हम ऑरलैंडो के हैरी पी. ल्यू उद्यान से जब बाहर निकल रहे थे, तब तक सूर्य देवता अपना साम्राज्य काफी फैला चुके थे। यानी हमारे ठीक ऊपर सिर पर चमक रहे थे। यहां से हमें इवोला झील पार्क जाना था। नाम से ही स्पष्ट हो गया था कि वहां झील भी होगी और पार्क भी। रविवार अर्थात छुट्टी का दिन होने के नाते पार्क में काफी भीड़भाड़ थी ।
किसी प्रकार कार पार्किंग करने की जगह मिली। यहां पर कार पार्किंग का पैसा लेने के लिए कोई आदमी नहीं था, बल्कि ऑटोमेटिक मशीन लगी हुई थी । जिसमें कार्ड लगाने पर निर्धारित रकम कट गई ।
किसी नए स्थान पर जाने पर उसको देखने के साथ-साथ उसके बारे में जानना भी बहुत जरूरी है। यह अलग बात है कि यह जानकारी कई बार नीरस अथवा रुचिकर भी हो सकती है।
इस इवोला झील और पार्क की भी एक कहानी है। जहां झील प्राकृतिक रूप से निर्मित हुई है, वहीं आसपास के इलाकों को खूबसूरत पार्क के रूप में विकसित किया गया है ।
ऑरलैंडो के निवासी जैकब समरलिन बड़े व्यापारी थे। अपने जमाने में उन्हें फ्लोरिडा का कैटल किंग भी कहा जाता था । 1871 में उन्होंने यहां पर दो सौ एकड़ जमीन खरीदी थी । जिसे वर्ष 1883 में उन्होंने झील के आसपास सार्वजनिक पार्क विकसित करने के लिए स्थानीय प्रशासन को दान स्वरूप दे दिया था ।
उस वक्त उन्होंने एक शर्त भी लगा रखी थी । जिसके अनुसार दान में दी गई भूमि पर खूब पेड़ लगाने होंगे। साथ ही पार्क में आमजन के लिए पर्याप्त सुविधाएं होनी चाहिए।
जैकब ने अपने अनुबंध में यह भी जोड़ा था कि दान के वक्त तय की गई शर्तों का अगर पूरा पालन नहीं किया गया, तो उनके उत्तराधिकारी जमीन को पुनः प्राप्त कर सकते हैं। इस तरह 1888 में ही यह पार्क विकसित हो गया था , लेकिन वर्ष 1892 में इसे आम लोगों के लिए उद्यान घोषित किया गया । इसी क्रम में अन्य दानकर्ताओं से भी मिली जमीन पर उद्यान का काफी विस्तार किया गया।
कौन थी इवोला ?
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जिसके नाम पर पार्क का नामकरण हुआ था, उसका पूरा नाम इवोला जे एलन था। अधिक जानकारी के लिए गूगल का सहारा लिया गया । 1860 में जन्मी इवोला कौन थी, इसको लेकर आज तक निर्विवाद जानकारी नहीं हो पाई है ।
1938 में केना फ्राइज नामक लेखक के अनुसार जैकब समरलिन के एक पुत्र राबर्ट समरलिन की मंगेतर का नाम ही इवोला था। अपनी शादी के दो हफ्ते पहले ही बीमारी से उसकी मौत हो गई थी । जबकि 1970 में ऑरलैंडो के इतिहास पर लिखी गई एक पुस्तक में लेखक ईव बेथन ने बताया कि इवोला राबर्ट की प्रेमिका नहीं थी बल्कि एक दोस्त थी। राबर्ट और वह यानी लेखक दोनों उसे जानते थे ।
यह कोई विशेष ऐतिहासिक गवेषणा का विषय मेरी समझ में नहीं है । इवोला एक लड़की थी। जिसके नाम पर इस पार्क का नाम रखा गया है। इतना जान लेना ही मेरे लिए पर्याप्त है।
अलबत्ता झील- पार्क के बारे में जानना जरूर रोचक हो सकता है। इवोला झील की लंबाई 0.9 मील बताई जाती है है। जबकि झील की औसत गहराई 11 फीट है।
