एक दशक पहले इक रात की बात है!यही कोई एक बजे होंगे!आसमान में बिजली चमकने और तेज हवाएं चलने की आवाजें आने लगीं!पांच मिनट के अंतराल में ही तेज बारिश का सिलसिला शुरू हो गया!थोड़ी देर बाद मुझे नींद आ गई और सो गया!सुबह सात बजे जब नींद खुली तो बारिश की वही रफ्तार थी जो रात में थी!चारों तरफ पानी ही पानी था!काफी सालों के बाद गाँव में ऐसी बारिश देखने को मिली!दोपहर 12 बजे तक बारिश होती रही!ऐसे मैं मैंने बाबा से छाता लिया और गाँव के बाहर वाले तालाब की तरफ निकल पड़ा!तैरती मछलियों को देखना मुझे बहुत पसंद है!थोड़ी दूर ही चला तभी गाँव के ही चाचा के सात साल के बेटे ने कहा भैया बगीचे और खेत में भी मछलियां आ गई हैं!लोग उसको पकड़ रहे हैं!चाचा के बेटे के हाथ में भी तीन चार मछलियां थी!शहरों में बारिश के बाद अक्सर पालीथिन और बोतलें तैरते हुए देखने की आदत सी हो गई है!ऐसे में इन मछलियों को देखकर अंदर से काफी सुखद अनुभूति हुई!खेत और बाग के नज़दीक पहुंचा तो गाँव के दर्जन भर लोग हाथों से मछली पकड़ रहे थे!सभी के झोले में एक किलो से ज़्यादा छोटी मछलियां थीं!बारिश होने से छोटी मछलियां जैसे सेहरी,गिरई,सिंघी,टेंगना और बाम बहकर खेतों और बागों में पहुँच गईं थी!थोड़ी दूर चलने के बाद बड़ा वाला तालाब आ गया जिसे गाँव के लोग करकरा बोलते हैं!वैसे तो ये तालाब मछलियों के लिए ही जाना जाता है,लेकिन करीब पांच सौ बीघे में फैला ये तालाब मई और जून में अक्सर सूख जाता है!तालाब में पानी ज़्यादा होने की वजह से वहां मछली मारना अभी संभव नहीं है ऐसे में लोग उस नाले के किनारे मछली मारने के लिए इकट्ठा हो गए जो खेतों के बीच से निकलकर तालाब तक पहुंचता है!कई लोग हाथों में छोटे और मोटे डंडे लेकर नाले के किनारे खड़े हो गए और मछली मारने के लिए जुट गए!मुझे वहां देखकर लोगों ने कहा भैया आप कब आए और बारिश में यहां काहे आ गए!मैंने कहा बस ऐसे ही बचपन को फिर से जीने की चाहत खींच लाई!जाल डालकर मछली पकड़ना तो अक्सर दिख जाता है लेकिन हाथों से मछली पकड़ना और डंडों से मछली का शिकार करना प्रायः गावों में ही दिखता है!वहां पहुंचने के बाद मैं बीस साल पहले बचपन की उन पुरानी यादों में चला गया जब स्कूल जाते समय तीस से चालीस लोग डगन और कतिया लगाकर सड़क के किनारे मछली मारते थे!उस समय जंगलों के बीच से होते हुए जो नाला बहता था उसमें एक जाल लगाया जाता था!गाँव के लोग जाल उठाकर रोहू सहित अन्य बड़ी मछली घर ले आते थे!दूरदराज के लोग भी मछली लेकर जाते थे!मछली खाने के शौकीनों के लिए बारिश बरकत लेकर आती थी!फ्री में मछलियां सबको मिल जाती थीं बस तेल और मसाले का इंतज़ाम करना होता था!करीब एक घंटे तक लोगों को मछलियां पकड़ते हुए देखता रहा!पानी में बहती मछलियों को देखने का जो सुखद अहसास है उसे शब्दों में बयां कर पाना असंभव है!खास बात यह है कि ये मछलियां पाली नहीं जाती हैं!पता नहीं कहाँ से बरसात में ये यहां पहुंच जाती हैं!गावों में मछलियों की एक अलग दुनिया है और उससे जुड़े सैकड़ों किस्से हैं!लौटते समय गाँव के ही दो बुजुर्ग मिल गए जो जंगल में खजूर लेने गए थे!जबरदस्ती करीब पचास पकी हुई खजूर पकड़ाकर मुझे आगे बढ़ गए!गाँव हमेशा से ही मुझे आकर्षित करता है!पता नहीं क्यों मेरे सपनों में आलीशान इमारतें,महंगी गाड़ियों और मखमली सड़कों की जगह खेत,खलिहान,जंगल,तालाब और गाँव की पगडंडियां आती है!वजह शायद यही है कि पापा किसान हैं!अभी ये सब लिख रहा हूँ तो भी आंखों के सामने पानी में बचपन और मछलियां ही तैर रही हैं!मन नहीं माना तो कुछ तस्वीर भी खींच ली ! सावन शुरू होने की वजह से अभी गाँव के ज़्यादातर लोग मछली से दूरी बना लिए हैं!वाकई ये सपनों वाली बारिश है!
(नोएडा में दैनिक हिंदुस्तान के सीनियर रिपोर्टर रवि सिंह रैकवार की कलम से)
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