शिल्पी झा टाइम्स ऑफ इंडिया ग्रुप की बेनेट यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता विभाग की हेड हैं। रहती हैं गुड़गांव में, आईआईएमसी की पूर्व छात्रा है और आजतक में भी रही हैं। संयोग ये था कि दिल्ली और एनसीआर में रहते हुए कभी मुलाकात का मुहूर्त नहीं निकला। लेकिन देवघर में आया तो शिल्पी का फोन आ गया। बोली कि मेरी मां भी यहीं रहती है। मैं भी बच्चों के साथ देवघर आई हूं। बहुत अपनेपन से बुलाया। यह भी कहा कि आप आएंगे तो मेरी मां को बहुत अच्छा लगेगा।
सुबह तैयार होकर सबसे पहले शिल्पी के घर ही पहुंचे। वहां पर तो दृश्य ही अलग था। शिल्पी की माताजी तो जैसे हम लोगों पर प्यार लुटाने के लिए तैयार बैठी थीं। स्वागत हुआ लिट्टी से। बहुत ही स्वादिष्ट लिट्टी बनाई थी मम्मी ने। लिट्टी के बाद दही बड़े का नंबर था। कहानी यहीं नहीं खत्म हुई। गट्टे की सब्जी चावल और बैगन की भुजिया भी तैयार थी। रसमलाई कटोरियों में उतरी हुई थी। गए थे हम चाय पर लेकिन यहां तो बात लंच से भी आगे निकल गई थी। अपनत्व भरी खूब प्यारी बातें और जायकेदार भोजन का रसायन अंतः में घुल रहा था। निगाहें घड़ी पर भी थीं, क्योंकि 12.40 बजे दोपहर पुरी के लिए ट्रेन भी थी।
शिल्पी ने अपने बेटे को चाय बनाने को कहा, लेकिन ननिहाल घूमने आए नाती को भला उसकी नानी कैसे चाय बनाने देतीं। मम्मी ने कब चाय रखी और कब चाय बन गई, कोई जान ही नहीं पाया।
करीब घंटे भर वहां रहे। ममता की लहरों में गोते लगाते रहे। इस यात्रा में मां का प्यार मिलना भी विधाता ने लिखा था। इतनी प्यारी और इतनी प्यारी बातें करने वाली मां मिलीं, जिनका प्यार और उनके हाथ के बने खाने का जायका कभी भूलेगा नहीं। इस यात्रा की एक उपलब्धि एक और मां से मुलाकात भी रही। मां क्या होती है, मैं इसें अच्छी तरह समझता हूं, क्योंकि मैं अपनी मां को खो चुका हूं।
कोरोना काल में शिल्पी के घर पर कहर टूटा था। कोरोना काल में ही उनके पिताजी का निधन हो गया था परिवार पर जैसे बज्रपात हो गया। शिल्पी और उनकी बाकी तीन बहनों ने अपनी मां को संभाला अब वे इस सदमे से उबर गई हैं। देवघर में रहती हैं। साल भर घर पर लोगों का आना जाना लगा रहता है। चार बेटियां हैं। संयोग ये भी है कि चारों का विवाह विदेश में रहने वालों से हुआ है। शिल्पी कुछ साल पहले ही विदेश से लौटकर आई हैं। सभी बेटियां परिवार सहित मां के पास आती जाती रहती हैं। मैं भी उनसे वादा करके आया हूं कि अगली बार जब भी देवघर आऊंगा तो होटल में नहीं रुकूंगा बल्कि आप ही के घर रुकूंगा आपके हाथ का बना खाना खाऊंगा। बहुत बहुत धन्यवाद शिल्पी हमें बुलाने के लिए और मां से मिलाने के लिए
(टीवी न्यूज चैनल
न्यूज नेशन के वरिष्ठ पत्रकार
विकास मिश्र की
कलम से)
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