सत्तर-अस्सी दशक के जो लोग हैं उनकी जिंदगी में रेडियो का जितना मायने था, उतना आज की तारीख में स्मार्ट फोन क्या एप्पल फोन का भी नहीं दिखता। बस्ती में पिता जी रेडियो के बड़े शौकीन थे। घर में तीन बैंड का मरफी का रेडियो था। रेडियो रखने का लाइसेंस रखना होता था। बस्ती शहर में शिवनगर तुरकहिया में पिता जी की मेहनत व संघर्ष से जो इमारत खड़ी है उसके बगल में मुख्य डाकघर भी है। रेडियो का लाइसेंस फीस जमा करने के लिए पापा एकाघ बार भेजे। सरकार ने बाद में रेडियो से लाइसेंस हटा दिया। खैर बात रेडियो की जिसको लेदर कवर में रखा जाता था। रेडियो में सबेरे भजन से लेकर प्रादेशिक समाचार, रात नौ बजे का मुख्य समाचार सुनकर ही पापा भोजन करने के बाद विश्राम करते थे। प्रादेशिक समाचार सुनने में कुछ समाचार वाचकों की आवाज ऐसी थी जिनमें एक अलग ही चुंबक होता था। आवाज का जो चुंबक ऐसा था कि उसकी बात ही अलग थी। प्रादेशिक समाचार में यज्ञदेव पंडित की जो आवाज का जादू था वह अदभूत था,उसके कायल पापा ही नहीं हम भाई-बहन भी थे। गुरुपूर्णिमा पर लखनऊ आकाशवाणी से जुड़े आत्मप्रकाश मिश्र का यज्ञदेव पंडित के प्रति भावांजलि देखा तो अचानक दिल-दिमाग में फिर वहीं आवाज गूंजने लगी। अब आप पढ़िए आत्मप्रकाश मिश्र का गुरु यज्ञदेव पंडित के चरणों में अर्पित शब्दों को एक श्रोता की भावनाओं संग
यह आकाशवाणी का लखनऊ केंद्र हैं, अब आप यज्ञदेव पंडित से प्रादेशिक समाचार सुनिए.....
जुलाई 04, 2023
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1986 में मैं आकाशवाणी लखनऊ में कैजुअल न्यूज़ रीडर चुना गया था।
पहले पहल मुझे पांच दिनों की बुकिंग मिली, साठ रुपए प्रतिदिन के हिसाब से।
उन दिनों शाम सात बजकर बीस मिनट पर आकाशवाणी लखनऊ के मीडियम वेव से प्रसारित होने वाले समाचार काफी लोकप्रिय थे और इन्हे सामान्यतः रज्जनलाल, सोहन लाल थपलियाल(उर्मिल थपलियाल) या यज्ञदेव पंडित पढ़ा करते थे।
वैसे दस मिनट का एक बुलेटिन शाम पांच बजकर पचपन मिनट पर शॉर्ट वेव पर उत्तरायण कार्यक्रम से भी प्रसारित होता लेकिन वह पहाड़ों पर अधिक सुना जाता था मैदानों में कम।
अनुबंध के पहले दिन, मैं उन्नीस साल का नौजवान, सात बजकर बीस मिनट वाला मुख्य बुलेटिन पढ़ने की उत्कट अभिलाषा लिए न्यूज़ रूम पहुंचा।
अपने परिवार, दोस्तों और जानने वालों को यह बात मैं गर्व से बता भी चुका था कि आज शाम सात बजकर बीस मिनट पर मैं आकाशवाणी लखनऊ से प्रादेशिक समाचार पढ़ूंगा।
" आत्मप्रकाश जी आप उत्तरायण का बुलेटिन पढ़ेंगे, मुख्य बुलेटिन यज्ञदेव जी पढ़ेंगे" न्यूज़ रूम में कार्यरत जयकृष्ण पांडे जी(अब स्वर्गीय) का निर्देश सुन कर मैं सन्न रह गया।
काटो तो खून नहीं।
उस वाक्य ने मेरे आत्मविश्वास को चुनौती दी थी।
थोड़ी देर अवसर तलाशने के बाद मैं सीधा यज्ञदेव जी के पास गया। उनसे कहा कि मैं सबको बताकर आया हूं कि आज प्रादेशिक समाचार पढ़ूंगा, न पढ़ने की मैं कल्पना भी नहीं कर सकता।
" आप मुझ पर विश्वास करिए पूरा बुलेटिन बिना एक भी फंबल के प्रोफेशनली पढ़ूंगा"। मैने अपनी बात पूरी की।
पंडित जी ने मेरी बात गंभीरता से सुनी, चश्मे के पीछे से झांकती उनकी आंखें मानो मेरा कॉन्फिडेंस तौल रही हों।
धीरे से उठे, समाचार संपादक के कमरे में गए, उनसे मंत्रणा की और वापस आकर पांडे जी से बोले " बुलेटिन में आत्म प्रकाश का नाम टाइप कर दीजिए"
स्टूडियो की घड़ी ने सात बजकर बीस मिनट बजाए, रेडियो पर आवाज़ गूंजी...
" ये आकाशवाणी लखनऊ है अब आप आत्म प्रकाश मिश्र से प्रादेशिक समाचार सुनिए"
वह दिन और आज का दिन मेरे इकलौते ब्रॉडकास्टिंग गुरू श्री यज्ञदेव पंडित को मैने एकलव्य की भांति फॉलो किया।
96 वर्ष की आयु में उनकी आवाज़ की खनक आज भी बरकरार है।
विधि का विधान देखिए मुझ पर अपना आशीर्वाद बरसाने के लिए बीस बरस पहले पब्लिशिंग हाउस के पास वाला अपना घर छोड़ कर वो मेरे पड़ोस में विपुल खंड रहने आ गए।
वैसे मकान बदलने का पूरा क्रेडिट उनके छोटे बेटे और मेरे गहरे दोस्त विवेक को जाता है।
इत्तेफाक यह कि मेरे पिता मई 1927 में जन्मे और पितातुल्य पंडित जी नवंबर, 1927 में।
दोनो ने मुझे जीवन भर असीसा।
है न गज़ब का संयोग।
प्रभु श्री यज्ञदेव पंडित को शतायु करें।
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