध्ययन का निष्कर्ष था, “इसमें नहाने या इसके पानी पीने से लोगों को चर्म रोग या आंत की बीमारियाां हो सकती हैं।”
हाल ही कोविड-19 के बाद लगे लॉकडाउन के दामोदर नदी पर होने वाले असर को समझने के लिए एक अध्ययन किया गया। इसका निष्कर्ष था, “लॉकडाउन के पहले जल प्रदूषण इंडेक्स से पता चलता है कि सौ फीसदी सैम्पल प्रदूषित थे। लॉकडाउन के बाद 90 फीसदी सैम्पल को स्वच्छ पाया गया और महज 9.10 फीसदी सैम्पल ‘कुछ हद’ तक प्रदूषित थे।” इससे नदी के प्रदूषित होने में उद्योगों की भूमिका स्पष्ट होती है।
दामोदर घाटी क्षेत्र में सात ताप विद्युत संयंत्र (थर्मल पावर प्लांट) व दो जल विद्युत संयंत्र हैं। यह नदी अत्यधिक प्रदूषित है और इसका पानी इंसानों के इस्तेमाल के लायक नहीं है। नदी के ऊपरी हिस्से में सिंघभूम पड़ता है जहां यूरेनियम इत्यादि की खान मौजूद हैं। पूरी संभावना है कि इसकी वजह से नदी भी रेडियोऐक्टिव पदार्थ से प्रदूषित हो।
उधर इस नदी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर एक पर्यावरणविद ने सरकार से शिकायत की थी कि बोकारो स्टील लिमिटेड जीरो डिस्चार्ज के वादे से मुकर गया है और उसका जहरीला पानी अब भी दामोदर नदी में प्रवाहित किया जा रहा है। उनके अनुसार, बोकारो स्टील लिमिटेड ने 2018 में अपना एक नाला बंद कर दिया था, जबकि दिसंबर 2019 तक दूसरे नाले से भी जीरो डिस्चार्ज का वादा किया।
डीवीसी की स्थापना का मूल उद्देश्य बाढ़ नियंत्रण था। सिंचाई, बिजली उत्पादन व नौवहन इसके अन्य प्रमुख उद्देश्य थे। अब डीवीसी एक ऊर्जा उत्पादक कंपनी बन गया है। दामोदर घाटी क्षेत्र में डीवीसी के सात ताप विद्युत संयंत्र (थर्मल पावर प्लांट) व दो जल विद्युत संयंत्र हैं।
1948 में जब एक्ट बना था तो उसमें जिक्र था कि जो दामोदर नदी को प्रदूषित करेगा उसे दंडित करने का काम डीवीसी का होगा। लेकिन अब वह खुद प्रदूषण में शामिल है।
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