बॉलीबुड की प्रसिध्द अभिनेत्रियों को वृन्दावन का आकर्षण सदैव से रहा है। विगत साठ सालों में झांक कर देखता हूँ तो मुझे तीन अभिनेत्रियों के नामों का उल्लेख करना होगा ---- वनमाला , गीता दत्त और हेमा मालिनी। रोचक बात यह है कि अपने -अपने जमाने में सिनेमा के परदे पर धमाल मचाने वाली इन तीनों अभिनेत्रियों के वृंदावन -लगाव का कारण जुदा-जुदा है।
(1) सन 1954 में राष्ट्रपति के हाथों सर्वोत्तम अभिनेत्री का ख़िताब पा चुकी और ''सिकंदर'' फिल्म में पृथ्वी राज कपूर की हीरोइन बनी वनमाला को वृन्दावन की सडकों पर रिक्शे में बैठ कर ' राधा रमन मंदिर' जाते जिन लोगों ने भी देखा तो उनके मुंह से बरबस निकल पड़ा था --'' वाह वृन्दावन ''
1954 में इंदौर में जन्मी और 2007 में ग्वालियर में 92 साल की उम्र में परलोक सिधारने वाली अभिनेत्री वनमाला के नयनों का आकर्षण उस जमाने की फ़िल्मी हस्तियों को धराशायी करने में पर्याप्त था। वनमाला अपने सौन्दर्य पर कभी नहीं इतराई । सन 1940 से लेकर 1965 तक वनमाला ने करीब तीन दर्जन फिल्मों में अभिनय किया। अभिनेत्री वनमाला के सौंदर्य पर मुग्ध अभिनेता पृथ्वी राज कपूर उन्हें '' डायना '' (चन्द्रमा की देवी ) कहा करते थे।
कला ,संस्कृति और नैतिक मूल्यों से लबरेज वनमाला फिल्मों में हिंसा और सेक्स की विरोधी रहीं। पुस्तकों को तवज्जों देने वाली वनमाला कहा करती थी ---'' घर में पुस्तकों का रहना उतना ही सुखदायी है जितना उपवन में फूलों की उपस्थिति । '' मुंबई में समंदर किनारे एक फ्लेट में रहना उन्हें अच्छा लगता था। इस घर में उनकी पसंदीदा पुस्तकों का एक पुस्तकालय भी था। वनमाला ''कला कला के लिए नहीं बल्कि कला नैतिकता के लिए'' की उक्ति की जबरदस्त हिमायती थीं।
देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत वनमाला ने अरुणा आसफअली , अच्युत पटवर्धन जैसे नेताओं का साथ दिया और उनकी मदद की।
इतनी बड़ी दुनिया को अपने आँचल में समेटने वाली अभिनेत्री वनमाला के जेहन में जिंदगी के मतलब फिर भी समझ में नहीं आये और एक दिन वह चली आई नटवर नागर कन्हैया की क्रीड़ा स्थली वृन्दावन में । यहाँ वे तीन साल रहीं।
जिन सडकों पर किसी ज़माने में मीरा बाई और रसखान सरीखे अजूबे चलते थे , उन्ही सडकों पर मैंने केश मुक्त वनमाला को रिक्शे में माला के मानकों को अपने पोरों से सरकाते कई बार देखा था । वनमाला वृंदावन के ग्वालियर मंदिर में वर्षों रहीं । ट्रेडिशनल आर्ट और कल्चर वनमाला के रक्त में बहती थी । शहद घुली वाणी में वे इस विषय पर खूब चर्चा करती थी । वृंदावन के 'ग्वालियर मंदिर' में फिल्मों के प्रेमी वनमाला से मुलाक़ात कर रोमांचित होते थे । मथुरा के कवि निशेष जार ने बताया कि वह इतनी बड़ी फ़िल्मी हस्ती से बिना टोक-टोक के मिलते और बतियाते तो उनका रोम रोम पुलकित होता था । वृंदावन के हरिओम शर्मा ने बताया कि यहाँ के वाशिंदे उन्हें बेहद सम्मान से देखते थे । वनमाला वृंदावन में आर्ट एन्ड कल्चर का एक स्कूल खोलना चाहती थी । कामयाबी नहीं मिली तो वे ग्वालियर चली गई। वनमाला की बहिन सुमति देवी घनवटे ने अपने एक लेख में लिखा है --'' वनमाला का जीवन उस बांसुरी की तरह सीधा और सरल था जिसे प्रभु ने दिव्य संगीत से मधुर बना दिया था। ''
