रविवार यानी अवकाश का दिन सामान्यतः हम लोगों के लिए घर बैठने के लिए नहीं होता । कहीं न कहीं निकलना चाहिए। इस बार हमारी घुमक्कड़ी का गंतव्य टाॅघनाक फाल स्टेट पार्क था। यह स्थान घर (पेनफील्ड) से लगभग 130 किलोमीटर दूर था। पर यह स्थान न्यूयॉर्क स्टेट में ही आता है । अमेरिका में झरना, झील और पार्क देखना मेरे लिए कोई नया अनुभव नहीं था। क्योंकि यह सब स्थान तो हम घूमते ही रहते हैं। कभी शहर में तो कभी नगर के बाहर।
उत्सुकता मन में यह थी कि देखें इस बार का अनुभव कैसे भिन्न रहता है। चूंकि दिन भर की यात्रा थी, अत: दोपहर का भोजन घर से लेकर निकले । सड़कें प्राय: खाली रहती हैं, इसलिए गाड़ियां तेजी से चलती हैं। रास्ते में अक्सर हम भजन सुनते हुए चलते हैं । कभी-कभी नन्हे रिवांश जी की प्रसन्नता को ध्यान में रखकर उनकी पसंद के गाने बजाने पड़ते हैं। वे कितने भी नाराज क्यों ना हों, लकड़ी की काठी काठी पर घोड़ा... गाना हमारे लिए ब्रह्मास्त्र की तरह ही काम आता है । इसतरह रास्तों का भले ही अंत ना हो, पर हम डेढ़ घंटे में अपने गंतव्य पर पहुंच चुके थे । घूमने के लिए चार-पांच घंटे अपने पास थे।
झरने के पास है केयुगा झील
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मोटे तौर पर टाॅघनाक का मतलब होता है जंगल के विशाल झरने । राकी पर्वत वाला यह इलाका जंगल से आच्छादित है। झरने से थोड़ी ही दूरी पर केयुगा झील है । आसपास का क्षेत्र पार्क के रूप में विकसित किया गया है। 750 एकड़ में फैला पार्क 1930 में राज्य पार्क के रूप में अस्तित्व में आया।
शहर से दूर प्रकृति की गोद में स्थित यह स्थान अत्यंत मनोरम है । टाॅघनाक झरने को देखने के लिए दो स्थान प्रमुख हैं। एक काफी ऊंचाई पर तो दूसरा बिल्कुल झरने की तलहटी में जाकर।
पहले हम ऊंचाई वाले स्थान पर पहुंचे। यहां से झरना काफी दूर दिख रहा था लेकिन झरने की धार को साफ-साफ देखा जा सकता था ।भीड़ बिल्कुल नहीं थी। झरने को अच्छे से देखने के लिए एक प्लेटफार्म जैसी जगह बनी हुई थी। यहां दूरबीन भी लगाई गई थी। कुछ पैसे डालने पर सुविधा का लाभ कोई भी उठा सकता है । नीचे झरने के आसपास भी लोग थे। लेकिन इतने दूर से वे बहुत छोटे-छोटे समझ में आ रहे थे।
देवेश जी ने बताया कि झरने को नीचे जाकर भी देखना है। इसलिए यहां से अब आगे बढ़ना चाहिए। कार पहाड़ों से उतरते हुए पार्किंग वाले स्थान पर पहुंची ।
पास में ही केयुगा झील थी। लेकिन हमें तो पहले झरने के पास जाकर देखना था। यहां पैदल चलने के लिए पगडंडी वाला रास्ता था बिल्कुल अपने देश के गांवों की तरह।
दोनों तरफ ऊंचे-ऊंचे दरख्त, जहां सूरज की रोशनी जमीन पर मुश्किल से पहुंचती थी। और एक ओर झरने का बहता पानी नजर आ रहा था। ऐसा लग रहा था कि हम जंगल में चले जा रहे हैं। वैसे तो डेढ़ किमी की दूरी कोई खास नहीं होती, लेकिन मानो काफी देर से हम पैदल चलते जा रहे थे।
