अंतर्राष्ट्रीय काशीघाट वाक् विश्वविद्यालय के तत्वाधान में आयोजित 'तीर्थायन' श्रृंखला मेरे लिए एक साहित्यिक यात्रा से कम नहीं है। इस यात्रा में हम अपने पुरखों के द्वारा बनाई गई कलाकृतियों एवं वास्तुशिल्पों उस समय के परिवेशगत परिस्थितियों के बारे में बहुत कुछ जान पाते हैं , तथा उनकी वर्तमान समय में क्या प्रासंगिकता है इसे भी काशी के विद्वतजनों के माध्यम से समझ पाते हैं।
'तीर्थायन' में यह जानकर और देख कर आश्चर्य के साथ सुकून भी मिलता है कि हमारे पुरखे कवि कबीर , तुलसीदास , रैदास , रामानंद , वल्लभाचार्य एवं तैलंग स्वामी आदि ने इसी गलियों में घुमा था , इन्हीं मंदिरों को देखा था , इन्हीं मंदिरों के प्रांगण में बैठकर विपुल साहित्य की रचना की थी ।
कासी वासियों के साथ भारतीय संस्कृति में विश्वास करने वालों के लिए ये दुर्भाग्य का विषय है कि भव्यता के आलोक में प्राचीन दिव्यता को नष्ट किया जा रहा है । आज सत्ता के महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट के कारण सैकड़ों मंदिर एवं उससे संबंधित दंत कथाएं विलुप्त होती जा रही है।
कल यात्रा के दौरान मैंने अनेक मंदिर एवं मूर्तियों को गली के दीवारों से चिपके देखा। जब मैंने इसका कारण जानने का प्रयास किया तो तीर्थायन के साथियों द्वारा अनेक कारणों में एक महत्वपूर्ण कारण यह पता चला कि काशी में बहुत सारे पुराने मंदिरों को एक समय में चार दीवारों से घेरकर घर के अंदर कर लिया गया था , लेकिन वर्तमान समय में घर में जनसंख्या बढ़ने के कारण वे लोग अपने इष्ट देव को घर से निर्वासित कर बाहरी दीवार के कोने में स्थापित कर दिये हैं। इससे तो यह लगता है बाज़ार वादी मानसिकता के लोग अपने इष्टदेव को अपने उपयोगिता के हिसाब से आराधना करते हैं। मतलब भगवान कल तक अपने भक्तों के कर्मों के अनुसार फल देते थे परन्तु अब भगवान के भव्यता के आलोक के भक्तगण मनोवांछित फल प्राप्त करने का हरसंभव प्रयास करते हैं।
बहरहाल 'तीर्थायन' प्रख्यात न्यूरो चिकित्सक प्रो० Vijay Nath Mishra एवं हिन्दी विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के आचार्य कवि प्रोफेसर Shri Prakash Shukla के संयुक्त प्रयासों से काशी को नवीन संदर्भों में जाने एवं जीने का प्रयास निरंतर जारी है। जिससे हम युवा पीढ़ियों को अपनी पुरातन सुधीर्घ , संपन्न संस्कृति को जानने और जीने का मौका मिल रहा है। तीर्थायन की परिकल्पना को मूर्त रूप देने में काशी के दो अग्रज डॉक्टर अवधेश दीक्षित एवं Shailesh Tiwari भैया का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण है
(काशी के कलमकार आर्यपुत्र दीपक की कलम से)
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