काशी हिंदू विश्वविद्यालय के नामचीन चिकित्सक डॉक्टर विजयनाथ मिश्र पिछले कई साल से श्रीलंका में अशोक वाटिका जाकर उस स्थान का दर्शन करने का अभिलाषा पाले थे,जहां बजरंगबली के चरण पड़े थे। श्रीलंका में ही अशोक वाटिका से महज़ 20 किमी दूर स्थापित एक अद्भुत शिवलिंग का दर्शन-पूजन भी किया। शिवलिंग का दर्शन करने के बाद श्रीलंका में भ्रमण करने के दौरान उन्होंने महसूस किया कि भगवान बुद्ध के बाद अगर कोई दूसरी प्रतिमा बहुतायत में है तो वो है, भगवान भोले की पूजा करने के लिए शिवलिंग। श्रीलंका में शिवलिंग देखकर बीएचयू के चिकित्सक रोमांचित हो गए।
बजरंगबली के जहां चरण पड़े उस स्थान को देखने के बाद उन्होंने कहा श्रीलंका के अशोक वाटिका में भगवान हनुमान जिनके विशाल रूप के चरण के दर्शन करके अपने को धन्य महसूस करने के साथ अपने सभी शुभेच्छुओं के साथ काशीवासियों के कल्याण के लिए कामना भी किया। बजरंगबली के चरण को देखकर उनके मुख से निकल पड़ा-
“मोरें हृदय परम संदेहा | सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा ||
कनक भूधराकार सरीरा | समर भयंकर अतिबल बीरा ||”
अशोक वाटिका में माँ जानकी ने हनुमान जी के बाल रूप को देख, जब अपना संदेह प्रगट किया तब बजरंग बली ने, दिखाया अपना विशाल रूप, जिन्हें देख माँ के मन में संतोष हुए। आज भी यहाँ, भगवान हनुमान के विशाल रूप चरण के दर्शन यहाँ होते हैं, जहां वो माँ जानकी के सामने खड़े थे। श्री लंका में, अशोक वाटिका से २० किमी दूर, लंका जलाने के आगे से स्वयं भी झुलसे, सॉवला वर्ण रूप में लगभग ५० फीट ऊँची भगवान हनुमान जी, हाथ जोड़ कर, जैसे माता जानकी के सामने खड़े हो गये। श्रीलंका के अशोक वाटिका, से लगभग 50 किमी दूर एक छोटे से मंदिर में ये ऐतिहासिक दर्शन हुए। आज भी, यहाँ वानरों का ही राज है। वो यहाँ, बहुतायत में हैं। डॉक्टर विजय नाथ मिश्र का कहना है कि श्रीलंका में अशोक वाटिका पहुँच मन त्रेता युग में पहुँच गया। श्रीलंका में, लंकपति रावण के महल से अशोक वाटिका की दूरी लगभग 250 किमी है। अशोक वाटिका पहाड़ों वादियों और घने जंगलों में है और यहीं वर्तमान में “सीता माँ” मंदिर स्थापित है। मंदिर में, भगवान श्री राम सीता भैया लक्ष्मण जी हनुमान की स्वयंभू मूर्तियाँ हैं। साथ में गरुण जी, गणेश जी की मूर्तियाँ हैं। श्री लंका में लगभग १०० पर्वतों का एक समूह है, जो जड़ी बूटी से लदा हुआ है। ये जगह, रावण के क़िले सिगरिया से लगभग 150 किमी दूर है। क्या ये पर्वत समूह, उस पर्वत का हिस्सा हैं जिसे भगवान हनुमान, हिमालय से हाथों से उड़ा के संजीवनी बूटी ले आये थे? इसके साथ ही वह श्रीलंका में कछुओं, शार्कों, और अन्य समुद्री जीवों के चिकित्सालय में कुछ पल बिताये। अँघुल्ला, श्री लंका के इस अस्पताल में यहाँ विभिन्न प्रकार के कछुओं का संरक्षण और घायल कछुओं का इलाज होता है। शार्क की कई प्रजातियाँ भी हैं, और एक आश्चर्यजनक बात पता लगा कि शार्क के दो दिमाग़ होते हैं, और शार्क इन्हीं विशेष पहलुओं से उसमें कभी ना सोने का गुण है। एक दिमाग़ सोता है तो दूसरा काम करता है। कछुए के बारे में ग़ज़ब जानकारी मिली। उनके उम्र, उनके तैराकी, अंडा देने के लिए विशेष बीच और जलवायु का खोज। एल्बिनों (सफ़ेद कछुआ भी दिखा)। वो धूप में नहीं जाता। और जीवन कम होता है।
पूँछ बुझाइ खोइ श्रम धरि लघु रूप बहोरि।
जनकसुता के आगें ठाढ़ भयउ कर जोरि ||26 ||
मातु मोहि दीजे कछु चीन्हा | जैसें रघुनायक मोहि दीन्हा ||
चूड़ामनि उतारि तब दयऊ | हरष समेत पवनसुत लयऊ ||
कहेहु तात अस मोर प्रनामा | सब प्रकार प्रभु पूरनकामा ||
दीन दयाल बिरिदु संभारी | हरहु नाथ मम संकट भारी ||
तात सक्रसुत कथा सुनाएहु | बान प्रताप प्रभुहि समुझाएहु ||
मास दिवस महुँ नाथु न आवा | तौ पुनि मोहि जिअत नहिं पावा ||
(बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के प्रख्यात चिकित्सक डॉक्टर विजयनाथ मिश्र की श्रीलंका यात्रा की डायरी)
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