घर वही होता है जहां आपने बचपन गुजारा हो!ये मेरा पुराना घर है जो अब खंडहर में तब्दील हो चुका है!पापा की पैदाइश भी इसी घर में हुई थी!कागज के चंद टुकड़ों के लिए दरकते रिश्तों के बीच इस घर की हर ईंट संयुक्त परिवार के अंतिम पीढ़ी की गवाही देती है!आज शाम को बाबा के पास बैठा तो उन्होंने बताया कि पुराने घर की बुनियाद आज के 60 साल पहले 1960 में रखी गई!पूरा घर बनने में करीब दस साल लगे!सीमेंट उस समय साढ़े पांच रुपये बोरी थी और एक हज़ार ईंट की कीमत महज 33 रुपए थी!बाबा ने कहा ठीक से याद नहीं लेकिन शायद ये 1959 की बात है जब परिवार के लोगों ने साझेदारी में पहला ईंट भट्ठा चलाया!उसके कुछ दिन बाद ही घर बनने की प्रक्रिया शुरू हुई!जब बाबा ये सब बातें बता रहे थे तभी पास खड़ी मम्मी ने बताया कि वो इसी घर में पालकी से शादी के बाद कई बार नाना के घर गईं!घर में 17 कमरे थे!माई का हाता अलग से था जिसमें चार कमरे थे जिसमें दरवाजे नहीं हुआ करते थे!द्वार के बगल में अनाज और गायों के लिए भूसा रखने के लिए नौ कमरे थे!मैं पांच से छह साल का था उसके बाद से इस घर की कई यादें आज भी मानस पटल पर तैर रही हैं!संयुक्त परिवार होने की वजह से रात में छत पर 25 से 30 लोग सोते थे!बुआ के पास बैठकर घर के सारे बच्चे पढ़ाई करने के बाद रात में कहानी सुनते थे!कभी कभी बरेठा काका भी कहानी सुनाने के लिए बुलाए जाते थे!बरेठा काका का काम घर के सारे सदस्यों के कपड़े प्रेस करने का था!सुबह जब उठता था तो पूरे परिवार के लिए चाय बटुले में बनती थी!घर के सदस्यों के साथ पचीस से तीस लोग बाहर के होते थे ऐसे में ज़्यादा चाय बनाना बटुले में ही संभव था!पूरे गाँव में गैस सिलेंडर किसी के घर में नहीं था, खाना बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे ही प्रयोग में लाए जाते थे!इसके अलावा घर में मिट्टी के तेल वाला स्टोप भी था जिसका प्रयोग तभी होता था जब दो चार लोगों के लिए चाय बनाना होता था!घर में दूध की कमी नहीं थी दादी दोपहर ग्यारह बजे ही दही मथने के लिए बैठ जाती थीं!गाँव में जिसको-जिसको भी दही की जरूरत होती थी वो लेकर जाता था!अगर उसके बाद भी दही बच जाए तो दही गाय और भैंस के नादे में चला जाता था!उस समय गांव के सभी बच्चे एक ही स्कूल में पढ़ते थे फिर चाहे वो गांव के ज़मीदार का बेटा हो या मजदूर का!गाँव के सारे बच्चों को एक साथ स्कूल के लिए पैदल जाना होता था!स्कूल से लौटने के बाद दादी सारे बच्चों को मलाई खाने के लिए देतीं थी!गर्मी की छुट्टियों में गाँव के सारे बच्चे सुबह से लेकर शाम तक आम के बगीचे में रहते थे!बच्चों पर पापा के साथ चाचा,बाबा,बुआ सहित हर सदस्य की नज़र रहती थी!उस समय अपने और पराए का रिवाज नहीं था!अगर था भी तो दिखता नहीं था!दोपहर में जैसे ही बर्फ वाले का भोंपू बजता था गाँव के सारे बच्चे वहीं इकट्ठा हो जाते थे!घर वाले बोलते थे कि बर्फ सेहत के लिए नुकसानदायक है इसके बावजूद ज़िद करने पर दादी घर से थोड़ा सा अनाज बच्चों को देती थीं और हम लोग अनाज के बदले बर्फ ले लेते थे!गाँव में बिजली नहीं थी तो टीवी देखने का कोई सवाल ही नहीं उठता था!खबरों और मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन रेडियो ही था!विविध भारती के सारे प्रोग्राम गाँव के लोगों की जुबान पर होते थे!खेलों के नाम पर बच्चों के लिए कंचा, गिल्ली-डंडा,कबड्डी,कुश्ती,लुकाछिपी,सिप्प्ल,गिट्टी,दौड़,रस्सीकूद और सीपोलिया होता था!बड़े बुजुर्ग ताश के पत्ते खेलते थे!गाँव में अगर बीसीआर लग जाता था तो पांच सौ से अधिक लोग पूरी रात बैठकर फ़िल्म देखते थे!गलती करने पर गाँव का कोई भी इंसान किसी भी बच्चे को कूट देता था!घर पर शिकायत करने पर घर वाले दोबारा कूट देते थे!स्कूल से लौटने समय रास्ते में पड़ने वाले बैर,आम,अमरूद,कैथल सहित अन्य पेड़ो से बच्चे फल तोड़ते हुए आते थे!दोपहर में बच्चे भौरें पकड़कर उसे कागज में ढककर संगीत सुनते थे!पूरे रास्ते कागज की जहाज बनाते और उसे उड़ाते हुए आते!कोई तालाब अगर रास्ते में मिल जाए तो बच्चे उसमें नहा भी लेते थे!शाम को लालटेन की रोशनी में सारे बच्चे साथ में पढ़ते थे!नाई जब बाल काटने आता था तो पूरे गाँव के बच्चों का बाल एक ही दिन में काटता था!आज जब पुराने घर को ध्यान से देखा तो भूली बिसरीं यादों का एक काफिला चल पड़ा!पुराने की जगह अब नया घर बनकर तैयार हो गया!पुराने घर की ईंटों से तीन मकान बनकर तैयार हो गए लेकिन अभी भी पुराने घर में बहुत कुछ बचा है!बाबा ने बताया कि उस समय घर बनाने में करीब सात लाख ईंट लगी थी!घर के सामने बरसात में इतना पानी हो जाता था कि नावें चलती थीं!मछलियां द्वार पर तैरती रहती थी!अब संयुक्त परिवार का कॉन्सेप्ट खत्म हो गया है!हैसियत के हिसाब से बच्चे कॉन्वेंट और सरकारी स्कूल में पढ़ने लगे हैं!पिछले पच्चीस सालों में सब कुछ बदल गया है!हो सकता हैं आने वाली पीढ़ियों को बहुत कुछ अच्छा देखने को मिले,लेकिन जो गाँव मैंने बचपन में देखा वो शायद उन्हें देखने को न मिले!परिवर्तन प्रकृति का नियम है और इसमें कोई बुराई नहीं है!दादी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी जिंदा हैं!मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे बाबा और दादी के साथ ही परदादा और परदादी का भी प्यार मिला!
( दैनिक हिंदुस्तान नोएडा के वरिष्ठ रिपोर्टर रविसिंह रैकवार की कलम से यादों की माटी की सोंधी महक )
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