नासिक के पंचवटी क्षेत्र में ही गोरेराम और कालेराम के मंदिर भी अवस्थित हैं। मामला यहां रंगों का ही है । जैसे गोरेराम मंदिर में सफेद संगमरमर की प्रतिमा है । इस मंदिर में राम, सीता ,लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न के विग्रह हैं। वर्तमान में वहां कुछ निर्माण कार्य चल रहा था । इसलिए मंदिर बंद था। लिहाजा उसकी खासियत का विशेष पता नहीं चल पाया।
जहां तक कालेराम मंदिर की बात है । यह नागर शैली में 18 वीं सदी में निर्मित मराठों की देन है। जानकारी के अनुसार मंदिर त्र्यंबकेश्वर जैसा बना हुआ है। और मूर्तियां काले पत्थरों की हैं। अब मंदिरों के नाम का अर्थ समझ में आ गया था । मंदिर का महत्व एक अन्य दृष्टि से भी बढ़ जाता है । कालेराम मंदिर 1932 में तब चर्चा का विषय बना, जब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अछूतों के मंदिर में प्रवेश के लिए यहां व्यापक आंदोलन किया था। । आंदोलन के परिणाम स्वरूप मंदिर में दलितों को प्रवेश का अधिकार मिल गया ।
भ्रमण के दौरान हम श्रीराम जी की पर्ण कुटी भी पहुंचे । हम तो घास फूस से बनी वह कुटी देखने पहुंचे थे , जिसके बारे में तुलसी ने लिखा था - गोदावरी निकट प्रभु रहे परन गृह छाइ।
निसंदेह स्थान गोदावरी के निकट तो है , लेकिन आज यह पर्ण कुटी नहीं अपितु ईंट पत्थर से बनाया गया घर है। हमने सोचा कि अब पर्णकुटी तो देख नहीं सकते , चलो रामानंद सागर के सीरियल रामायण में दिखाई गई घास फूस से बनी पर्ण कुटी की ही कल्पना कर लेते हैं। वह तो देखने में रामायण कालीन जैसी लगती है और ऐसी कल्पना करने में हर्ज ही क्या है। इसी प्रकार रामजी का वनवास स्थान भी देखा । जगह की स्मृति बने रहने के लिए यहां भी हमने तस्वीरें खींच लीं।
इसी क्षेत्र में तपोवन नामक स्थान भी है । जहां कपिला और गोदावरी का संगम माना जाता है। वस्तुतः जिसे तपोवन कहा जाता है , वह विस्तृत रूप से रामायण में वर्णित दंडकारण्य का ही भाग है । दंडकारण्य का नाम आते ही दिमाग में खरदूषण का किस्सा भी चलने लगता है। अरे वही खरदूषण जो अपनी बहन शूर्पणखा के अपमान का बदला लेने के लिए आते हैं।
तपोवन में लक्ष्मी नारायण मंदिर वह स्थान है , जो नासिक कुंभ के दौरान खूब गुलजार रहता है । यहां पर पुजारी जी से बात होने लगी , तो वह मिर्जापुर के स्थायी निवासी निकले । काशी में उन्होंने पढ़ाई- लिखाई की थी , यह जानकर और भी अच्छा लगा। तपोवन में ही एक लक्ष्मण मंदिर है जिसकी काफी प्रसिद्धि है।
मान्यता है कि इसी स्थान पर लक्ष्मण जी ने शूर्पनखा की नाक काटी थी । यहां एक और बात जानना प्रासंगिक होगा कि नासिक शहर का नाम भी इसी नाक काटने वाली घटना से जुड़ा हुआ माना जाता है।
इस स्थान की महत्ता यह भी है कि लक्ष्मण ने इसी स्थान पर घनघोर तपस्या की थी, जिसके बल पर वे मेघनाद का वध कर सके । यहां की दीवारों पर अनेक चित्र अंकित हैं, जो हमें रामायण काल की ओर ले जाते हैं । ऑटो चालक ने हमें लक्ष्मण रेखा का स्थान भी दूर से दिखाया।
उसका कहना था कि अब वहां कुछ निर्माण हो गया है । हालांकि यही वह स्थान है जहां रावण द्वारा सीता का हरण किया गया था। वहां एक छोटा सा मंदिर बना हुआ है । मंदिर के सामने रावण की भी एक छोटी सी प्रतिमा है। जिस पर फूल भी चढ़ा हुआ था। रावण के सिर पर फूल देखकर मुझे कोई अचरज नहीं हुआ। क्योंकि यह हमारी सनातन संस्कृति की विलक्षण विशेषता है कि परम शत्रु का भी एक मर्यादित स्थान होता है । हम उसके पूरे व्यक्तित्व को खारिज नहीं करते हैं अपितु अवगुणों की भर्त्सना करते हैं।
पंचवटी में अब और समय देने की स्थिति में ना हम थे ना ही ऑटो चालक । शाम हो रही थी । इसलिए वापस लौट आए । यहां वंदना द्वारा लाया गया बाटी चोखा दोपहर से ही हमारी राह देख रहा था । खाना खाने के बाद भी हमारे पास तीन चार घंटे का वक्त बचा था।
नासिक के मुक्तिधाम को देखने की उत्सुकता एक बार फिर हमें कमरे से सड़क पर ले आई । ऑटो से 6- 7 किमी का सफर पूरा किया। बाहर स्टैंड में जूता रखकर हम अंदर मंदिर में पहुंचे।
मुक्तिधाम मंदिर संगमरमर से बना हुआ है । इसकी दीवारों पर गीता के 18 अध्याय अंकित किए गए हैं । इसका निर्माण 1976 में पूर्ण हुआ था।
मंदिर में 12 ज्योतिर्लिंगों का दर्शन करना अच्छा लगा। खास बात यह है कि इन्हें उनके मूल स्थानों पर भेजकर पवित्र कराया गया था । यह मंदिर विश्नोई संप्रदाय के गुरु जांभोजी से जोड़ा जाता है । यहां राम, सीता , लक्ष्मण, राधा , कृष्ण , विष्णु , लक्ष्मी आदि की मूर्तियां हैं । दीवारों पर महाभारत के अनेक दृश्य दर्शाए गए हैं ।
मंदिर में फोटोग्राफी की मनाही के बावजूद वंदना ने कुछ तस्वीरें ले ही लीं। अपने सोचे अनुसार नासिक भ्रमण का कार्यक्रम पूरा हो चुका था ,जो नहीं देख पाया उसे भूल जाना ही अच्छा लगा।
नासिक में जिस ट्रस्ट में हम रह रहे थे वहां रहना और खाना दोनों मनपसंद लगा । घरों में जैसे महिलाएं खाना बनाती हैं , वैसे ही यहां पर किचन में महिला को खाना बनाते देखा। यहां तक कि ग्राहकों के पैसे का हिसाब भी वही रख रही थी। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमशः.....
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