संध्या के पांच बजे हैं। आसमान बिल्कुल साफ है। उधर दिनकर भी अपनी रश्मियों को समेटने की शीघ्रता में नहीं हैं। खूब चहल-पहल है । वैसे भी जुलाई के महीने में रात आजकल नौ बजे के बाद ही अपनी दस्तक देती है।
यह सब नजारा रोचेस्टर में ओंटारियो झील के किनारे का है । यह एक अच्छा पर्यटन स्थल है। इसे ओंटारियो झील बीच पार्क के नाम से जाना जाता है । पार्क 39 एकड़ में फैला हुआ है । यह स्थान रोचेस्टर शहर के उत्तरी हिस्से में पड़ता है। यद्यपि रोचेस्टर में ही डूरंड इस्टमैन बीच भी है । जिनके बारे में पाठक पहले ही पढ़ चुके हैं ।
अपने घर पेनफील्ड से यहां आने में बीस किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। पिछली दफा जब हम यहां आए थे, तब वह सर्दियों के दिन थे। जल्दी-जल्दी शाम हो जाती थी। ज्यादा लोग भी नहीं थे। ठंड के कारण वह रौनक भी नदारद थी, जो इसबार चहुंओर दिख रही थी।
ओंटारियो झील से सटा हुआ रोचेस्टर बंदरगाह है। यहां पर स्टीमर और मोटरबोट ढेर सारी दिखाई पड़ती हैं। यह बंदरगाह जहां पर बना है , वहां जेनसी नदी ओंटारियो झील से मिलती है। पार्किंग स्थान से हम आगे बढ़े , तो झील के रेतीले किनारे पर पहुंच गए।
दूर-दूर तक रेत पर और पानी में भी काफी लोग दिख रहे थे। मुझे लगा कि पानी उतना साफ नहीं है। जैसे समुद्री लहरें होती हैं , उसी तरह यहां भी थीं। इन लहरों का पानी में उतरकर लुत्फ उठाने वालों में अधिकतर युवा और बच्चे थे। बच्चे अभिभावक की निगरानी में थे और सब की निगरानी करने वाली गार्ड ऊंचे स्थान पर लाउडस्पीकर लेकर बैठी थीं। दरअसल यह गार्ड लड़कियां थीं। अपनी सीट पर बैठे-बैठे अधिक गहरे पानी की तरफ बढ़ने वालों को चेतावनी देती रहती थीं। जबकि पानी में भी खतरे के संकेतक लगाए हुए थे।
बच्चे तो बच्चे ही होते हैं , चाहे देश कोई भी हो भाषा कोई भी हो । पानी में शरारत तो करेंगे ही। बालू में जगह-जगह अमेरिकन बच्चों को घरोंदे बनाते और बिगाड़ते देखकर यही लगता है कि अपने देश के बच्चे भी तो यही सब करते हैं। कपड़े गंदे होते हैं । बालों में बालू भर जाता है । रोकाटोकी कहां मानते हैं।
ऐसे ही प्रेरक वातावरण में अपने रिवांंश भी कहां पीछे रहने वाले थे। पानी में वह भी पिताश्री के साथ उतर आए। अगर रोका न जाता तो वह पूरा नहाकर ही निकलते।
इस भीड़ में बुजुर्गों की भूमिका थोड़ी अलग किस्म की और गंभीर दिखती है। कोई बालू पर हैट लगाकर बैठा है, तो कोई पेड़ की छांव तले बैठा सबको बस निहारता रहता है । अब वह कर्ता भाव से दृष्टा भाव में आ चुका है । मानो उसका भी कभी समय हुआ करता था। जो अब यादों के एल्बम में सिमट गया हो।
बालू पर धूप सेंकने वालों का यहां खूब चलन है। चूंकि मौसम खुशगवार है और लोगों को कोई हड़बड़ी नहीं है । जगह-जगह पर लोग कम कपड़ों में लेटे हुए दिखते हैं। सूरज की ऊर्जा को अपने तन में भरपूर समाना चाहते हैं । तन अधिक ढकने को लेकर यहां के लोग कदाचित खुले ख्यालात के होते हैं । पर अमेरिकन विचारों से तंगदिल कतई नहीं लगते हैं। यह अमेरिका की जीवन पद्धति में देखा जा सकता है ।
झील के किनारे से टहलते हुए हम आगे बढ़े और उस स्थान पहुंचे, जहां झील पर एक पुल बना हुआ था। लगभग एक किमी लंबा पुल होगा। जिसके आखिर में एक टावर वाले स्थान पर हम पहुंचे। जहां से तीनों तरफ सिर्फ पानी ही पानी था । पुल पर कुछ तफरीह कर रहे थे। कोई-कोई मछली पकड़ने के लिए पानी में कांटा डाले हुए उम्मीद लगाए बैठा था। झील में मछली पकड़ने के लिए कोई रोक टोक नहीं है। लेकिन लाइसेंस जरूर होना चाहिए।
नौकायन भी ओंटारियो झील का एक आकर्षण है। स्टीमर, मोटरबोट आदि यहां किराए पर मिलती हैं। कुछ लोग अपनी स्ट्रीमर लेकर भी पहुंच जाते हैं । जैसे घरों के सामने कारें खड़ी दिखती हैं, वैसे ही कुछ लोग स्ट्रीमर भी रखते हैं। जब मन हुआ कार के पीछे ट्राली में स्टीमर लेकर सुहाने सफर पर निकल पड़ते हैं।
सूर्यास्त होने में अभी भी काफी वक्त बाकी था। इसलिए प्रतीक्षा पर घर लौटने की इच्छा भारी पड़ गई। नतीजा पेनफील्ड की ओर हमारी कार दौड़ने लगी थी। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश: ....
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