(2) दूसरी अभिनेत्री गीता दत्त के मथुरा आगमन की कहानी अवसाद से छुटकारा पाने के लिए ईश्वर की शरण में जाने की ललक और राहत देने वाले साधु-संतों की खोज थी।
सन 1930 में जन्मी और 1972 में दिवंगत हुई गीता दत्त ने जीवन में शोहरत खूब पाई पर पति गुरूदत्त की बेवफाई से दुखी गीतादत्त ने मंदिरों के दर्शन के लिए वृन्दावन का रूख किया । वृंदावन में किसी ने उन्हें बताया कि मथुरा में मातावाली गली में प० डालचंद शर्मा रहते हैं जो पहुंचे हुए ज्योतषी हैं। गीता दत्त प० डालचंद शर्मा के पास कई बार मातावाली गली आईं थ। यह बात 1960 की है। इसी गली के वासी कैलाश वर्मा को स्मरण है कि एक बार गीता दत्त फिल्म अभिनेत्री टुनटुन के साथ पंडितजी के पास आईं थीं। गली के तमाम लोगों की भीड़ लग गई। .गली में हनुमानजी का मंदिर है। पंडितजी पूजा पाठ के लिए गीता दत्त और टुनटुन को हनुमानजी के मंदिर में ले आये। सभी लोगों ने विनती की कि गीताजी कुछ गायें। गीता ने पंडितजी की तरफ देखा। उधर से स्वीकृति मिली तो गीता दत्त ने मुक्त कंठ से फिल्म ''दो भाई '' में खुद का गया गीत सुनाया ---'' मेरा सुन्दर सपना बीत गया , मैं प्रेम में सब कुछ हार गई ,बेदर्द ज़माना जीत गया . मेरी प्रेम कहानी खत्म हुई , सुन्दर सपना बीत गया।''
पास में बैठी टुनटुन जो गायिका होने के साथ साथ 'लेडी कॉमेडियन' भी थी, लोगो के कहने पर कुछ थिरकी तो लोगों ने ठहाके लगाये।
गीता दत्त को पंडितजी के सानिध्य में जरूर कुछ चैन मिला होगा,तभी पंडितजी से प्रभावित गीता दत्त इस गली में अनेक बार गुपचुप आईं। उनके बेटे केसी शर्मा को अपने साथ मुंबई ले गईं। उन्हें फ़िल्मी दुनिया से जोड़ दिया। आज केसी शर्मा का बेटा अनिल शर्मा बॉलीबुड का जाना पहचाना फ़िल्मी प्रोड्यूसर है। मथुरा की पाश कॉलोनी डेम्पीयर नगर में एक हनुमानजी का एक मंदिर है। यह मंदिर गीता दत्त ने पंडितजी के कहने पर बनबाया था। दुःख कि बात है ,इस मंदिर के किसी भी कोने पर गीता दत्त एक नाम नहीं उकेरा गया है।
(3) तीसरी अभिनेत्री फिल्म 'शोले ' से शोहरत के शिखर पर पहुंची 'ड्रीम गर्ल ' हेमा मालिनी है। बालीबुड में सब कुछ मिलने के बाद हेमा ने अपनी दुनिया को विस्तार दिया और राजीनीति में दाखिल हुईं। लेकिन उनका वृंदावन प्रेम उनके राजनीति में प्रवेश के बहुत पहले का है। तीन दशक पूर्व मैंने उन्हें मथुरा रेलवे स्टेशन पर अपनी दोनों बेटियों के साथ मुंबई जाने वाली ट्रेन ' अगस्त क्रांति ' का इन्तजार करते देखा था। तब हेमा ने मुझे बताया था अपनी कृष्ण भक्ति और वृंदावन के इस्कॉन मंदिर के बारे में।
अपने कृष्ण -राधा प्रेम की आगे की कहानी हेमा ने हाल ही में प्रकाशित कॉफी टेबल बुक 'चल मन वृंदावन ' के सम्पादकीय में उजागर की है। हेमा इस किताब की मुख्य संपादक हैं। हेमा ने लिखा है ---'' सन 2014 में पार्टी ने उन्हें लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों के नाम सुझाये गए । मैंने मथुरा और सिर्फ मथुरा से ही चुनाव लड़ने की शर्त रखी थी।'' अभिनेत्री वनमाला की तरह हेमा भी वृंदावन के 'राधा रमन मंदिर' की भक्त है। हेमा ने पिछले नौ साल के वृंदावन -प्रवास में इस मंदिर के प्रांगण में कई बार अपनी नृत्य -नाटिका प्रस्तुति की है। (आगरा के कलमकार अशोक बंसल की कलम से)
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