चार जुलाई को अमेरिका अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। तमाम शहरों की तरह रोचेस्टर में भी इस उपलक्ष्य में आयोजन होते हैं। मेरे लिए यह एक अवसर था। लेकिन जब यह ज्ञात हुआ कि शहर में अनेक स्थानों पर आयोजन होते हैं , तब यह मंत्रणा का विषय हो गया कि हमें कहां चलना चाहिए।
अपने देश की तरह ही अमेरिका में भी स्वतंत्रता दिवस पर खेलकूद प्रतियोगिताएं, परेड, आतिशबाजी आदि के कार्यक्रम कराए जाते हैं। मेरा आंकलन यही था कि खेलकूद नितांत स्थानीय होते हैं। इसलिए हम जैसों के लिए परेड और आतिशबाजी का आकर्षण अवश्य हो सकता है।
इसी के बाद अगला सवाल यह भी था कि परेड कहां देखनी है और आतिशबाजी के नजारे कहां पर सबसे दिलकश होंगे।
दामाद डॉ. देवेश जी ने समाधान सुझाया कि सुबह की परेड देखने हमें आयरनडेक्वाइट चलना चाहिए जबकि रात में आतिशबाजी के लिए शहर के मध्य में जेनसी नदी बांध का किनारा बेहतर होगा। दोपहर हम घर पर बिताएंगे।
वैसे भी स्वतंत्रता दिवस के दिन अमेरिका में छुट्टियां रहती हैं। लोग इसे फुल डे एंजॉयमेंट के रूप में लेते भी हैं ।
सुबह की परेड देखने के लिए हम आधे घंटे पहले ही पहुंच गए थे। घर से 13 किलोमीटर की दूरी यानी 15 मिनट का रास्ता था। अंग्रेजी के नाम जेहन में जल्दी टिकते नहीं हैं । इसीलिए ज्यादा गौर करना जरूरी होता है। आयरनडेक्वाइट इलाके में परेड टाउनहाल के टाइटस एवेन्यू से शुरू होनी थी।
सड़क के दोनों किनारों पर लोग बैठे हुए थे। कुछ तो अपने घर से कुर्सियां और छाते तक लेकर आए थे। इसी प्रकार मार्ग के किनारे पेड़ों के नीचे काफी लोग कार्यक्रम शुरू होने का इंतजार कर रहे थे ।
दर्शकों के बीच छोटे बच्चों से लेकर बूढ़े तक हर उम्र के लोग देखे जा सकते हैं। यहां तक कि ह्वील चेयर पर भी स्वतंत्रता दिवस का आयोजन देखने लोग पहुंचे थे।
रोचेस्टर में आजकल गर्मी का मौसम चल रहा है । तापमान भले ही अभी तक 30 डिग्री सेल्सियस से ऊपर नहीं गया है । पर पता नहीं क्यों धूप तेज लगती है। हम बनारस वालों के लिए भी आधे घंटे धूप में बैठना बड़ा मुश्किल हो जाता है। यहां कई लोग पानी की बोतलें साथ लाए थे । ध्यान देने वाली बात यह है कि यह कार्यक्रम सरकारी नहीं था। आम लोगों की सहभागिता थी।
इस बीच सड़क के किनारे बनाए गए स्टेज से स्कूली बच्चों ने राष्ट्रगान प्रस्तुत किया। मैंने गौर किया कि जहां तक राष्ट्रगान की आवाज पहुंच रही थी, सभी लोग अपने स्थान पर खड़े हो गए थे। यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि अमेरिका का राष्ट्रगान ( The Star Spangled Banner ) स्वाधीनता मिलने के काफी बाद फ्रांसिस स्काॅट की द्वारा 1814 में लिखा गया था। और 1931 में इसे राष्ट्रगान का दर्जा दिया गया था।
परेड में दिखी देशभक्ति की झलक
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दर्शकों की तरह परेड में भी हर उम्र के लोग शामिल थे। एक-दो साल के नन्हे-मुन्नों से लेकर वयोवृद्ध तक। तरह-तरह के वाहन भी कतार बद्ध चल रहे थे । उनमें बैठे लोग कभी टाफी-चाकलेट आदि सड़क के किनारे लोगों के बीच फेंकते बांटते जा रहे थे । जिनको लेने के लिए खासकर बच्चों में बड़ी होड़ दिखी। पर अनुशासन अपनी जगह कायम रहा। कहीं कोई छीना- झपटी नहीं। देने वाला भी हंसते हुए दे रहा था और पाने वाला भी मुस्कुराता हुआ दिखा।
खुशी जाहिर करने के लिए हाथ हिलाना एक परंपरा है और यह परंपरा पूरी उमंग के साथ निभाते हुए मैं लोगों को देख रहा हूं । इस परेड में स्कूली बच्चे भी थे । क्योंकि स्कूल के बैनर पर नाम लिखा हुआ दिख रहा था । बैंड बजाते लोग भी जुलूस का हिस्सा थे।
जश्ने आजादी में शरीक लोगों के चेहरों पर मुस्कुराहट थी। धूप में चलते-चलते कुछ लोग पसीने से तरबतर भी हुए।
जहां पर हजारों लोग इकट्ठा हों, वहां भी पुलिस की भूमिका बहुत सीमित दिख रही थी। रास्ते को अन्य वाहनों के लिए रोक दिया गया था। इसके लिए पुलिस वाहन सड़क के बीच में खड़ा कर दिया गया।
