मध्याह्न होने तक हम त्र्यंबकेश्वर से नासिक बस स्टैंड लौट आए । अभी आधा दिन अपने पास था । इसलिए पंचवटी भ्रमण की योजना बनाई । निश्चय यह हुआ कि लौटने के बाद ही भोजन किया जाएगा । बस स्टैंड पर मौजूद एक ऑटो वाले से बात की । इस मामले में वहां उपस्थित रोडवेज के ड्राइवर ने अपनी तरफ से पहल करके एक दाम तय कर दिया , जो हमें भी अनुचित नहीं लगा ।
ऑटो चालक ने हमें यह भी आश्वस्त कर दिया कि वह गाइड की तरह जानकारी देता चलेगा और कहीं भी जल्दबाजी नहीं करेगा। हमने उससे महत्वपूर्ण स्थानों की सूची ले ली और उसी के अनुरूप यात्रा की शुरुआत हुई।
इधर आटो पंचवटी की ओर बढ़ा , उधर मन पंचवटी की कल्पना में रमता चला गया । यह वही पंचवटी है जो रामायण में वर्णित अनेक घटनाओं की लीला स्थली रही है । बचपन में मैथिलीशरण गुप्त की एक कविता पढ़ी थी, जो आज भी याद है-
चारु चंद्र की चंचल किरणें खेल रही हैं जल थल में, स्वच्छ चांदनी बिछी हुई है अवनि और अंबर तल में। पुलक प्रकट करती है धरती हरित त्रृणों की नोकों से, मानो झूम रहे हैं तरु भी मंद पवन के झोंकों से ।
इस कविता में पंचवटी के मनोहारी सौंदर्य का निरूपण हुआ है ।
यही क्या इससे बहुत पहले ही पंचवटी की महिमा तुलसी ने भी क्या खूब बखानी है -
है प्रभु परम मनोहर ठाऊँ ।
पावन पंचवटी तेहि नाऊँ।।
यद्यपि मुझे अच्छी तरह अहसास था कि तुलसी का वर्णित पंचवटी अब देखने को नहीं मिलेगा। लेकिन बदले हुए वातावरण को देखने की भी उत्कंठा बनी हुई थी । थोड़े समय के उपरांत हम पंचवटी में थे । ऑटो वाले ने हमें गोदावरी के तट की तरफ इशारा किया । यहां गंगा की तरह चौड़ा पाट तो नहीं था , लेकिन पहाड़ों की नदियां जैसी होती हैं वैसा जरूर गोदावरी का प्रथम दृष्टया अवलोकन लगा ।
घाटों पर श्रद्धालु नहाते दिखे । यहां किसी स्थान को रामकुंड, किसी को सीता कुंड नामकरण दिया गया था। हनुमान घाट भी दिखा । संभव है और भी घाट होंगे। घाट पर ही गंगा गोदावरी का मंदिर भी देखा। गोदावरी पर छोटा सा पुल बना है । यहां पर जाकर मोबाइल से कई तस्वीरें खींची ।
गोदावरी तट पर दूर- दूर तक नजर डालने पर पहाड़ दिख रहे थे, जो हरियाली रूपी परिधान से ढंके हुए थे ।आबादी के बाहुल्य से प्राकृतिक परिवेश बदल जाता है , जो यहां भी कई स्थानों पर अनुभव हो रहा था । प्रस्तर भूमि पर चलते हुए कुछ दूर तक गए । नदी का प्रवाह मन को भी चंचल बनाए हुए था ।
हम तो पथरीली जमीन पर जूते पहनकर चल रहे थे, लेकिन मेरी कल्पना में अयोध्या के राजपुत्र राम , जानकी और लक्ष्मण भी साकार हो रहे थे, जो नंगे पांव वल्कल परिवेश में इस परिक्षेत्र में कभी विचरण करते रहे होंगे। ऐसी कल्पनाएं कई बार आनंदित भी करती हैं। अब यह विचार करना कितना आह्लादकारी होगा , जब राम जी यहां सचमुच निवास करते रहे होंगे। भक्त तुलसी ने राम की उपस्थिति में पंचवटी की क्या लाजवाब कल्पना की है-
जब ते राम कीन्ह तहँ बासा।
सुखी भए मुनि बीती त्रासा।।
