रोचेस्टर की डायरी 4
रोचेस्टर (अमेरिका ) शहर में अपने बनारस की तरह से घूम-घूम कर सब्जी और दूध बेचने वाले नहीं दिखते हैं । ठीक इसी तरह यह भी होता है कि अकसर आसपास कोई दुकान नहीं होती ।
यदि कोई सामान लेने जाना हो , तब दूरी अधिक होने की वजह से अपने पैरों पर भरोसा करने लायक भी नहीं है। कार ड्राइव करनी होगी, वह भी 15-20 मिनट तक । सब्जी लेना हो तो भी कहीं दूर ही जाना होगा । वॉलमार्ट में खरीदारी करनी है अथवा मंदिर और गुरुद्वारे में मत्था टेकने जाना है , तब भी गाड़ी निकालनी होगी । क्योंकि यह दूरी ठीक-ठाक होती है। नगर में प्राइवेट ट्रांसपोर्ट की सुविधा कम जगहों पर है , इसलिए अपने से घूमने में थोड़ी दिक्कत आती है।
मुझे तो यही समझ में आता है कि यहां पर आबादी का फैलाव काफी दूर-दूर तक है । मुझे नई चीजों - स्थानों को जानने की उत्कंठा मन में हमेशा रहती है । इसी तरह का एक रुचिकर स्थान इस नगर का सब्जी मंडी भी लगा। सोचा, यहां का अनुभव भी लेना चाहिए।
क्यों कि अभी तक नगर में किसी भी भीड़ भाड़ वाले स्थान पर भी नहीं गए थे । साथ ही सब्जियों के मूल्य को जानने का कौतूहल अलग से था। सब्जी लेने के लिए झोला लेकर घर से निकले । पुनः 20- 25 मिनट का रास्ता तय किया ।
सड़क पर कहीं भी ट्रैफिक पुलिस नहीं दिखी । आखिर यह सब इतना व्यवस्थित तरीके से कैसे चल रहा है? रोज ही सड़क पर निकल रहे हैं। लेकिन मैंने किसी को भी यातायात नियमों का उल्लंघन करते नहीं देखा। सचमुच यह न है तारीफ की बात।
यह ज्ञात होने पर मेरा ताज्जुब और बढ़ गया कि अधिकतर चौराहों पर कैमरे तक नहीं लगे हैं। अपने देश में जहां- तहां पुलिस दिखाई पड़ जाती है , परंतु रोचेस्टर में मुझे यह भी नहीं दिख रही है। इस सुंदर व्यवस्था के पीछे मुझे लोगों का एकमात्र आत्मानुशासन का भाव ही नजर आता है।
सब्जी मंडी की बात को ही अब आगे बढ़ाते हैं । नगर की दो प्रमुख सब्जी मंडियों में जो प्राचीन और प्रमुख भी है , वह रोचेस्टर पब्लिक मार्केट में लगती है । सिर्फ शनिवार के दिन ही यहां पर बाजार गुलजार होता है। वैसे माल में भी सब्जियां मिल जाती हैं।
बाजार में घूम फिर कर सब्जियों पर मैंने गौर किया , तो यही प्रतीत हुआ कि अपने यहां की अधिकतर सब्जियां यहां भी उपलब्ध हैं। आलू प्याज , टमाटर , फूल गोभी ,पत्ता गोभी , बैगन, शिमला मिर्च और भी कई सब्जियां डोलचियों में सजा कर रखी गई थीं। एक जगह तो मिर्च की ही कई प्रजातियां मैंने देखी। इसी तरह फलों में आम , सेब , अंगूर, केला , संतरा आदि बेचने वाले दुकानदार भी दिखे।
वैसे यह जानना महत्वपूर्ण होगा कि अधिकतर सब्जियां और फल बहुत दूर से नहीं आते हैं । इनको बेचने वाले या तो किसान होते हैं अथवा व्यापारी बिल्कुल अपने यहां की तरह ही।
यहां सुबह से ही चहल-पहल शुरू हो जाती है । सामान आने लगता है । बनारस की मंडियों में भी अक्सर यह दृश्य दिखाई पड़ता है । यह व्यवस्था भारत जैसी इसलिए भी प्रतीत होती है क्योंकि दोपहर तक मंडी सुनसान होने लगती है । तब अगर आप पहुंच जाएं, तो सामान के दाम घट भी सकते हैं ।
पूरा बाजार घूमने के बाद मुझे यह समझ में आया कि 1 से तीन डालर तक में अधिकतर सब्जियां मिल जाती हैं । फलों के दाम इससे कुछ ज्यादा भी हो सकते हैं । अमूमन कोई भी भारतीय व्यक्ति डालर की रुपए से तुलना करना नहीं भूलता । ठीक यही मगजमारी मेरे जेहन में भी चल रही थी। एक खास बात ने मेरा ध्यान आकर्षित किया कि यहां पर वजन करके सब्जियां अथवा फल नहीं मिलते ।
जिस डिब्बे में सामान रखा हुआ है उस पर दाम भी लिखा हुआ है । ऐसे में तराजू और बटखरे का क्या काम! मैं ठहरा बनारसी , हर चीज को अपने चश्मे से देखने वाला । यहां तो पोशाक से कोई किसान भी नहीं समझ में आता।
जैसे अपने देश में अधिक वय के सब्जी वाले दिख जाते हैं , वैसे यहां भी 70- 80 साल की महिलाओं- पुरुषों को मैंने दुकानदारी करते देखा वह भी बड़े उत्साह के साथ ।
बाजार में इतने लोग होने के बावजूद शोरगुल बिल्कुल न होना शायद अमेरिकी तहजीब की ही पहचान है। इस मंडी में मांसाहारी खाद्य पदार्थ भी मिलते हैं जिनकी तरफ कोई रुझान न होने से मैंने उधर का रुख ही नहीं किया । सामान लेकर बाहर निकले तो पार्किंग में इतनी सारी कारें खड़ी थीं कि कुछ लोग अपनी कार को पार्किंग करने का इंतजार करते हुए भी दिखे। सब्जी मंडी में एक खास बात यह भी है यहां आप कार्ड से खरीदारी नहीं कर सकते । आपको नगद पैसे देने होंगे।
क्रमश: .....
(काशी के पत्रकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
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