बचपन के लखनऊ के कुछ विचित्र सच्चे संस्मरण ।
बात 1945 की है। मैं करीब 5 साल का था। लखनऊ सुंदरबाग में 46 बंसी निवास मेरे पिता जी का घर था। मेरी मां बहुत भक्त थीं।उनकी गुरुजी "माता त्यागानंद" थीं जो गणेश गंज में रहती थीं। हम सब पूरा परिवार उनके पास कीर्तन के लिए जाते थे। एक बार घर पर कोई नहीं था मां गुरुजी के घर गई हुई थीं कीर्तन के लिए । गनेशगंज सुंदरबाग से नजदीक ही है मैं उनके साथ जाता रहता था तो रास्ता मालूम था, मैं दोपहर स्कूल से आ अपना बस्ता घर पर पटक मां के पास जाने को पैदल चल पड़ा । सड़क के बाऐ चल रहा था,गली से लाटूश रोड पर मुड़ा। कुछ दूर ही चला होऊंगा कि दो पुलीस वाले आए और मुझे गोद में उठा सड़क के दूसरी ओर एक कमरे में चारपाई पर बैठा दिया मैं जोर जोर से रोए जा रहा था चुप करा रहे थे मैं चुप कैसे होता बिना मतलब पकड़ लिया। पूछा कहां जा रहे थे मैने बताया मां के पास । कुछ देर बाद एक इक्का आया मुझे उस पर बिठाया । इक्के को चारों तरफ से कपड़े से बंद कर दिया मैं रो रहा था कुछ दूर बाद मुझे एक आदमी ने नीचे खींच लिया और इक्के वाले को पकड़ना चाह रहा था वह उन ही पुलिस वालों के साथ इक्का भगा कर ले गया । मैं अब मां के गुरु जी के घर पर था । जिसने मुझे उतारा उस आदमी को मेरी मां की गुरुजी माता त्यागानंद जी ने ही भेजा था । यह मुझे बाद में मालूम पड़ा । यह तो दैवयोग से उन पुलिस की वर्दी पहने बच्चे उठाने वालों ने इक्का उसी रास्ते चलाया जहां गुरु जी का कीर्तन हो रहा था। अब आप पूछेंगे कि यह कैसे हो गया। तो जो मां ने बताया वह यह था । इन्ही गुरुजी की कृपा से मेरा जन्म हुआ था । मेरा नामकरण भी उन्होंने किया था । कीर्तन होते होते उन्होंने बाहर मेरी रोने की आवाज पहचान ली और कहा यह तो चन्द्र शेखर रो रहा है नीचे जाओ जल्दी एक शिष्य को दौड़ाया उसने इक्के के बाहर मेरी पहनी लाल स्वेटर की बांह देखी इक्के से बांह पकड़ खींच लिया। यह चमत्कार कहूं या गुरुजी की सुपर नेचुरल पॉवर कहूं। (उस ज़माने में ऐसे गुरु नहीं थे के वह हमारा एबडक्शन स्टेज मैनेज्ड कराते ) यह सच्ची घटना है। और यह उन गुरुजी का चित्र है
(सेना के रिटायर्ड आफिसर चंद्रशेखर मेहता ने अपना यह संस्मण भेजा है )
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