जम्मू-कश्मीर में जब आप रहने लगते हैं तो आपका सेना और अन्य अर्द्धसैनिक बलों से लगाव बढ़ जाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था। दिन भर सेना, पुलिस और सीआरपीएफ से जुड़ी खबरें और आतंकवाद ही लिखने को रहता था। वो काला 14 फरवरी का दिन अपनी जिंदगी में नहीं भूलूंगा। दोपहर तीन बजे के करीब फोन बजा की जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर जवानों पर हमला हुआ है। हमें लगा हमेशा की तरह होगा। फिर पांच मिनट बाद फोन आता है कि 10 जवान शहीद हो गए अभी कुछ समझ पाते उतनी देर में फोन आया कि 18 जवान शहीद हो गए। मैं होश संभाले खबर लिखना शुरू कर ही चुका था कि पता चला कि शहीदों की संख्या 30 पार कर चुकी है। घटना के 30 मिनट में यह ही नहीं समझ आ रहा था कि आखिर में हुआ क्या है। हमारे कश्मीर के सीनियर रिपोर्टर Amrit Pal Singh Bali जी का फोन आया कि भाई फिदायीन हमला हुआ है। शहीदों की संख्या 40 पार कर सकती है। इतना सुनते ही हाथ पैर मेरे फूल गए। आंखें नम मगर खबर तो लिखनी ही थी। कुछ ही देर में तस्वीरें आईं जिसे देख मैं अपने आंसू नहीं रोक सका। सड़कों पर शहीद जवानों की लाशों के टुकड़े बिखरे हुए थे। पूरी रात मैं ऑफिस में काम करता रहा। मैंने 36 घंटे लगातार शिफ्ट की। एक-एक शहीद जवान की फोटो, उसका नाम, कहां का रहने वाले थे ये सब जानकारी जुटाई। सच मानिए रो-रोकर उस दिन खबरें लगाईं। भगवान करें कभी ऐसा दिन दोबारा पत्रकारिता के जीवन में देखने को न मिले। (नवभारत टाइम्स नईदिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार प्रांजल दीक्षित की कलम से)
जम्मू-कश्मीर में 14 फरवरी को वह काला दिन जिंदगी में नहीं भूलूंगा
अगस्त 12, 2023
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जम्मू-कश्मीर में जब आप रहने लगते हैं तो आपका सेना और अन्य अर्द्धसैनिक बलों से लगाव बढ़ जाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था। दिन भर सेना, पुलिस और सीआरपीएफ से जुड़ी खबरें और आतंकवाद ही लिखने को रहता था। वो काला 14 फरवरी का दिन अपनी जिंदगी में नहीं भूलूंगा। दोपहर तीन बजे के करीब फोन बजा की जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर जवानों पर हमला हुआ है। हमें लगा हमेशा की तरह होगा। फिर पांच मिनट बाद फोन आता है कि 10 जवान शहीद हो गए अभी कुछ समझ पाते उतनी देर में फोन आया कि 18 जवान शहीद हो गए। मैं होश संभाले खबर लिखना शुरू कर ही चुका था कि पता चला कि शहीदों की संख्या 30 पार कर चुकी है। घटना के 30 मिनट में यह ही नहीं समझ आ रहा था कि आखिर में हुआ क्या है। हमारे कश्मीर के सीनियर रिपोर्टर Amrit Pal Singh Bali जी का फोन आया कि भाई फिदायीन हमला हुआ है। शहीदों की संख्या 40 पार कर सकती है। इतना सुनते ही हाथ पैर मेरे फूल गए। आंखें नम मगर खबर तो लिखनी ही थी। कुछ ही देर में तस्वीरें आईं जिसे देख मैं अपने आंसू नहीं रोक सका। सड़कों पर शहीद जवानों की लाशों के टुकड़े बिखरे हुए थे। पूरी रात मैं ऑफिस में काम करता रहा। मैंने 36 घंटे लगातार शिफ्ट की। एक-एक शहीद जवान की फोटो, उसका नाम, कहां का रहने वाले थे ये सब जानकारी जुटाई। सच मानिए रो-रोकर उस दिन खबरें लगाईं। भगवान करें कभी ऐसा दिन दोबारा पत्रकारिता के जीवन में देखने को न मिले। (नवभारत टाइम्स नईदिल्ली के वरिष्ठ पत्रकार प्रांजल दीक्षित की कलम से)
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