बेलूर कर्नाटक के हासन जनपद में स्थित एक छोटा सा नगर है। यागाची नदी के तीर स्थित यह नगर चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ है। वेलापुरा के नाम से भी जाना जाने वाला यह एक प्राचीन एवं महत्वपूर्ण नगर है। यह 10 वी. से 14 वीं. सदी के मध्य कर्नाटक में राज्य करते होयसल साम्राज्य की राजधानी है। होयसल साम्राज्य अप्रतिम मंदिर वास्तुकला के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। वे कला, साहित्य तथा धर्म के महान संरक्षक थे। इसका एक जीत जागता उदाहरण है चेन्नाकेशव मंदिर। चेन्नाकेशव मंदिर स्थापत्य और मूर्तिकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मंदिर लगभग 900 साल पुराना है। प्राचीन समय में यह मंदिर 'द्वार समुद्र' के रूप में पहचाना जाता था जिसका अर्थ था 'समुद्र का द्वार'। इस मंदिर की शिल्पकारी इतनी उत्कृष्ट और बारीक है कि कई स्थानों पर मैग्नीफाइंग ग्लास की मदद से देखा जा सकता है। चेन्नाकेशव मंदिर को विजयनारायण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर अपनी वस्तुकला, मूर्तिकला, शिलालेख तथा इतिहास के लिए प्रसिद्ध है।
होयसल राजवंशी मूलतः पश्चिमी घाट के मलनाडू नामक क्षेत्र के थे। इन्हे युद्ध कौशल में विशेष रूप से निपुण माना जाता है। इन्होंने चालुक्य एवं कलचुरी वंशों के मध्य चल रहे आंतरिक युद्ध का लाभ उठाते हुए कर्नाटक के कई क्षेत्रों पर आधिपत्य स्थापित किया था। 13 वी. सदी तक उन्होंने कर्नाटक के अधिकतर क्षेत्रों, तमिल नाडु के कुछ क्षेत्रों तथा आंध्र प्रदेश व तेलंगाना के कई क्षेत्रों तक साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
होयसल वास्तुकला
होयसल काल को इस क्षेत्र का स्वर्णिम काल माना जाता है। दक्षिण भारत में कला, वास्तुशिल्प, साहित्य, धर्म तथा विकास के क्षेत्र में होयसल राजवश का अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आरंभ में बेलूर नगरी उनकी राजधानी थी। कालांतर में उन्होंने हैलेबिडु में स्थानांतरण किया जिसे द्वारसमुद्र भी कहते हैं। आज होयसल राजवंश को विशेष रूप से उत्कृष्ट होयसल वास्तुकला के लिए स्मरण किया जाता है।
बेलूर का चेन्नाकेशव मंदिर संकुल
चेन्नाकेशव मंदिर होयसल वास्तुकला के चित्ताकर्षक नमूनों में से एक है। असाधारण नक्काशी एवं उत्कृष्ट शिल्पकला के लिए इस मंदिर को स्थानीय रूप से कलासागर कहा जाता है। इसकी सुंदरता इतनी अभिव्यंजक है कि ये सभी निर्जीव पत्थर की कलाकृतियाँ अत्यंत सजीव प्रतीत होती हैं।
चेन्नाकेशव मंदिर का इतिहास
बेलूर के चेन्नाकेशव मंदिर का निर्माण १११७ ई. में विष्णुवर्धन ने करवाया था। वास्तुकला की इस उत्कृष्ट कलाकृति के निर्माण में राजवंश की तीन पीढ़ियों को १०३ वर्ष लग गए। ऐसा कहा जाता है कि पत्थर द्वारा इस वास्तुकला के निर्माण में १००० से भी अधिक कारीगरों का योगदान था।
यह मंदिर भगवान विष्णु के चेन्नाकेशव रूप को समर्पित है जिसका अर्थ है सुंदर (चेन्ना) विष्णु (केशव)।
यह मंदिर राजा विष्णुवर्धन द्वारा चोलवंश पर अर्जित की गई महत्वपूर्ण सैन्य विजय की स्मृति में निर्मित किया गया था। एक अन्य स्थानीय मान्यता के अनुसार इस मंदिर का निर्माण राजा विष्णुवर्धन द्वारा जैन धर्म त्याग कर वैष्णव धर्म अपनाने के उपलक्ष्य में की गई थी। जब राजा विष्णुवर्धन जैन धर्म का पालन कर रहे थे तब उन्हे बिट्टीदेव कहा जाता था। अपने गुरु रामानुजचार्य के प्रभाव में उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाया था। उनकी रानी शांतला देवी कला, संगीत तथा नृत्य की महान प्रशंसक थीं। वे स्वयं भी भरतनाट्यम नृत्य में निपुण थीं। उन्हे नृत्यसाम्राज्ञी भी कहा जाता था।
चेन्नाकेशव मंदिर का गोपुरम
यह विशाल मंदिर चारों ओर से भित्तियों से घिरा हुआ है। मंदिर के भीतर जाने के लिए दो प्रवेश द्वार हैं। पूर्वी प्रवेश द्वार पर पाँच तलों का विशाल गोपुरम है। दिल्ली सल्तनत के आक्रमणकारियों ने मुख्य द्वार को नष्ट कर दिया था। विजयनगर साम्राज्य के काल में इसका पुनर्निर्माण किया गया था।
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