राजस्थान के पाली जिले के अरावली पर्वत की घाटियों के बीच में स्थित रणकपुर में ऋषभदेव का चतुर्मुखी जैन मंदिर की भव्यता व विशालता देश में सबसे अनूठी है। चारों ओर जंगलों से घिरे इस मंदिर की भव्यता देखते ही बनती है। उदयपुर से 96 किमी दूर रणकपुर मंदिर की भव्यता बहुत हैरान करने वाला है। यह मंदिर परिसर लगभग 40000 वर्ग फीट में फैला है। करीब 800 वर्ष पूर्व 1446 में इसका निर्माण प्रारंभ हुआ। पचास सालों तक इसका निर्माण होता रहा। उस समय मंदिर के निर्माण एक करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इस मंदिर की खासियत है इसके चार प्रवेश द्वार है। मंदिर के अंदर तीर्थंकर की चार विशाल मूर्तियां हैं।
इस मंदिर की शिल्पकला ठीक उसी तरह है, जिस तरह 2 ढाई हजार वर्ष प्राचीन मंदिरों की होती है....इस मंदिर का वर्णन चालुक्यों के इतिहास में भी आता है कि यह मंदिर चालुक्य नरेशो ने बनाया। मंदिर के सैकड़ों खम्बे इसकी प्रमुख विशेषता हैं। इनकी संख्या करीब १४४४ है। जिस तरफ भी दृष्टि जाती है छोटे-बड़े आकारों के खम्भे दिखाई देते हैं, परंतु ये खम्भे इस प्रकार बनाए गए हैं कि कहीं से भी देखने पर मुख्य पवित्र स्थल के 'दर्शन' में बाधा नहीं पहुँचती है। इन खम्भों पर सुंदर नक्काशी की गई है। मंदिर के निर्माताओं ने जहाँ कलात्मक दो मंजिला भवन का निर्माण किया है, वहीं भविष्य में किसी संकट का अनुमान लगाते हुए कई तहखाने भी बनाए हैं। इन तहखानों में पवित्र मूर्तियों को सुरक्षित रखा जा सकता है। ये तहखाने मंदिर के निर्माताओं की निर्माण संबंधी दूरदर्शिता का परिचय देते हैं। मंदिर के उत्तर में रायन पेड़ स्थित है। इसके अलावा संगमरमर के टुकड़े पर भगवान ऋषभदेव के पदचिह्न भी हैं। ये भगवान ऋषभदेव तथा शत्रुंजय की शिक्षाओं की याद दिलाते हैं।
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