भोजन में सब्जी स्वाद की क्यारियों में जायकों के फूल के जैसे होते है जिनमे कुछ मौसमी तो कुछ हमेशा खिलने वाले फूलों की तरह जिसमे स्त्रियों ने नित नए अन्वेषण करके इसे विविधताओं से भर दिया है। सब्जियां ऋतुओं के साथ होती हैं और इनके सम्मान की पराकाष्ठा है जिसे हमारे व्रत तीज त्योहारों और परम्पराओं से जोड़ दिया है। चैत के बीतने के साथ साथ सुहावने मौसम का अंत होता है और बढ़ती हुई गर्मी के साथ जल की आवश्यकता बढ़ जाती है। ऐसे में हर थाली में तरोई और नेनुवा का होना आम बात है क्योंकि इनमे गर्मी से लड़ने की कुदरती ताकत होती है जहां नेनुवा का क्षेत्र और पैदावार अधिक है वहीं इसे आंचलिक व्रत जियुतिया में जोडकर इसे और भी व्यापक बना दिया है कहीं इसके पत्तों पर पूजा होती है और कहीं इसके फल को खाया जाता है। इधर पूर्वी उत्तर प्रदेश बिहार और झारखंड में तरोई और नेनुवा के साथ साथ एक और सब्जी इसी परिवार से जुड़ी होती है नाम सरपुतिया नाम के हिसाब से ही छोटी नाजुक किंतु स्वाद में भरपूर ये सब्जी इन्ही क्षेत्रों में मिलती भी है जैसे जैसे अवध क्षेत्र की ओर हम बढ़ते है इसकी पैदावार घटती जाती है और लखनऊ पहुंचते पहुंचते या तो ये दिखती नही या फिर जो हमे दिखता है वो तरोई की बोनसाई प्रतीत होती है। जहां तरोई शीत ऋतु के पहले समाप्त हो जाती है वही नेनुवा तब तक ढेरों फूल लगते हैं नेनुवां के व्रत के समय ढेरों फूल की उपलब्धता इसे पूज्यनीय बनाता है वहीं सरपुतिया की अपनी अलग खासियत है इसके पुष्पदल में सात फूलों की कालिकाए लगती है एक साथ सात फल लगने के कारण इसे सरपुतिया नाम दिया गया होगा उधर अठारहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी हैजा और चेचक के प्रकोप से इन क्षेत्रों में व्यापक नुकसान होता था लोगों के बच्चे कालकवलित हो जाते गोंदें सूनी होती। बच्चो के लिए रखे जाने वाले जियुतिया के व्रत में सात फलों वाले सरपुतिया को इस मान्यता से शामिल किया कि जिस तरह इसमें सात फल लगते हैं उसी तरह इनका सात वंश चलता रहे । मान्यताएं और प्रथाएं भला कब समाप्त होती है भले ही जिन इलाकों में सरपुतिया नही मिलता वहा फूलो की बहुतायत वाले नेनुवा को वही स्थान मिला हुआ है। इन दिनो नेनुवा में ढेरों फूल आ रहे है अब सारे फूल फल तो बन नही सकते इसलिए इनके फूलो में भी व्यंजन को तलाश लिया है जो जायकों के सफर में एक सुहाना सफर है। बेहद हल्के होने के कारण दाम में भारी होना स्वाभाविक है वैसे भी पूरे बरस तो फूल आते नही इसलिए महंगा ही सही स्वाद तो मिलता है।
(यूपी के बस्ती जिले के कलमकार मयंक श्रीवास्तव की कलम से)
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/