ऑरलैंडो के होटल से सुबह का नाश्ता करके खुशनुमा मौसम में बाहर निकले , तो दिन के 11 बज गए थे। कार से सबसे पहले हम जहां के लिए निकले, वह स्थान हैरी ल्यू गार्डन था।
गूगल मैप की मदद से नगर के विभिन्न चहल-पहल भरी सड़कों से गुजरते हुए हम वहां पहुंचे, जहां भीड़ भाड़ बहुत कम थी। गाड़ी पार्किंग करने के बाद हम टिकट खिड़की पर थे।
देवेश जी टिकट लेने लगे और मैं वहां लिखी सूचनाओं को पढ़ने में व्यस्त हो गया । 9 बजे सुबह से शाम 5 बजे तक खुले रहने वाले इस उद्यान में प्रवेश की कीमत प्रति व्यक्ति 15 डालर थी। जबकि बच्चों के लिए $10 रखा गया था । हम चार जन थे । इस तरह हमें पार्क में प्रवेश के लिए $60 खर्च करना पड़ा।
शहर के डाउनटाउन समझे जाने वाले स्थान से यह पार्क लगभग ढाई मील दूर है। टिकट लेकर भीतर पहुंचे तो एक तरफ ल्यू हाउस म्यूजियम ने हमारा ध्यान आकर्षित किया।
मुझे लगा कि पहले म्यूजियम ही देख लेना चाहिए । यहां पर जो जानकारी मिलेगी उससे पार्क देखने में और सुविधा हो जाएगी ।
ल्यू हाउस म्यूजियम एक दो मंजिली इमारत है।
यहां उपस्थित महिला गाइड ने म्यूजियम के कमरों में ले जाकर ढेर सारी जानकारी दी। जिसके अनुसार यह संग्रहालय अमेरिका के ऐतिहासिक स्थानों में गिना जाता है। हमें जो बताया गया, उसके अनुसार ल्यू हाउस म्यूजियम की कहानी रोचक है । क्योंकि पार्क की पृष्ठभूमि यहीं से जुड़ी हुई है।
जहां पर यह पार्क बना हुआ है, वह संपत्ति सर्वप्रथम डेविड डब्ल्यू मिजेल नामक परिवार ने 1858 में खरीदी थी। उन्होंने घर बनवाया और यहां खेतों में कपास , मक्का और गन्ने की खेती की ।
यही मिजेल बाद में शेरिफ भी बने। लेकिन एक साल बाद ही उनकी हत्या कर दी गई। आगे चलकर उनके पुत्रों ने यह संपत्ति बेच दी। जिसे डंकन सी. पेल नाम के व्यक्ति ने 1902 में खरीदा। लेकिन 1905 में इसे बेचकर वह न्यूयॉर्क चले गए।
इस संपत्ति के तीसरे स्थायी स्वामी जोसेफ एच बुडवर्ड हुए। उन्होंने स्टील उद्योग में हाथ आजमाया और बडे. कारोबारी बने। यही संपत्ति आगे चलकर 1936 में हैरी पी. ल्यू ने खरीदी।
वह ऑरलैंडो के ही निवासी थे और अपने समय में सफल उद्योगपति माने जाते थे। उन्होंने अपनी सेक्रेटरी से विवाह किया था। खूब देश-विदेश की यात्राएं करते थे । वे जहां भी जाते, वहां से विभिन्न प्रजाति के पौधों को लेकर लौटते थे। उन्हें बागवानी करने और बाग-बगीचों का बड़ा शौक था।
इसीलिए वे ढेर सारे पौधे लगाते रहते थे । उनका यह शौक जुनून की तरह से था । 1961 में उन्होंने अपना अपना बाग और घर ऑरलैंडो प्रशासन को दान में दे दिया।
गाइड ने हमें म्यूजियम के कमरों में ले जाकर मि. ल्यू के बेडरूम, फायरप्लेस, ड्रेसिंग टेबल, बच्चों के बेडरूम, म्युजिक रूम, किचन, ड्राइंग रूम आदि दिखाया और उसके बारे में बताया भी।
उससे मैंने यह अनुमान लगाया कि ल्यू साहब न केवल गार्डन प्रेमी थे, बल्कि जीवन को सलीके से गुजारने के लिए उन्होंने पर्याप्त भौतिक सुविधाएं भी जुटा रखी थीं।
