यह परसों का वाकया है। यह पता नहीं कहां से हमारे घर के पास आ गई। सड़क के कुत्ते इसे नोचने लगे। वह तो कहो कि उसी समय जोमैटो का एक डिलीवरी ब्वाय वहां से गुजर रहा था। उसने बाइक रोक कर इसको बचाया। इसकी चीखें सुनकर हम और पड़ोस के और लोग भी बाहर आए और उन आवारा कुत्तों को भगाया। मगर तब तक यह बुरी तरह घायल हो चुकी थी और जान बचा कर एक कार के नीचे घुस गई थी। बेहद डरी हुई और दर्द से बेचैन। हमने इसे पानी दिखाया तो पानी पी ली। फिर पुचकारा तो कुछ आश्वस्त हुई और बाहर निकलने को तैयार हुई। मैं गोद में उठाकर घर लाया। बुरी तरह कांप रही थी। पेट में कई घाव थे। बीटाडीन से घाव साफ किए। तभी देखा कि पीछे के दोनों पैर घसीट कर ही चल पा रही है। मैं और बेटी इसे लेकर वेट के पास भागे।
हम समझ रहे थे कि कोई पपी है पर डाक्टर ने बताया कि यह एडल्ट पामेरियन है। कम से कम सात आठ साल की। जिसके पास थी उसने इसे मेंटेन नहीं किया है। बेहद कमजोर है और पिछले पैर शायद पैरालिसिस से खराब हो गए हैं और इसीलिए इसके ओनर ने इसे छोड़ दिया होगा। डाक्टर ने ही बताया कि यह फीमेल है। हमने कहा कि किसी तरह इसकी जान बचाइये।
डाक्टर ने एंटी बायोटिक और दर्द निवारक इंजेक्शन लगाए। हमें आश्वस्त भी किया कि बच जाएगी। हम घर लाए और कुछ खिलाने की कोशिश की मगर उसने नहीं खाया। बस पानी पी रही थी। मेरी गोद आकर थोड़ी चैन में दिखी। बेटी ने ड्रापर से हल्दी मिला दूध पिलाया तो पी लिया। हमने उसे पानी और दूध पर ही रखा और दिन भर इंतजार करते रहे कि शायद कोई उसे ढूंढते हुए आए मगर कोई क्यों आता। खैर रात चैन से कट गई।
सुबह थोड़ी देर वह ठीक दिखी। बड़ी बड़ी आंखों से हम लोगों को निहारती। न जाने क्या कहना चाहती थी। कुछ देर बाद दर्द से चीखने लगी। शायद दर्द निवारक का असर खत्म हो गया था। हमने वेट को फोन किया और उसे लेकर फिर भागे। उन्होंने फिर इंजेक्शन लगाए मगर वह निढाल होती जा रही थी। डाक्टर ने जांच की तो बोले इसको इंटरनल ब्लीडिंग हुई है और इसे हम बचा नहीं पायेंगे। हम लोगों से शायद इसको इतनी ही सेवा लेनी थी। आपके पास बस कुछ ही मिनट हैं। घर ले जाकर इसके मुंह में ग॔गाजल डाल दीजिएगा।
हम उसे घर लाए मगर उसने रास्ते में ही शरीर छोड़ दिया था। फिर भी उसके मुंह में तुलसी दल और ग॔गाजल डाला और उसकी मुक्ति की प्रार्थना के साथ उसे दफनाया।
हमारे मन से क्रूर, स्वार्थी और निर्दयी उसके मालिक के लिए बद्दुआएं ही निकल रही थीं जिसने उस असहाय, बेजुबान को इस तरह मरने के लिए छोड़ दिया था।
वह सिर्फ चौबीस घंटे हमारे साथ रही लेकिन हमें रुला गई। हमने तो उसका नाम भी रख दिया था- बिजली! बिजली इसलिए क्योंकि हमारे घर में पहले से ही एक लैबराडोर है। उसका नाम बादल है। और बादल की समझदारी देखिए! उसने बिजली के आने पर कोई नकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दिखाई। बस उसे मेरी गोद में देखकर थोड़ा हैरान जरूर हुआ लेकिन उससे दूर दूर ही रहा और अपनी पसंदीदा जगहें भी उसके लिए छोड़े रखीं।
हमारा बादल बिजली के पत्थर दिल मालिक से तो बेहतर ही है। (कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ला की कलम से)
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/