देवघर में बामाखेपा का क्या इतिहास रहा है,वो देवघर में कब आए थे...? और क्यों..?क्या आपको पता है देवघर को ब्रह्मांड के सात महाशमशान भूमि में से एक क्यों माना गया है। यहॉ की भूमि में वामा खेपा जैसे साधक भी अपने साधना में असफल रहे हैं क्यों..? "आओ जानें ...
चिता भूमि है देवघर
देवघर में ज्योतिर्लिंग के साथ ही शक्तिपीठ भी है. यहां माता सती का हृदय गिरा था. इसलिए इसे हृदयपीठ भी कहते हैं. हृदयपीठ के साथ-साथ देवघर की धरती को चिता भूमि के नाम से भी जाना जाता है. कहा जाता है कि भगवान शिव देवी सती के शव को लेकर जब तांडव कर रहे थे उस वक्त भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र से देवी सती का हृदय देवघर में ही गिरा था. मान्यताओं के अनुसार उस अंग का यहां देवता विधि-विधान पूर्वक अग्नि संस्कार करते हैं. इसी कारण ही इसे चिता भूमि कहते हैं. देवघर के बारे में मान्यता है कि आज भी यहां की मिट्टी की खुदाई करने पर अंदर से राख निकलती है. वहीं, जहां सती का हृदय गिरा है उसी स्थान पर ही बाबा बैधनाथ की स्थापना की गई है। पर एक बात बता दें कि देवघर में कभी नहीं पूरी होती है किसी कि साधना,
देवघर के शमशान को महाशमशान का दर्जा दिया गया है. तंत्र विद्या के क्षेत्र में देवघर का अपना महत्वपूर्ण स्थान है. जानकारों की मानें तो यहां कोई भी तांत्रिक अपनी साधना पूरी नहीं कर सका है. मां काली के महान उपासक बामाखेपा सहित कई महान तांत्रिकों के देवघर में तंत्र साधना के लिए पहुंचने के प्रमाण भी मिलते हैं लेकिन किसी की भी साधना यहां पूरी नहीं हो सकी है. शक्तिपीठ होने के कारण ही इसे भैरव का स्थान भी माना गया है। आइए अब जानते हैं बामा खेपा के बारे में :-
महायोगी बामा खेपा का पूरा नाम बामा चरण चट्टोपाध्याय था। उनका जन्म पश्चिम बंगाल के तारापीठ के समीप आटला गांव में हुआ था।
बामाखेपा का जन्म 1837, श्री रामकृष्ण के जन्म के एक साल बाद, अल्टा गाँव में तारापीठ के पास हुआ था। हालाँकि उनके माता-पिता गरीब ब्राह्मण थे, लेकिन बामखेपा के पिता सर्वानंद चटर्जी, अपने धर्मपरायण होने के लिए आसपास के क्षेत्र में प्रसिद्ध और सम्मानित व्यक्ति थे ,
यद्यपि बामाखेपा, विशेष रुप से देवी काली की पूजा करने के लिए नहीं जाने जाते, परंतु वह माता के महान उपासक थे और इनका जिक्र श्री रामकृष्ण के समकालीन ही किया जाना चाहिए। बामाखेपा का नाम वास्तविक नाम “बामा” था, लेकिन चूंकि उन्होंने अपनी शुरुआती युवा अवस्था से ही सांसारिक मामलों में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं दिखाई, जिस कारण लोग उन्हें पागल कहने लगे और उनके नाम के आगे खेपा (पागल) जोड़ दिया गया। खेपा एक ऐसा शब्द है जिसका इस्तेमाल ज्यादातर तांत्रिक और बऔल द्वारा किया जाता है और इसे सामान्य पागलपन से जोड़कर नहीं देखा जा सकता है। खेपा का अर्थ वास्तव में एक महान आत्मा के तौर पर माना जाता है। बामाखेपा ने माता के तारा रूप की विशेष रुप से पूजा अर्चना की और यह प्रसिद्ध तांत्रिक संत बन गए, जिन्होंने तारापीठ श्मशान घाट पर अपनी साधना का अभ्यास किया।
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/