फोटोग्राफी करने वाले मेरे जैसे लोग बहुतेरे थे, लेकिन वे भी सड़क पर नहीं पटरियों पर सक्रिय थे। डेढ घंटे की परेड देखकर घर लौटते वक्त मन यही सोच रहा था कि कायदे-कानून और अनुशासन की अपने देश के विकास में सचमुच महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
......और रात में मौज-मस्ती
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आतिशबाजी का कार्यक्रम रात दस बजे से था, लेकिन हम डेढ़ घंटे पहले ही पहुंच गए थे। कार्यक्रम मुख्य नगर में था जिसे अंग्रेजी में डाउनटाउन कहा जाता है। जगह थी जेनसी नदी का किनारा। यहां पर बांध बना है। नदी का पाट छोटा है और उस पर दो छोटे-छोटे पुल बने हुए हैं ।
इनका नाम भी जान लेते हैं। एक पुल को ब्रॉड स्ट्रीट कहा जाता है जबकि दूसरे को कोर्ट स्ट्रीट। अपने घर से यह स्थान साढे 17 किमी दूर है। जेनसी वह नदी है जो रोचेस्टर के कई झरनों में दिखाई देती है। इस नदी की लंबाई 253 किमी है और रोचेस्टर में ही यह ओंटारियो झील में मिल जाती है।
यह स्थान मोनरो काउंटी के अंतर्गत आता है। चूंकि हम समय से पहले पहुंच गए थे । इसलिए आसपास घूमने का मौका था।
सर्वप्रथम जेनसी रिवर के किनारे पहुंच गए क्योंकि आतिशबाजी यहीं पर होनी थी । लोग धीरे-धीरे जुटने लगे थे । आसपास बहुमंजिली इमारतें हैं। नदी पर बने बांध से गिरते पानी को देखना और जाली लगी रेलिंग वाले नदी के पक्के किनारों पर टहलना बड़ा अच्छा लग रहा था।
लेकिन रुकना यही नहीं था। हम और आगे बढ़े तो पास ही में टाइम्स स्क्वायर नामक टावर दिखा । मुझे तो अभी यही मालूम था कि यह स्क्वायर न्यूयॉर्क में मिलेगा ।
अब चूंकि रोचेस्टर में टाइम्स स्क्वायर है तो तस्वीर खिंचवाने से मुझे कहां देर लगती। न्यूयॉर्क न सही, मिनी टाइम्स स्क्वायर तो इसे कह ही सकते हैं।
रोचेस्टर का यह बहुत ही शानदार इलाका है । ऊंची-ऊंची इमारतें हैं।यहीं पर सेंट्रल लाइब्रेरी भी दिखी। जो इस समय बंद थी । अगर दिन का समय होता तो पता चलता कि किताबों को पढ़ने वाले लोग आजकल कितने हैं।
रास्ते में एक सज्जन रोशनी के साथ करतब दिखा रहे थे। कौन जाने उनका कार्य स्वांतः सुखाय था अथवा उसके पीछे कोई आर्थिक प्रयोजन भी था ।
घूमते- घूमते हम वापस वहां पहुंच गए , जहां से रात में आतिशबाजी का आनंद अच्छे से लिया जा सकता था। यह जगह थी सात मंजिली कार पार्किंग।
सबसे ऊपरी मंजिल पर कार पार्किंग इसीलिए की, ताकि नदी पर होने वाली आतिशबाजी को ठीक से देखा जा सके। आतिशबाजी शुरू होने से पहले ही नदी के आसपास काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। सुबह की तरह ही हर आयु वर्ग के लोग यहां थे। बस फर्क सुबह-शाम में जो मैंने साफ-साफ महसूस किया, वह था कि सुबह देशभक्ति का जज्बा अलग था। क्या उत्साह था? लोगों ने चेहरों पर भी अमेरिकी झंडे बना रखे थे। पर रात में ऐसा कुछ भी नहीं दिखा। आतिशबाजी सबके लिए थी फिर भी उसे देखने का तरीका एक नहीं था। बहुत से लोग आतिशबाजी का आनंद ले रहे थे। कुछ ताश खेल रहे थे। कुछ पीने पिलाने में ही मगन थे।
कुछ की रुचि तेज आवाज में गाने सुनने में थी। कुछ मेरी तरह फोटोग्राफी में तल्लीन थे। इस भीड़ में कुछ ऐसे युवा भी थे जिनकी आतिशबाजी और अपने साथी दोनों में बराबर की दिलचस्पी थी ।
रात दस बजे आतिशबाजी शुरू हुई और 15 मिनट तक अविराम आकाश रंग- बिरंगा होता रहा। शायद इतने समय की ही अनुमति रही होगी । वैसे इस संबंध में कुछ कहना मुश्किल है। क्योंकि शहर में भी दूर-दूर तक प्रकाश की रंगीन आकृतियां आसमान में देर तक उभरती रहीं। जिससे समझ में आ रहा था कि पूरे शहर में जश्न मनाया जा रहा है।
अब यदि जश्न स्वतंत्रता दिवस पर हो तो ऐसे में कुछ वक्त के लिए प्रदूषण का मुद्दा नेपथ्य में ही रखना उचित होगा। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश: .......
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