यह दल वाराणसी से ट्रेन द्वारा हरिद्वार पहुंची वहां से सड़क मार्ग द्वारा प्रसिद्ध बद्रिविशाल धाम होते हुए भारत का सीमांत गांव माणा पहुंची यहीं से अभियान की चुनौती शुरु होती है। दल ने यहां दो दिनों तक एक पहाड़ी होम स्टे में रुक कर वातानुकूलन व आगे के लिए तैयारी किया, दल ने तीसरे दिन भीमपुल, वसुधारा प्रपात और चमतोली बुग्याल को पार करते हुए लक्ष्मी वन पर अपना पहला आधार शिविर लगाया इसकी उंचाई लगभग 13900 फिट है इसके दूसरी ओर अलकापुरी है जो अलकनंदा नदी का उद्गम (स्नाउट) है। लक्ष्मीवन में भोजपत्र के जंगल है, भोजपत्र ऊँचाई पर होने वाला सबसे अंतिम पेड़ माना जाता है जिसके छाल पर प्राचीन समय में लेखन कार्य होते थे, इसके उपर केवल घास व झाड़ियां ही उगती है। एक रात्रि प्रवास के बाद अगले दिन दल ने अपने अगले पड़ाव चक्रतीर्थ के लिए 11 किमी की कठिन चढ़ाई की रास्ते में सुन्दर सहस्त्रधारा और उफान मारती पागल जलधाराओं को पार कर चक्रतीर्थ पहुंचें जिसकी ऊँचाई लगभग 14900 फिट है यह एक सुन्दर हरा भरा मैदान है जिसके एक ओर नीलकण्ठ पर्वत दूसरे ओर सतोपंथ ग्लेशियर मौजूद है, ठंड अधिक थी लिहाजा दल के सदस्यों ने जंगल से सूखी झाड़ियों को इकट्ठा कर रात में यादगार कैम्पफॉयर का आयोजन किया। अगले दिन चक्रतीर्थ से सतोपंथ का डगर केवल 4 किमी का था लेकिन रास्ता अति दुर्गम था, ग्लेशियर, उंचे ढलान, मोरेन, बड़े चुकिले चट्टानों को पार करना अपने में चुनौती थी थोड़ा भी लापरवाही हादसे में बदल सकती थी। दल ने साहसपूर्वक इसे पार कर लिया और अपना शिविर सतोपंथ झील के एकदम नजदीक लगाया। सतोपंथ तीन पहाड़ियों से घिरा सुरम्य झील है जो समय के साथ जमती-पिघलती रहती है, यह समुद्र तल से 15100 फिट की ऊँचाई पर स्थित है। टीम ने सतोपंथ के नजदीक ही अपनी अंतिम शिविर लगायी जहां से अगले दिन हाईटगेन कर लौटना था यह पूरा इलाका रहस्य और रोमांच से लवरेज है, अगले दिन यहीं से दल ने चन्द्रकुण्ड और उसके आगे की चढ़ाई की जहां की उचांई समुद्रतल से लगभग 17500 फिट थी पूरा टीम स्वर्गारोहिनी के गोद में पहुंच गया था, बादल नीचे तैर रहें थे और दल बादलों से उपर था मौसम खराब होने की वजह से आगे जाना सम्भव नही था। सबने वहां तिरंगे के साथ विश्वविद्यालय का पताका फहराया यहा इस अभियान का सर्वोच्च बिन्दु था। यही स्नो क्रॉफ्ट की प्रैक्टिस हुई जिसमें सभी ने बर्फ पर बपने बचाव की तकनीक सीखा। इस प्रकार यह पूरा दल अपने तय सिड्युल के अनुसार कल वाराणसी वापसी की है जहॉ केन्द्र प्रभारी सहित छात्र-छात्राओं ने दल का पुष्पहार पहनाकर स्वागत किया। छात्र-छात्राओं का दल इस प्राकर है- लीडर- संदीप कुमार, डीप्टी लीडर- आयुषी सिंह, सहायक अनिल यादव, मेडिकल ऑफिसर- वैभव सिंह, इन्फोर्मेशन ऑफिसर- ओजस्वी गुप्ता व अभिषेक कुमार, इक्यूप्मेंण्ट ऑफिसर- श्रीराम शर्मा, ट्रांसपोर्ट ऑफिसर- मेनकी गुप्ता व नीरज सिंह माटे, क्वार्रटर मास्टर- शिवम कुमार व विनिता कुमारी, लगेज ऑफिसर- अंशिका सिंह व तृप्ती सिंह,एनवायरमेंटल लीडर - अर्चना मौर्या, रिक्रिएशन ऑफिसर- अदिति तिवारी शामिल हैं।
दरसल यह पुरा इलाका पौराणिक कथाओं और महाभारतकालीन आख्यानों से भरा पड़ा है महाभारत के स्वर्गारोहिणी पर्व के अनुसार यह वहीं मार्ग है जिस पथ पर द्रौपदी समेत पांडवों ने स्वर्ग की ओर प्रस्थान किया था, किन्तु अधिक दुर्गमता के चलते एक-एक कर सबने अपने प्राण गवाएं (युधिष्ठिर को छोड़ कर) इसमें क्रमशः द्रौपदी ने भीमपुल पर, नकुल ने लक्ष्मी वन पर, सहदेव ने सहस्त्र धारा पर, अर्जुन ने चक्रतीर्थ पर, और भीम ने सतोपंथ झील पर अपने प्राण गवाएं इसके आगे केवल युधिष्ठिर और उनके साथ चल रहा एक स्वान ही आगे जा सका।
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/