म्यूजियम से बाहर निकलने के बाद हमने करीब पचास एकड. में फैले बाग में प्रवेश किया।
लगभग 2 घंटे का वक्त अपने पास था । जिससे सब कुछ देखना संभव न था । मन में यही सोचा कि जो संभव है , वही देख लेते हैं । सबसे पहले एक झील के पास पहुंचे। जिसका नाम रोवेना था।
झील का पानी साफ और शांत था। धूप खिली हुई थी । कुछ देर तक बैठने का मन हुआ तो वहां बैठ गए। और आगे चले तो कहीं झाड़ियों के झुरमुट तो कहीं बड़े-बड़े पेड़। नाम किसी का नहीं मालूम । वैसे भी अमेरिकी पेड़-पौधों को पहचानना बड़ा मुश्किल काम है। एक जगह तस्वीर खींचने के लिए रुके, तो वहां एक लड़की पेड़-पौधों को पानी दे रही थी।
मेरा इरादा भांपकर उसने खुद ही मोबाइल मांग कर तस्वीर खींच दी, जबकि मैं सेल्फी लेने के चक्कर में था।
इससे पहले भी अमेरिकी लोगों ने फोटो खींचने में हमारी मदद की थी। उसने बताया कि ऑरलैंडो में यह बहुत अच्छी घूमने की जगह है । यहां 15 हजार से अधिक पेड़-पौधे हैं।
जिन्हें हम पहचान पाए अथवा बोर्ड पर अंकित जानकारी से ज्ञात हुआ, उसमें गुलाब बाग में सैकड़ों किस्म के गुलाब दिखाई पड़े। इतना आकर्षण कि फोटो खींचने के लिए मन ललचा उठा ।औषधि उद्यान देखते समय तो बीएचयू याद आ रहा था, क्योंकि वहां भी काफी औषधीय पौधे लगाए गए हैं । यहां का एक अन्य आकर्षण तितली उद्यान भी है। रंग-बिरंगे पुष्पों के बीच रंग-बिरंगी तितलियां । प्रकृति का अद्भुत सौंदर्य। शब्दों में बयान करना मुश्किल हो रहा है।
बांस के झुरमुट और केले के पेड़ देखते हुए भी आंखें ऊपर से गुजरते हवाई जहाज की तरफ जाती रहीं।
जहां पर तरह-तरह के वृक्ष और तरह-तरह के सुमन हों, वहां पर पक्षियों का कलरव बिलकुल स्वाभाविक है। परंतु इस आनंद को अनुभव करने वाला मन भी निराला होना चाहिए। वरना प्रकृति में तो सौंदर्य बिखरा पडा है , पर वह कहीं समझ में नहीं आएगा।
शुरुआत में मैं और मेरी पत्नी ही पार्क में घूम रहे थे। कुछ देर बाद देवेश और ऋतंभरा भी नन्हे रिवांंश जी के साथ वहां पहुंच गए।
चूंकि रिवांश जी उद्यान में पहुंचते ही सोने लगे थे । इसलिए झील के किनारे वृक्ष की छाया वाले मनोरम वातावरण में उनकी नींद टूटने का इंतजार किया जा रहा था ।
सूरज सिर पर आ चुका था लेकिन किरणों में गर्मी नदारद थी। पर घूमने की भी एक सीमा है । पार्क का तो कोई ओर-छोर ही नजर नहीं आ रहा था ।
कुल 15 सेक्शन में विस्तृत पार्क को देखने में जो समय दिया जा सकता था , वह दिया गया। अब लौटना हमारी मजबूरी थी। लेकिन यहां से बाहर निकलते हुए हम यही सोच रहे थे ल्यू साहब आपकी वजह से हमें इतना मनोरम उद्यान देखने का मौका मिला है। आपकी यह देन तारीफ के काबिल तो है। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश: ......
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