मजेदार बात ये है कि जिस वक्त साहित्य अकादमी मिलने की सूचना आई मैं उस समय कमरे में झाड़ू लगा रहा था। न्यूज सुनते ही झाड़ू लेकर जमीन पर बैठ गया। समझ न आया ये ख़ुशी पहले किससे शेयर करूँ..?
आखिरकार पापा को फ़ोन किया, उनका फोन नहीं उठा। समझ गया कि गर्मी का दिन है खाकर सब सो रहे होंगे।
शाम को पांच बजे माताजी नें चौंकते हुए कॉल बैक किया.. "का हो का भइल.. ?"
मैने कहा, "साहित्य अकादमी मिल गइल मम्मी..."
माताजी नें पूछा, "ई का होला.. ?" 😁
मैं हंसने लगा। फिर उनको समझाना पड़ा कि साहित्य के क्षेत्र में देश का बड़ा पुरस्कार है माता। जो किताब मैंनें लिखी है भारत सरकार उसको पुरस्कृत कर रही है।
तब जाकर बात उनकी समझ आई। पापा भी इस अवार्ड का नाम पहली बार सुन रहे थे।
लेकिन रही-सही कसर मीडिया और आप सबकी शुभकामना और बधाई नें कर दिया।
आज इंटरमीडिएट तक पढ़े मां-बाप नें गांव में बांटने के लिए ये इक्कीस किलो लड्डू मंगाया है। शाम को दुआर पर सुंदरकांड होगा। गांव भर इकट्ठा होगा और प्रसाद स्वरूप लड्डू बांटा जाएगा।
साहित्य का स न जानने वाले एक किसान परिवार के लिए जो मिला है, सब ऊपर वाले कि दया से ही मिला है..चाहें वो अनाज का पहला दाना हो, छानी पर फली लौकी हो या फिर साहित्य अकादमी हो...सबसे पहले उसी को अर्पण है।
आज अर्पण कार्यक्रम जोरों से चल रहा है।
आगे क्या ही कहूँ...? आप सबनें भी बहुत मेहनत की है।
मेरी तरफ़ से लड्डू ग्रहण करें...😊 ❤️🙏
(बलिया के लेखक अतुल कुमार राय की कलम से)
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