चार दशक पहले की बात है कि मैं सरकारी काम से मुंबई गया हुआ था। मौसम के कारण रेल यातायात बाधित हो गया था। मैंने घर लौटने के लिए हवाई सफर करने का फैसला किया। यह मेरा पहला सफर था या यूं कह लीजिए पहला प्यार था। मैंने अपनी सीट लेते वक्त विंडो सीट मांगी थी जो मुझे मिल गई। बस फिर क्या था। मेरी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। उन दिनों मल्टीमीडिया मोबाइल तो थे नहीं। मन ने कहा आंखें तो हैं उसी से चित्र खींचना और दिल और दिमाग में सदा सदा के लिए स्टोर कर लेना। अपने बैग से एक कागज और पेन भी निकाल लिया। हर तरह से तैयार होकर बैठ गया। दिमागी तौर पर मैं इतना मदहोश था कि मेरे बगल में कौन बैठा है इस बात की ओर भी ध्यान नहीं दिया।
हवाई जहाज ने उड़ान भरी तो मेरे मन की उड़ान उससे भी ऊंची उड़ने लगी। धरती से इतनी ऊपर मक्खन की तरह सफेद बादलों को देखकर मन ने कहा इतनी ऊंचाई पर तो बादल हो ही नहीं सकते। जरूर कुछ माजरा है। बाहर तो माइनस 24 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान है। तुरंत उत्तर मिला। अरे यार समझ में आ गया। यह सब उस कान्हा की करतूत है। मां यशोदा की मटकी से तथा गोपियों की मटकियों से चुरा चुरा कर माखन अंतरिक्ष की ओर फैंकते रहे होंगे ताकि युग युगांतर तक माखन खाते रहें। इतना ऊंचा फैंका ताकि कोई वहां आकर चुरा भी ना सके।
मैं बचपन से ही कान्हा की हर हरकतों को अच्छी तरह जानता ही था। मैं खिड़की से बाहर की ओर चारों ओर देखने लगा कि शायद मुझे कहीं वह यहीं पर माखन खाता दिखाई दे जाए। अकेला तो वह हो ही नहीं सकता। बाल गोपाल लोगों को छोड़ कर कहां जाएगा। उससेे बड़ी दोस्ती निभाने वाला कोई दुनिया में है ही नहीं। बस फिर क्या था कागज पर पेंन चलने लगा। हवाई जहाज में ही एक कविता का जन्म हो गया। बड़ी प्यारी कविता थी और मैं उसे निहार रहा था। अचानक उद्घोष हुआ कि हम लखनऊ पहुंचने वाले हैं। डेढ़ घंटा किसी दूसरे जगत में विचरण करने के बाद मैं भौतिक जगत में वापस आ गया।
बगल में बैठे एक सफारी सूट पहने सज्जन ने मुस्कुरा कर कहा कि श्रीमान जी असली सफर तो आपने किया है। यात्रा का पूरा आनंद तो आपने उठाया है। अपनी जेब से एक कार्ड निकालते हुए उन्होंने मुझे अपना कार्ड देते हुए पूछा कि आप ने लखनऊ में हलवासिया मार्केट देखा है। मैंने कहा जी हां हजरतगंज में है। मैंने कई बार देखा है। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि मैं सुधीर हलवासिया हूं। उन्होंने बड़े प्रेम से कहा कि कभी मेरे यहां आइएगा। बातें करेंगे। अच्छा लगेगा। बड़े गर्मजोशी से उन्होंने हाथ मिलाया। लखनऊ उतर कर अपनी अपनी मंजिल की ओर बढ़ गये।
@बाल कृष्ण गुप्ता 'सागर
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