जम्मू-कश्मीर का कारवां
(कभी-कभी लगता है अपन इच भगवान है...)
वो साल 2018 था और महीना अप्रैल था। घर से 1,142 किलोमीटर दूर जाने के लिए निकल पड़ा था। तब जाने क्यों ऐसा लग रहा था कि बस कुछ ही दिनों की बात है घूमकर आ जाएंगे। मगर क्या पता था 19 महीने बीत जाएंगे और पता भी नहीं चलेगा। ऐसा ही कुछ हुआ। लखनऊ में उस वक्त में नवभारत टाइम्स में कार्यरत था। बेहतर मौका मिला और अमर उजाला जम्मू कश्मीर के लिए रवाना हो गया। वहां पहुंचा ही था कि महबूबा मुफ्ती और भाजपा की गठबंधन वाली सरकार ही गिर गई। फिर क्या पहुंचते ही अकेले मोर्चा संभालना था। फिर ये दौर चलता गया राज्यपाल शासन लगा फिर राष्ट्रपति शासन और उसके बाद तो आप सबको पता ही है राज्य से वह केंद्र शासित राज्य में लद्दाख के विभाजन के साथ स्थापित कर दिया गया। इस दौरान भी बड़े-बड़े किस्से और कांड हुए हैं। वो अगले भाग में सुनाएंगे..(नवभारत टाइम्स नईदिल्ली से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार प्रांजल दीक्षित की कलम से ..)
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