नईदिल्ली। यूपी का शो-विंडो गौतमबुद्धनगर जिला सपनों के घर का कब्रगाह बन गया है। जिंदगी की गाढ़ी कमाई के साथ पेट काटकर बच्चों के लिए एक घर का सपना संजोए तमाम लोग इस दुनिया से चले गए लेकिन घर तो दूर आज उनके वारिश किराए के मकान में रहकर बैंक की ईएमआई भर रहे हैं। गौतम बुद्ध नगर जिले के ऐसे लाखों फ्लैट खरीदारों को राहत देने के लिए केंद्र सरकार के निर्देश पर गठित अमिताभ कांत कमेटी की रिपोर्ट अभी सरकार को सौंपी गई हैं लेकिन जो खबरें आ रही हैं उसे सुनकर भी खून के आंसू रो रहे घर खरीदारों को राहत मिलती नहीं दिख रही हैं। खासकर जिन घर खरीदारों के बिल्डर अपने को दीवालिया घोषित कर दिए हैं।
मणिपुर में हिंसा की खबर को स्वत:संज्ञान लेने वाला सरकारी सिस्टम भी उनके नाक के नीचे बैठे लाखों घर खरीदारों की पीड़ा नहीं दिखाई दे रही है। दीवालिया हो चुके बिल्डरों के प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए आईआरपी जो नियुक्ति गए हैं वह भी एक साल के बाद भी किसी प्रोजेक्ट को पूरा कराना तो दूर एक ईंट भी नहीं रखवा सके हैं। केंद्र सरकार की तरफ से घर खरीदारों को राहत देने के लिए जिस अमिताभ कांत की रिपोर्ट की मीडिया में खूब चर्चा हो रही है,उसमें घर खरीदारों के फ्लैट रजिस्ट्री की राह खुलती तो दिख रही है लेकिन दीवालिया हो चुके बिल्डरों के प्रोजेक्ट को पूरा करने की दिशा में कुछ दिखाई नहीं दे रहा है। नोएडा में एक लाख से ज्यादा लोग के सपनों का घर दीवालिया हो चुके बिल्डरों के प्रोजेक्ट में फंसे हैं। लाखों रुपये देने के बाद किराए के घर में रहकर बैंक की ईएमआई,घर का किराया के साथ परिवार को किसी तरह पाल रहे लोगों के दर्द को कैसे दूर किया जाएगा इस बारे में कोई सोचना दिखाई नहीं दे रहा है। अमिताभ कांत कमेटी के गठन से पहले दीवालिया हो चुके प्रोजेक्टों में फंसे घर खरीदारों को जो उम्मीद जगी थी वह अब टूटती नजर आ रही है।
बिल्डरों के दीवालिया हो चुके प्रोजेक्टों में फंसे हजारों घर खरीदारों की पीड़ा को दूर करने के लिए अभी तक न सरकार से कोई पहल होती दिख रही है न ही सिस्टम की तरफ से। सुपरटेक ईकोविलेज 2 के जो खरीदार ईएमआई के साथ घर का किराया देकर एक छत के लिए संघर्ष कर रहे हैं,उनकी पीड़ा अथाह है। आशीष नरौली,श्रीकांत कुमार, जयदीप रंजन,पर्वत पटौदा, संदीप भोले, कौशल उपाध्याय, विपिन ठाकुर, राज दीक्षित,सैबल सेन गुप्ता, मधु अरोरा सहित सैकड़ों घर खरीदार ऐसे हैं,जिनके समझा में नहीं आ रहा है कि वह सिस्टम के किस चौखट पर न्याय के लिए मत्था टेके। इन घर खरीदारों की पीड़ा को सोशल मीडिया के साथ ईकोविलेज 2 के व्हाटसअप ग्रुप पर दिखाई देता है। इनके दर्द को देखकर किसी भी मेहनतकश इंसान का दिल दुख जाएगा लेकिन यह सिस्टम कब जागेगा? इस सवाल का जवाब जानने के लिए यह लोग सालों से संघर्ष कर रहे हैं। घर के लिए संघर्ष करने वालों में कोरोना महामारी में पति को खोने के बाद एक मासूम बेटी को लेकर जिंदगी का संघर्ष कर रही परोमिता बनर्जी भी ऐसी ही एक खरीदार है। बैंक की ईएमआई, घर का किराया व बच्ची की पढ़ाई के लिए हर महीने किस तरह संघर्ष कर रही है? यह पूछने पर उनके आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं, कहती है कोई हम सबका दर्द पूछने वाला नही है। परोमिता ही अकेली नहीं है सरोज अरोरा भी पति को खोने के बाद छत के लिए किस तरह लड़ रही है,इनका दर्द भी अथाह है। सुपरटेक ईकोविलेज-2 में घर बुक करायी जितनी घर की कीमत है उससे ज्यादा बैंक का ईएमआई दे चुकी है लेकिन न ईएमआई खत्म हो रही है न ही इनका दर्द। इनके दर्द पर आश्वासन का मरहम लगाने के लिए सरकार की तरफ से भी कोई पहल होती नहीं दिख रहा है। सुपरटेक ईकोविलेज 2 में घर खरीदने के बाद अभी तक सड़क पर संघर्ष कर रहे बायर्स की पीड़ा सोशल मीडिया पर अक्सर कभी आंसू तो कभी गुस्से के रूप में दिखाई देती है। इन घर खरीदारों की पीड़ा को देखकर भी सत्तापक्ष जहां खामोश है वहीं मणिपुर को लेकर शोर-शराबा मचाने वाले विपक्ष भी गूंगा हो गया है। अखबारों में बायर्स के दर्द को बिल्डरों के दबाव में जगह नहीं मिलती है, सोशल मीडिया पर ही इनके आंसू को देखकर तरस आता है। घर के लिए संघर्ष कर रहे होम बायर्स कभी राष्ट्रपति से ईच्छामृत्यु की मांग करते हैं तो कभी अधूरे प्रोजेक्ट पर तिरंगा ले जाकर आजादी का जश्न मनाते हैं। इन घर खरीदारों का कहना है आजादी का अमृत महोत्सव देश मना रहा है हम लोगों के लिए जिस दिन घर मिलेगा उस दिन अमृत महोत्सव होगा। नाउम्मीद के दौर में उम्मीद सिर्फ होम बायर्स को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से है। इनको उम्मीद है एक दिन दीवालिया हो चुके बिल्डरों के प्रोजेक्ट को पूरा करने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाएगा ताकि हम सब अपने घर में दााखिल हो चुके। वह दिन कब आएगा ? इसका जवाब हर होम बायर्स जानना चाह रहा है।
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