ऑरलैंडो का आइकन पार्क आगंतुकों के लिए मनोरंजन की विविधताओं से भरा हुआ था। इन्हीं विविधताओं को देखने के चक्कर में हम ऋतंभरा और देवेश जी की नजरों से ओझल हो गए।
दरअसल हुआ यह था कि वे दोनों नन्हे रिवांंश जी के साथ घास पर नर्म धूप के बीच उनकी बाललीला का आनंद ले रहे थे। जबकि हम पति-पत्नी ने सोचा कि तब तक आसपास की चीजों को टहलते हुए देखते हैं। तरह-तरह की दुकानें, तरह-तरह के आकर्षण हमें आगे ले जा रहे थे। इस तरह करीब आधे घंटे तक हम अपनी इच्छानुसार घूमते रहे।
इस बीच जब उन दोनों ने हमें नहीं देखा , तो खोजना शुरू कर दिया।
परदेसी धरती पर देसी सिम होने से मेरे लिए मोबाइल बेकार ही था । घर पर भले ही वाईफाई से हमारा काम चल जाता था, लेकिन आज बाहर रहने पर समस्या उत्पन्न हो गई थी। अनुमान से वे दोनों अपने आसपास हमें खोज रहे थे।
लेकिन हम तो उनकी चिंता से अनजान थे । हम सोच रहे थे कि घूम फिरकर वहीं लौट आएंगे , जहां से चले थे।
ऐसे में मजेदार बात यह थी कि डालर के नाम पर हमारे पास कुछ भी नहीं था। अन्यथा कम से कम उस होटल तक पहुंच जाते, जहां हम ठहरे हुए थे । परंतु हम तो खुद को खोया हुआ मान ही नहीं रहे थे।
जब हम वापस लौट रहे थे तभी दोनों हमें तलाशते हुए दिखे । जहां हम मुस्कुरा रहे थे, वहीं उन्होंने नाराजगी दिखाई।
वह काफी परेशान थे कि इस सार्वजनिक स्थान पर पर हमें कैसे खोजा जाए। वास्तव में परेशानी वाली बात ही थी । इसलिए यह तय हुआ कि अब बिना बताए अपने मन से कहीं नहीं जाएंगे।
बंद म्यूजियम ने किया निराश
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तत्पश्चात आसपास नजर डाली । पास में ही मैडम तुसाद म्यूजियम नजर आया। यह वही म्यूजियम है जहां प्रसिद्ध हस्तियों के मोम के पुतले रखे जाते हैं। मैडम तुसाद बहुत चर्चित कलाकार रही हैं। किसी शख्सियत के हूबहू मोम के पुतले बनाने में पारंगत। फ्रांस के स्ट्रांस वर्ग में उनका जन्म हुआ था। मेरी जानकारी में ऐसे म्यूजियम दुनिया के अन्य कई शहरों में भी हैं। पर सारी उत्सुकता तभी खत्म हो गई जब पता चला कि आज म्यूजियम नहीं खुलेगा।
बिलीव इट ऑर नॉट का अनुभव मजेदार
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यद्यपि आज के भ्रमण में मजेदार अनुभव बिलीव इट ऑर नॉट , नामक इमारत के अंदर जाने पर हुआ। अंदर कुछ अजीबोगरीब देखने को मिलेगा। लेकिन अभी अंदर की छोड़िए । बाहर से देखने पर भी इमारत तिरछी दिख रही थी। सचमुच यह अचंभा पैदा करने वाला निर्माण कार्य था।
दरअसल इमारत बाहर से कुछ इस तरह डिजाइन की गई थी, जैसे कोई भी देखने वाला उसे एक तरफ झुका हुआ अनुभव करने लगेगा। हालांकि अंदर से ऐसा बिल्कुल नहीं था।
टिकट लेकर भीतर घुसे तो विभिन्न कमरों और गलियारों में अनेक कलाकृतियां रखी थीं। इनके संग्रहकर्ता राबर्ट रिप्ले नाम के विश्व प्रसिद्ध यात्री थे। वे दूर-दूर की यात्राएं करके अनोखी चीजें लाते थे।
सचमुच यहां पर इतनी सारी चीजें हैं कि उनका वर्णन करना संभव नहीं है। हां कुछ खास का विवरण देना अवश्य रोचक हो सकता है ।