जहां तक अधिकतम गहराई का सवाल है, वह 23 फीट तक है । झील के मध्य में लगा फव्वारा सबका ध्यान खींचता है। रात में यहां लाइट शो का कार्यक्रम होता है। पर अपने पास इतना समय नहीं था कि हम उस दृश्य को निहार पाते। पता यह चला कि अमेरिकी स्वतंत्रता दिवस पर यानी 4 जुलाई को यहां पर विशेष आतिशबाजी की जाती है। झील के किनारे फुटपाथ बना हुआ है। जहां लोग टहलने अथवा जाॅगिंग का काम करते हैं ।
हंसों में लगा था माइक्रोचिप
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निश्चित रूप से झील खूबसूरत थी और उसका सौंदर्य मुझे अपनी तरफ आकृष्ट करने लगा था। पानी में जहां- तहां तैरते हंस मनुष्यों की चहल-पहल देखने के अभ्यस्त हो गए थे। यह पालतू हैं। इन हंसों की बड़ी देखभाल की जाती है और यहां के हंसों का भी एक इतिहास है।
पहला हंस 1922 में झील में लाया गया था । उसके बाद हंसों की संख्या लगातार बढ़ती गई। यहां विभिन्न प्रजातियों के हंस पाले गए हैं। खास बात यह है कि प्रत्येक हंस के शरीर में माइक्रोचिप लगाया गया है और वर्ष में एक बार उनकी गणना होती है । उन्हें बीमारी से बचाने के लिए वैक्सीन भी लगाई जाती है।
इतना अनुकूल वातावरण उन्हें दिया गया है कि जल और थल पर वे बड़े आराम से विचरण करते रहते हैं। बिल्कुल करीब जाकर मैंने उनकी फोटो खींची और वीडियो भी बनाया। तब भी वे निश्चिंत भाव से चहलकदमी करते रहे।
कुछ लोग पानी में उनके लिए दाना भी डालते दिखे। इस झील की शोभा हंस निश्चित रूप से हैं। साथ ही पानी में हंस के आकार वाली नौकाएं भी दिखाई पड़ती हैं । पैर से चलने वाली नावें पर्यटकों को किराए पर दी जाती हैं।
झील के किनारे टहलते- टहलते हम पार्क की तरफ बढ़ गए । यहां एक आदमी कुछ तोतों के साथ दुकान सजाए बैठा था। वह कुछ पैसे लेकर ग्राहकों के सिर और कंधों पर तोते को बैठाता था। यह तोते भी कम नहीं थे । अपने मालिक की दुकान का विज्ञापन खूब करते थे। अपनी तीखी आवाज में आने-जाने वालों को आकर्षित करते थे ।
स्वाभाविक रूप से उनमें से कुछ लोग वहां आ भी रहे थे। यह उदाहरण तोतों से अपना रोजगार चलाने का समझ में आता है ।
लेकिन इसी रास्ते पर एक और सज्जन भी मिले, जो अपना मुंह- हाथ काले रंग में रंगे हुए थे। वह तरह-तरह के करतब दिखा रहे थे। यहां यह कहने की जरूरत नहीं कि उनका मकसद भी पैसा कमाना ही था ।
यह सब देख कर भारत और अमेरिका एक जैसा समझ में आने लगता है। क्योंकि अपने देश में भी सड़कों के किनारे तरह-तरह के करतब दिखाकर पापी पेट के लिए पैसे का जुगाड़ करते तमाम लोग दिखाई पड़ते हैं ।
इस पार्क में कई जगहों पर अस्थायी दुकानें भी लगी थीं। यहां पर वैसे ही सामान बेचने वाले और खरीदने वाले थे, जैसे अपने बनारस की विश्वनाथ गली में रोजाना दिखाई पड़ता है। बस अंतर यही है कि यहां की दुकानें अस्थायी हैं। इसे संडे मार्केट के रूप में जाना जाता है। इसी पार्क में हॉलीडे मार्केट भी लगता है, जो शुक्र- शनि की शाम को गुलजार होता है। ल्यू गार्डन में लोग कहीं-कहीं दिखाई पड़ते थे , लेकिन यहां तो अच्छी खासी भीड़ दिख रही थी।
