350 साल से चल रही नंदी की प्रतीक्षा अब पूरी हो गयी। बाबा सर्वे में ही मिल गए है। शुक्रवार को वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी में वजूस्थल को छोड़कर परिसर के सर्वे वाली याचिका पर जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने मां श्रृंगार गौरी मूल वाद में ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर बैरिकेडिंग वाले क्षेत्र का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से रडार तकनीक से सर्वे कराने का जो आदेश दिया है उससे और भी वैज्ञानिक प्रमाण मिलने तय हैं।
श्रीकाशी विश्वनाथ के पवित्र #शिवलिंग के #जलाभिषेक के जल से अभी तक वहां जाने वाले #मुसलमान लोग #वजू कर रहे थे। आज उन्हें यह प्रमाण स्वयं मिल गया होगा कि #ज्ञानवापी और वहां उनके द्वारा अदा की जाने वाली #नमाज #इस्लाम के नियमों के पूर्णतया विरुद्ध है। उस मस्जिद परिसर के भीतर से तीन दिनों के सर्वे में मिली मूर्तियां, प्रतीक, सर्प, घंटी ,स्वस्तिक, त्रिशूल आदि अनेक प्रमाणों के आ जाने के बाद अब देश मे #गंगा #जमुनी बयार तेजी से बहाई जाए तो सबका भला हो जाएगा। एक अतिआस्था के केंद्र को झूठी मस्जिद तो हमारे देश मे अमन की वकालत करने वाले उलेमाओं को भी स्वीकार नहीं होनी चाहिए। ठीक है लमहों ने खता की थी लेकिन अब तो उन लमहों जैसा परिवेश नहीं है न। अब भारत के शिक्षित शांतिप्रिय तर्कशील इस्लामिक स्कॉलर्स और भाईचारा बनाने की मुहिम चलाने वालों को देश और समाज के हित मे आगा आकर इसी देश मे रहने वाले हिंदुओं की भावनाओं और आस्था का भी सम्मान अवश्य करना चाहिए। यह अलग बात है कि अभी तक कोई भी ऐसा स्वर सामने आया नहीं है। उल्टे, यह जरूर हुआ है कि वे तत्काल सुप्रीम कोर्ट पहुँच गए हैं।
एक प्रश्न जरूर खड़ा हो रहा है कि स्वाधीनता के 75 वर्षों में क्या भारत मे कोई एक ऐसा पढ़ा लिखा मुसलमान नही पैदा हुआ जो इस्लाम और मस्जिद की मजहबी जबान के अलावा कभी कभी सच्चाई पर भी बात कर सके? केरल के राज्यपाल आरिफ मुहम्मद खान एक अकेले दिखते हैं जिनको सच्चाई स्वीकारने में कभी संकोच नही रहा। खैर, आज बात हो रही है ज्ञानवापी मस्जिद के तीन दिनों तक सर्वे के बाद मिलने वाले साक्ष्यों और हिन्दू पक्ष की याचिका को स्वीकार करने पर। सैकड़ो वर्षों से काशीविश्वनाथ मंदिर टूटने के बाद से ही भगवान शिव के वाहन नंदी की नजरों की दिशा में ही आज नंदी के अधीश्वर मिल गए हैं। खास बात यह कि जिस जलकुंड में बाबा मिले हैं उसी के जल से वजू कर के यहां लोग नमाज पढ़ा करते थे। इस्लामिक दृष्टि से यह इस्लाम के ही खिलाफ है कि किसी अन्य देवी देवता के ऊपर चढ़े जल से वजू किया जाय। किसी अन्य पूजास्थल के ऊपर मस्जिद बना दी जाय। यह बात तो इस्लामिक स्कॉलरों को बोलनी चाहिए। आज अभी तक कोई इस्लामिक स्कॉलर यह क्यों नही बोल रहा कि ज्ञानवापी की मस्जिद इस्लामिक आस्था के खिलाफ है। देश मे गंगाजमुनी तहजीब के नुमाइंदों को आगे आकर प्रेम से इस जगह को बाबा और उनके अनुयायियों को स्वतः सौंप देनी चाहिए।
सावन में शुक्रवार को वाराणसी के बहुचर्चित ज्ञानवापी में वजूस्थल को छोड़कर परिसर के सर्वे वाली याचिका पर जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने मां श्रृंगार गौरी मूल वाद में ज्ञानवापी के सील वजूखाने को छोड़कर बैरिकेडिंग वाले क्षेत्र का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से रडार तकनीक से सर्वे कराने का आदेश दिया है। हिंदू पक्ष की सीता साहू, मंजू व्यास, रेखा पाठक और लक्ष्मी देवी की तरफ से दिए गए आवेदन पर कोर्ट ने यह आदेश दिया है। हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं की दलील है कि सर्वे से यह स्पष्ट हो जाएगा कि ज्ञानवापी की वास्तविकता क्या है। सर्वे में बिना क्षति पहुचाएं पत्थरों, देव विग्रहों, दीवारों सहित अन्य निर्माण की उम्र का पता लग जाएगा। वहीं, विपक्षी अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने सर्वे कराने के आवेदन का विरोध किया था।
हर हर महादेव।।
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