मिसाल के तौर पर एक फर्टिलिटी स्टैचू प्रदर्शित की गई है । कहा जाता है कि इसे अफ्रीका के किसी स्थान से लाया गया है । जो मैंने जाना वह पाठक भी जान लें।
ऐसी मान्यता है कि इस प्रतिमा को छूने वाला संतान सुख प्राप्त करता है। मूर्ति को स्पर्श करने के बाद स्त्रियां गर्भधारण करती हैं , यह दावा यहां की वेबसाइट में भी किया गया है। यह बड़े ताज्जुब की बात है कि वेबसाइट के अनुसार 2002 तक 935 गर्भधारण करने वाली महिलाओं की पुष्टि हुई है। जिन्होंने मूर्ति को कभी छुआ था। यहां तक कहा गया है कि जिन्हें संतान सुख नहीं चाहिए, उनको इस प्रतिमा का स्पर्श करने से बचना चाहिए। पता नहीं इन बातों में कितना दम है। अब आगे बढ़ते हैं ।
इस इमारत में एक जगह है जहां सुरंग जैसे रास्ते से गुजरते हुए ऐसा लगता है कि जैसे जमीन घूम रही हो । तब कोई भी पैर संभाल कर रखने की कोशिश करता है । जबकि सच्चाई यह है कि हमारे दोनों तरफ की दीवार घूमती रहती है। यह भ्रम पैदा करने वाली बनावट है। अक्सर लोग भ्रमित हो जाते हैं। इसी स्थान पर कुछ ऐसे शीशे लगे हैं जहां अपना शरीर भी कभी छोटा तो तभी काफी बड़ा दिखता है । यहां तक कि चेहरे विकृत दिखाई पड़ते हैं।
यहां एक प्रतिमा आंखें बंद की हुई दिख रही थी पर थोड़ी देर तक गौर से देखा कि आंखें खुल भी रही हैं। अब घूमते- घूमते किसी को वाशरुम जाना पड़ जाए , तो वहां प्रवेश करते ही एक ऐसी जोरदार आवाज आती है कि अचानक आदमी सकपका सा जाता है ।
दीवार पर लगी तस्वीर बोलने लगती हैं । मानो किसी भूत से सामना हो गया हो । अगर मैं अंदर नहीं गया होता तो इस अनुभव से वंचित रह जाता।
जब इमारत से बाहर निकले तो शाम ढल रही थी। बाजार घूमने में रात हो गई। ऑरलैंडो में सब कुछ तो नहीं देख पाया, लेकिन जो देखा वह कम नहीं था।
ऑरलैंडो से रोचेस्टर तीन घंटे का सफर
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ऑरलैंडो से रोचेस्टर की फ्लाइट सुबह 6 बजे की थी। 4 बजे तक होटल से निकलना जरूरी था। इसलिए हमने एयरपोर्ट के करीब होटल में रात बिताने का निश्चय किया। अगली सुबह पांच बजे तक एयरपोर्ट में हमारी सारी जांच पूरी हो चुकी थी। हां यहां मुझे दोबारा जांच करवानी पड़ी । क्योंकि मैंने पहना हुआ बेल्ट निकाला नहीं था। इसी तरह मोबाइल का एयरफोन भी पॉकेट में पड़ा रह गया था। अपनी इस भूल के लिए मुझे सॉरी कहना पड़ा ।
यद्यपि अधिकारियों का पूरा सहयोग रहा। फिर भी मुझे इस बात का अफसोस रहा कि हमें कायदे कानून नहीं भूलने चाहिए ।
रोचेस्टर जाने वाली एलिजेंट की फ्लाइट थी। हमारे पास वाली सीट पर एक बूढ़ी महिला यात्रा कर रही थी। उसे क्रिसमस मनाने के लिए अपने बच्चों के पास रोचेस्टर जाना था। जब हमारा जहाज रोचेस्टर रनवे पर उतरा, तो यात्रियों ने तालियां बजाकर खुशी का इजहार किया। यह अनुभव भी मेरे लिए पहली बार था। यह तालियां उन पायलट के लिए थीं, जिसके कारण हमारी यात्रा सकुशल पूर्ण हो रही थी।
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