श्री राम वनगमनमार्ग
मैंने वाल्मीकि रामायण, कालिदास , गोस्वामी तुलसीदास के रामचरित मानस और लोकगाथा के आधार पर श्री राम वनगमनमार्ग के स्थानों को चिन्हित करके यह पुस्तक लिखी है। यह पुस्तक एक प्रकार से शोध कार्य का परिणाम है। तो चलिए चलते हैं श्री राम वनगमनमार्ग पर। वनवास के पहले दिन अयोध्या से चलकर तमसा नदी के तट पर पहुचते पहुचते शाम हो गयी अतः श्रीराम ने वहीं रात्रि विश्राम किया। आज इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि तमसा नदी के किनारे किस स्थान पर श्री राम ने रात बितायी थी । अकबरपुर के पूर्व मंत्री सीता राम निषाद का मानना है कि यह स्थान बीकापुर तहसील के गवासपुर में है ।परंतु लोगों का विश्वास है कि भगवान ने भंडार गाँव में तमसा नदी को पार किया। यह स्थान अयोध्या से लगभग बीस किलोमीटर दूर है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार अगले दिन श्री राम वेदश्रुति नदी पार कर आगे बढ़ गये। यह नदी आजकल लुप्त हो गयी है। इसके स्थान पर बेसुई नाला है। इस नाले का जीर्णोद्धार किया जाना चाहिये। परन्तु इस तरफ किसी का ध्यान नहीं है। तमसा
और वेद श्रुति नदियों को पार कर के श्री राम वर्तमान सुल्तानपुर में
गोमती नदी के तट पर पहुँच गए। सुल्तानपुर में गोमती नदी के तट पर एक
प्राचीन मंदिर है।वहां के पुजारी ने बताया कि वनवास के लिये जाते समय
भगवान ने यहां रात्रि विश्राम किया था और माता सीता ने यहां भोजन बनाया
था।गोमती नदी पार करके श्री राम वर्तमान रायबरेली में स्यन्दिका अर्थात
सयी नदी के तट पर पहुँच गए। इसका उल्लेख वाल्मीकि रामायण में है ।सयी नदी
के तट पर अवधूत भगवान राम का आश्रम है। उन्होंने श्री राम के आगमन की
स्मृति में एक स्मारक का निर्माण कराया है।
तुलसीदास ने भरत जी के चित्रकूट से लौटते समय सयी का उल्लेख किया है। सयी उतरि गोमती नहाये ।चौथे दिवस अवधपुर आये।सयी नदी पार करने के बाद श्री राम गंगा नदी के तट पर सिगरौर अर्थात शृगवेरपुर पहुँच गए। वहां उनकी भेंट निषादराज से हुई। यहां पर दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा खोदाई कराई गई हैं जिसमें निषाद राज के महल के अवशेष मिले हैं
तुलसीदास ने भरत जी के चित्रकूट से लौटते समय सयी का उल्लेख किया है। सयी उतरि गोमती नहाये ।चौथे दिवस अवधपुर आये।सयी नदी पार करने के बाद श्री राम गंगा नदी के तट पर सिगरौर अर्थात शृगवेरपुर पहुँच गए। वहां उनकी भेंट निषादराज से हुई। यहां पर दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा खोदाई कराई गई हैं जिसमें निषाद राज के महल के अवशेष मिले हैं
(भगवान श्रीराम के वनगमन मार्ग पर शोध करने वाले रामसागर शुक्ला की कलम से)
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