सपरिवार पांच दिवसीय धार्मिक यात्रा पूरी करके लौटा हूं। तमिलनाडु में रामेश्वरम, आंध्र प्रदेश में श्रीशैलम स्थित मल्लिकार्जुन और महाराष्ट्र में पुणे के पास भीमाशंकर महादेव इन तीन ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके अलावा मदुरै में प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर में मां मीनाक्षी और महादेव के दर्शन का लाभ मिला।
सोमवार की सुबह दिल्ली से ये यात्रा शुरू हुई थी। फ्लाइट से पहले चेन्नई और फिर वहां से मदुरै पहुंचे थे। मदुरै एयरपोर्ट पर उतरने के साथ एक समस्या शुरू हो गई और वो थी भाषा की। टैक्सी वाले न तो ठीक से हिंदी जानते थे और न ही अंग्रेजी। खैर आनंद भाई की टैक्सी इंडिगो से रामेश्वरम के लिए चले। रात में रामेश्वरम पहुंचे, दर्शन के लिए विधि विधान का पता लगाया और खा-पीकर सो गए।
मंगलवार की सुबह 5 बजे रामेश्वरम मंदिर के लिए निकल पड़े। साढ़े पांच बजे हम लोगों ने मणि दर्शन किया। उसे बाद मंदिर से बाहर आए। मंदिर के पास बिल्कुल सटा हुआ है समुद्र तट। परंपरा के मुताबिक वहां हम लोगों ने स्नान किया। फिर मंदिर के भीतर 22 पवित्र कुओं के जल से स्नान। वहां द्वार पर ही कुछ लोग हाथ में बाल्टी लिए मिल जाते हैं। 100-150 रुपये की मांग करते हैं, अगर आपने मान लिया तो वो कुओं से बाल्टी भर भरकर आपको और आपके परिवार को ही नहलाएंगे। नहीं तो 25 रुपये प्रति इंसान की पर्ची कटती है। वहां 22 कुओं पर तैनात सेवादार बाल्टी से पानी निकालकर छिड़क देते हैं, ज्यादा उदारता मन में आई तो पूरी बाल्टी ही उड़ेल देते हैं।
स्नान पर्व पूरा करने के बाद वहीं पर कपड़े बदलने की भी जगह है, लेकिन ज्यादातर लोग भीगे बदन ही आगे जाते हैं। ऑफ सीजन में गया था, भीड़ ज्यादा थी नहीं, महादेव के दिव्य दर्शन हुए। लौटकर हम लोग अपनी धर्मशाला में आ गए। कुछ घंटों की नींद ली, फिर धनुषकोटि के लिए प्रस्थान कर गए। प्रकृति की सुंदरता की अनुभूति अद्भुत थी। नीला समंदर लहरा रहा था, भारतीय सड़क सीमा समाप्त हो गई थी, समंदर में ही 20 किलोमीटर दूर श्रीलंका की सीमा थी। वहां से लौटे तो एक बार फिर रामेश्वरम के दर्शन किए।
बुधवार की सुबह हम लोग मदुरै के लिए निकल गए। एक दिन पहले ही एक साथी ने कहा था कि तमिलनाडु में सबसे प्रसिद्ध मीनाक्षी मंदिर ही है, आपने अपनी लिस्ट में उसका नाम ही नहीं रखा है। तो फिर मीनाक्षी मंदिर गए। वहां एक सहयोगी मिल गए, जिनके सहयोग से दिव्य दर्शन हुए। अद्भुत मंदिर है माता मीनाक्षी का।