कई बार मार्ग की घटनाएं भी हमें आनंदित होने का अवसर प्रदान करती हैं।
जैसे कोई बच्चा अपने पिता के कंधे पर सवार है, तो कोई उंगली पकड़े आगे-आगे चल रहा है। झरने के पहले एक छोटा सा लकड़ी का पुल पार किया। इसके बाद हम ऊपर से गिरते पानी के बिल्कुल करीब तक पहुंच गए। जहां तक आगे बढ़ने की इजाजत थी।
टाॅघनाक में दो झरने हैं। बड़ा वाला 215 फीट की ऊंचाई से गिरता है। यह उँचाई नियाग्रा फॉल से भी ज्यादा है । लेकिन सच कहा जाए तो नियाग्रा वाला मजा इसमें नहीं आया । क्योंकि झरना पानी के वेग और मात्रा पर निर्भर करता है । यहां कुछ वक्त बिताया। वापसी में छोटा झरना भी मिला।
जहां मेरे परिवार के लोग पगडंडी से लौट रहे थे , वहां मैंने झरने के पानी के पास-पास चलने में दिलचस्पी दिखाई। इसमें जब चाहे पानी में उतरने और इच्छानुसार बगल में चलने का अवसर था। इस तरह हम वहां पहुंच गए , जहां पर कार पार्किंग थी।
11 फिंगर लेक में शामिल है केयुगा
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अब केयुगा झील की ओर पद बढ़ने लगे । झील की लंबाई 60 किलोमीटर है । यानी सामने जो दिख रहा था झील उससे बहुत बड़ी थी। औसत गहराई 178 फीट है।
झील में नौकायन की सुविधा है। कुछ नहा भी रहे थे। पिकनिक मनाने आए ऐसे लोग भी थे , जो खाना बनाने में जुटे थे।
उद्यान के बोर्ड पर अंकित था कि जो भी अपने साथ लाएं उसे या तो कूड़ेदान में डालें अथवा साथ ले जाएं। कितनी अच्छी बात है, ऐसे में गंदगी का सवाल ही नहीं उठता । उसी प्रकार कुत्तों को चेन के साथ ले आने और रखने का निर्देश बोर्ड पर अंकित था।
केयुगा को 11 फिंगर लेक में से एक माना जाता है । उंगली के आकार वाली यह सभी झीलें न्यूयॉर्क राज्य के अंतर्गत ही आती हैं। झील के किनारे लगी बेंचों पर हमने खाना खाया।
पर्यटक स्थलों पर मैंने यहां ऐसे वाहन देखें जो देखने में बस जैसे लेकिन अंदर से घर जैसे कमरे होते हैं । इनमें वह सारी सुविधाएं होती हैं जो जरूरी हों, जैसे टॉयलेट ।
जहां मन हुआ वहां इसको लेकर पहुंच गए । मेरे ख्याल में तो होटल का खर्चा बच गया। हालांकि पता नहीं यह तरीका किफायती है अथवा महज शौक के लिए लोग इसे खरीद लेते हैं। यह सोचने में कितना अच्छा लगता है कि पहिए पर घर। और उसमें रात बिताना सचमुच मजेदार अनुभव होगा। इस तरह एक दिवसीय पर्यटन शाम होने पर अपने अंतिम पड़ाव की ओर बढ़ने लगा।
घर लौटने लगे तो रास्ते में अंगूर के बड़े-बड़े खेत देखे। देवेश जी ने बताया कि इनका उपयोग शराब बनाने में होता है। कई बड़ी-बड़ी कंपनियां अपने हिसाब से इनकी खेती भी कराती हैं। (काशी के कलमकार आशुतोष की कलम से )
क्रमश: ......
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