गिरि बन नदी ताल छबि छाए।
दिन दिन प्रति अति होहिं सुहाए।।
सही बात है जब पंचवटी में भगवान राम का सचमुच में निवास रहा होगा तब, वहां त्रास कैसे रह सकता है । राम की उपस्थिति में पर्वत वन नदी तालाब आदि को अधिक शोभायुक्त होना ही था। मेरा टहलना अभी भी जारी था। पत्नी भी यहां के परिवेश को समझने की कोशिश कर रही थी ।
गोदावरी पर रामकुंड या घाट वह स्थान है , जहां पर श्री राम ने अपने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। श्राद्ध करने की परंपरा आज भी यहां चली आ रही है । इधर निर्धारित समय पर हमारे वापस न लौटने पर ऑटो वाला स्वयं खोजते हुए चला आया । उसका कहना था कि इतना वक्त कर देंगे तो आप पंचवटी तय समय में नहीं घूम पाएंगे ।
ऑटो वाले ने बताया कि आसपास के तीन चार किमी की परिधि में रामायण कालीन अनेक स्थल हैं । इस क्रम में पहले उसने गोदावरी के सामने अवस्थित कपालेश्वर मंदिर की ओर इशारा किया।
सीढ़ियां चढ़ने के बाद मंदिर में प्रवेश करना होता है। इस मंदिर में शिव जी के समक्ष नंदी महाराज नहीं हैं। इस अनूठेपन के पीछे एक कथा है । कहते हैं ब्रह्मा जी के पांच मुँह हुआ करते थे , जिनमें चार मुंह भगवान की स्तुति करते थे जबकि एक से हमेशा दुर्वचन का प्रयोग होता था ।
इससे रुष्ट होकर शिवजी ने ब्रह्मा के एक मुँह को अलग कर दिया था । इस पाप से मुक्ति दिलाने में नंदी ने सुझाव दिए। जिस पर शिव ने गोदावरी में रामकुंड पर जाकर स्नान किया और पाप से मुक्त हुए । चूँकि इस प्रसंग में नंदी महादेव के मार्गदर्शक थे । इसलिए उन्होंने भगवान शिव के समक्ष खड़े होने से इनकार किया । नंदी को इस प्रसंग में शिव का गुरु माना गया है । अब गुरु शिष्य के सामने खड़ा रहे , यह तो अच्छा नहीं लगेगा । वर्तमान मंदिर का जीर्णोद्धार पेशवाओं के काल में हुआ है
वैसे तो पंचवटी पूरे क्षेत्र को कहा जाता है, लेकिन पंचवटी एक स्थान भी है । यह स्थान सीता गुफा के इर्द-गिर्द हैं। यहां पर पांच पुराने वटवृक्ष हैं । यही वह पांच वटी हैं। अब पंचवटी का तात्पर्य मुझे समझ में आ गया था।
अपनी यात्राओं के दौरान कई गुफाओं में जाने का अवसर मिला है , लेकिन सीता गुफा इतनी संकरी और झरोखा विहीन थी कि उसमें घुसने का साहस मैं नहीं कर सका । उधर पत्नी बड़े मजे से गुफा में अंदर गई और हंसते हुए दूसरे रास्ते से बाहर भी आ गई।
मजेदार बात यह रही कि पत्नी ने मुझे उत्साहित भी खूब किया, लेकिन मेरा साहस जवाब दे गया । हाँ मुझे अपनी भीरुता छुपाने का एक बहाना जरूर मिल गया। मौके पर कुछ लोग और भी थे जो भीतर जाने से हिचक रहे थे। यहां दीवार पर लिखी एक सूचना ने भी मेरी मदद की, जिसमें यह कहा गया था कि मोटे लोगों को गुफा में नहीं जाना चाहिए। बहरहाल इस प्रसंग को अब यहीं छोड़कर आगे बढ़ते हैं। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमशः.....
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