मदुरै से अगला पड़ाव था श्रीशैलम। फ्लाइट से पहुंचे हैदराबाद। हैदराबाद में ही रहती है नेहा। चैनल-7 में हम लोगों ने साथ काम किया था, वो रिश्ता आज भी बना हुआ है। दिल्ली की नेहा सोनी अब हैदराबाद में नेहा रेडडी बन चुकी है। समय कम था, कुछ घंटों का था, लेकिन आनंद बहुत आया। मेरा नवरात्रि का 9 दिनों का व्रत था, फलाहार वहीं बना। खूब गप भी हुई। हैदराबाद से सुबह 5.30 पर टैक्सी ली और दोपहर 12 बजे पहुंच गए श्रीशैलम। 36 डिग्री तापमान था, धरती जल रही थी। जूते-चप्पल काफी दूर उतारने पड़े। पांव जल रहे थे, लेकिन मंदिर में प्रवेश के बाद तो सब कुछ भूल गया। भगवान मल्लिकार्जुन के आगे घुटने टेककर उन्हें माथे से लगाया।
हैदराबाद से रात में पुणे के लिए ट्रेन थी। हैदराबाद में एएनआई के ब्यूरो चीफ प्रमोद चतुर्वेदी ने कहा कि आप घर पर ही आ जाइए, बगल में ही बेगमपेट स्टेशन है, वहीं से ट्रेन पकड़ा देंगे। प्रमोद भाई ने इस यात्रा में बहुत मदद की। प्रमोद जी के घर गए तो आजतक के पुराने साथी आशीष पांडेय भी आ गए। भोजन पानी के साथ चकल्लस हुआ। इन लोगों ने ट्रेन में बिठाया और सुबह 9 पहुंच गए पुणे।
पुणे में हमारे एक मुरीद आलोक दुबे रहते हैं। स्टेशन पर लेने आए थे, हम लोग उनके घर पहुंचे। वहीं पर स्नान-ध्यान के बाद व्रत का पारण हुआ। (आलोक जी और उनके परिवार की कहानी अगली पोस्ट में) खैर हम लोग निकल गए भीमाशंकर के लिए। 120 किलोमीटर का सफर. ऊंचे पहाड़ वाला रास्ता। रोमांचक सफर रहा। भीड़ बिल्कुल नहीं थी वहां। बहुत ही आनंद के साथ महादेव के दर्शन हुए। गर्भगृह में बैठकर पूजन का अवसर मिला। एक गजब काम हुआ। हमने प्रसाद लिया था खोए का। तीन पन्नियों में था। वहां कई बंदर थे। हम लोग मंदिर में बैठकर कुछ ध्यान कर रहे थे। इसी बीच एक बंदर आया, उसने सिर्फ एक पन्नी उठाई। बैठकर प्रसाद खाने लगा। आसपास के लोगों ने कहा कि आप सौभाग्यशाली हैं, महादेव को भोग लगा और हनुमान जी प्रसाद ग्रहण कर रहे हैं। रात साढ़े 10 बजे पुणे एयरपोर्ट पहुंचे। रात 11.45 बजे की फ्लाइट थी। सवा चार बजे तक घर आ गया। सोमवार से शुरू हुए सफर का शुक्रवार की देर रात या यूं कहिए कि शनिवार की भोर में समापन हुआ।
इस पूरी यात्रा के आनंद और अनुभव को एक पोस्ट में समेटना मुश्किल था, तो बहुत सी बातें छूट गई हैं। हां एक सबक मिला और मैं लोगों को बताना भी चाहता हूं कि तीर्थयात्रा करने के लिए बुढ़ापे का इंतजार मत कीजिए। घुटने सही हालत में हों, तभी कर लीजिए क्योंकि ज्यादातर तीर्थ, धाम, ज्योतिर्लिंग दुर्गम इलाकों में हैं। तमाम सीढ़ियां चढ़नी उतरनी होती हैं। अगर घुटने ठीक नहीं हैं तो जाने की जरूरत नहीं है। मेरा अभी भी मानना है कि अगर आपका हृदय निर्मल है। ईर्ष्या-द्वेष से दूर हैं। दूसरों की मदद करने की इच्छा मन में है, प्रेम आपके हृदय में है तो किसी भी तीर्थ में जाने की जरूरत नहीं है। भगवान आपके भीतर हैं, आपके आसपास ही हैं।
(टीवी न्यूज चैनल
न्यूज नेशन के वरिष्ठ पत्रकार
विकास मिश्र की
कलम से)
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