खुशी के इजहार का अमेरिकी अंदाज
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अपनी खुशियों को प्रकट करने का अमेरिकियों का अंदाज काफी खुला- खुला सा है। इस पार्क के वातावरण को देखते हुए कुछ पंक्तियां उन पर भी लिखने को जी चाहता है । अमूमन अमेरिकी जब खुश होता है तब वह अपने साथी को गले लगा सकता है, चूम सकता है। यह व्यवहार महिला या पुरुष दोनों ही करते देखे जा सकते हैं । अब इससे उनको कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई इसे देखकर क्या अनुभव कर रहा है। यहां के लोग तो इसे बिल्कुल सहजता से लेते हैं। यद्यपि मैं जानता हूं कि भारतीय लोग इससे भिन्न मत रख सकते हैं। वैसे पार्क का खुशनुमा वातावरण प्रेमियों को काफी उत्साहित करने वाला है। ऐसे सार्वजनिक स्थल पर प्रेम की अभिव्यक्ति करने वाली पत्नी है या प्रेमिका अथवा महज दोस्त, इस पर मगजमारी करना बड़े मशक्कत का काम है ।
हां यदि भारतीय और वह भी खासकर बनारसी अपनी तजबीजने की चाक्षुष क्षमता का अगर बुद्धिमानी से उपयोग करना चाहे तो उसे रोकने वाला भी कोई नहीं है । जब- तब अक्सर पश्चिमी देशों के खुलेपन पर भी चर्चा की जाती है । निश्चित रूप से एक पक्ष उनका यह भी गिनाया जा सकता है।
ऑरलैंडो में हम लोगों द्वारा देखा गया यह दूसरा पार्क था, जहां से हम बाहर निकलते वक्त यही सोच रहे थे कि अब पार्क नहीं कुछ और भी देखना चाहिए । शाम हो गई थी, इसलिए सीधे होटल का रुख किया।
बाहुबली थाली का आकर्षण
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दिन भर भोजन के नाम पर कुछ खास नहीं हो पाया था, इसलिए रात में ठीक से पेट भरने का विचार था। कल जिस मद्रास कैफे में हम लोग गए थे । एक बार फिर वहां जा पहुंचे। रेस्टोरेंट के मैन्यू में एक बाहुबली थाली का उल्लेख भी था , जिसे बाहुबली न होने के बावजूद हम आजमाना जरूर चाहते थे ।
जब थाली सामने आई तो यह सामान्य आदमी के लिए पर्याप्त से कुछ अधिक भोजन प्रतीत हो रहा था। चूंकि हम लोग चार थे। इस वजह से नान-पनीर, चाऊमीन, मंचूरियन आदि भी मंगा लिया गया था।
यहां का मैनेजर और वेटर हिंदी बोलने- समझने वाले भी थे । जो व्यवसायिक हितों को देखते हुए बिलकुल स्वाभाविक था।
बाहुबली थाली के बारे में थोड़ी चर्चा और हो जाए । एक बड़ी थाली में 15 कटोरियां सजा कर रखी गई थीं। सभी में अलग-अलग तरह के व्यंजन। सभी को हमने आपस में बांटकर पेट के हवाले कर दिया। यद्यपि एक कमी तो बाकी रह गई। वहां की थाली के सभी व्यंजनों को हमने चखा ही नहीं था ।
पर सबके मतों को जुटाकर निष्कर्ष यही कि खाना अच्छा था, का सर्टिफिकेट जारी जरूर कर सकते हैं । इसके बाद रात में होटल लौट आए । इस रेस्टोरेंट की लोकप्रियता इसी से सिद्ध हो रही थी रात के 10:30 बजे भी लोग खाने के लिए जल्दी-जल्दी चले आ रहे थे।
क्रमश: .....
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