मनचली भाषा
उस दिन दैनिक जागरण, कानपुर की मुख्य डेस्क पर शर्मा जी इंचार्ज थे। तब खबरें पी टी आई व यू एन आई से अंग्रेजी में टेलीप्रिंटर पर आती थीं और सब एडिटर उनका तर्जुमा हिन्दी में करते थे। मुझे जो खबर अनुवाद के लिए मिली उसमें एक जगह केआस ( chaos) शब्द आया था। कभी कभी ऐसा होता है कि आप शब्द का अर्थ तो समझते हैं लेकिन दूसरी भाषा का उपयुक्त शब्द दिमाग में अटक जाता है और सहसा कलम पर नहीं उतरता। केआस को लेकर ऐसा ही मेरे साथ हुआ। मैंने शर्मा जी से पूछा, " शर्मा जी! केआस के लिए हिन्दी में क्या लिखेंगे?"
शर्मा जी खुद किसी खबर का अनुवाद कर रहे थे। मुझे झिड़कते हुए बोले, " केआस? केआस क्या होता है?"
मैंने कहा वही तो पूछ रहा हूं... केआस के लिए...
मैं अपनी बात पूरी कर पाता इसके पहले ही शर्मा जी झुंझलाए, " केआस... केआस...स्पेलिंग बोलो। "
जैसै ही मैंने स्पेलिंग बोली वैसे ही शर्मा जी चहक पड़े, " अच्छा अच्छा चाओस! चाओस बोलो ना ! चाओस माने अव्यवस्था। "
मेरा भी तब लड़कपन था। बड़े जोर की हंसी आने को हुई मगर शर्मा जी बहुत वरिष्ठ थे और मैं ' कल का लौंडा ' सो हंसी को भीतर ही भीतर घोंट लिया। बहरहाल इतना याद पड़ता है कि संदर्भ को देखते हुए मैंने केआस के लिए 'अफरा तफरी ' का प्रयोग किया था।
यह वाकया लिखने के पीछे अभी भी शर्मा जी का उपहास करने की मंशा नहीं है। सही बात तो यह है कि अंग्रेजी है ही ऐसी मनचली भाषा कि पता नहीं किसको कब और कहां फंसा दे।
(कानपुर के वरिष्ठ पत्रकार सुशील शुक्ला की कलम से)
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