अपने देश में कहा जाता है कि जहां स्वच्छता रहती है, वहां लक्ष्मी जी का निवास होता है । साफ-सफाई से अगर उनका इतना गहरा अनुराग है, तब तो लक्ष्मी जी को अमेरिका में अवश्य बसना भी चाहिए ।
सचमुच कई महीनों से मैं रोचेस्टर में रहते हुए गंदगी देखने को तरस गया। ऐसा नहीं है कि गंदगी मुझे प्रिय है, बल्कि अपने बनारस में रहते हुए इसका अभ्यास सा हो गया था । इसके विपरीत रोचेस्टर की सड़कें बिल्कुल साफ-सुथरी, घरों के बाहर भी वही नजारा। जब कोई गंदगी करता ही नहीं तो रोजाना सफाई की जरूरत भी नहीं पड़ती।
कई बार सड़कों पर गुजरते हुए मैं यही सोचा करता हूं कि यहां के लोग थूकते हुए क्यों नहीं दिखते ? कूड़ा बाहर फेंकते हुए कभी-कभार तो दिखना चाहिए था। आखिर वह कौन सा तरीका है जिसने अमेरिकियों को इतना सभ्य बना रखा है ।
एक अपना बनारस है जहां पर कूड़ा गाड़ी के निकल जाने के बाद सड़कों पर कूड़ा फेंक दिया जाता है वह भी बिना हिचकिचाहट के।रोचेस्टर में हर घर के सामने कूड़ेदान रखा रहता है, जहां सप्ताह भर का कूड़ा इकट्ठा होता रहता है । जिसे लेने के लिए एक दिन गाड़ी आती है ।
भारतीय होने के नाते मुझे यह बड़े अचरज की बात लगती है कि जहां कोई देखने वाला नहीं होता, वहां भी गंदगी देखने को नहीं मिलेगी। यह बात मैंने ऑरलैंडो शहर में भी अनुभव की है।
शौचालय का मतलब रेस्टरूम
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अमेरिका में शौचालय को रेस्टरूम कहा जाता है। पहले तो मैं समझ नहीं पाता था। बाद में उपयोग करने की जरूरत महसूस हुई , तब परिचय हुआ। अन्यथा मैं यही सोचा करता कि शायद रेस्टरूम में अंदर जाकर लोग आराम करते होंगे। यह रेस्टरूम हर बड़ी दुकान या माल में होते हैं। इसलिए सड़कों के किनारे भारत में दिखने वाले अक्सर वह दृश्य यहां कभी नहीं दिखाई पड़ते।
फिर भी गंदगी का नमूना मेरी आंखें इसलिए तलाशतीं रहीं, ताकि वीडियो बनाया जाए और उन पर कुछ पंक्तियां भी समर्पित की जा सके। साफ-सफाई रखने के लिए यहां कर्मचारियों की कोई बड़ी फौज दिखाई नहीं पड़ती। कूड़ा उठाने वाली गाड़ी में सिर्फ एक ही व्यक्ति होता है वही वाहन भी चलाता है।
सड़क पर कुत्ते के साथ टहलते हुए व्यक्ति को इन आंखों ने खुद कुत्ते की गंदगी को पॉलिथीन में उठाते देखा है। अगर अपने देश में भी सफाई का इतना जुनून हो तो वाकई वहां भी तस्वीर बदल सकती है।
कार से चलती है मेड
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अमेरिका आने से पहले मैं सुना करता था कि वहां पर साफ-सफाई करने वाले भी कार से चलते हैं। रोचेस्टर आकर मैंने यह देख भी लिया । कुछ कारों पर सेवा प्रदाता एजेंसी का नाम भी लिखा रहता है। जिस पर मेरा अनुमान यह था कि इस काम में एजेंसी का भी अपना कमीशन होता होगा। वैसे कार का इस्तेमाल करने वाले कम से कम इतनी कमाई तो करते होंगे। अन्यथा भारत में इस काम को करने वाले तो कार के बारे में सोच भी नहीं सकते।
कोई काम छोटा नहीं समझा जाता
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अमेरिका में घरेलू काम के लिए निर्धारित पारिश्रमिक पर नौकरानी भी उपलब्ध हैं। पारिश्रमिक के मामले में अमेरिकी कानून बड़े सख्त हैं। अपने घर में जब काम के लिए मेड आई तो मैं उसके काम की तारीफ किए बिना नहीं रह सका।
कई उपकरणों के साथ उसने एक सिरे से काम शुरू किया । चार-पांच घंटे में पूरे घर को साफ- सुथरा कर दिया।
एक ही मेड किचन से लेकर टॉयलेट तक सफाई का काम करती है। इससे यह तो समझ में आ गया कि यहां पर किसी काम को छोटा नहीं समझा जाता है।
उनके काम में ईमानदारी नजर आती है । सारा सामान सलीके से हटाना, जो सामान जहां से उठाया उसे उसी स्थान पर रखना और अंत में मुस्कुराते हुए घर से निकल जाना बड़ा अच्छा लगता है। खास बात यह है कि नौकरानी से काम कराने वाला उसे छोटा नहीं समझता है।
सचमुच कितनी अच्छी सोच का परिचय मिलता है। बिटिया ने बताया कि एक बार तो निर्धारित पारिश्रमिक में से भी मेड ने कुछ डालर यह कह कर लौटा दिए कि पहली बार बेबी का कमरा साफ करने पर उसका पैसा नहीं लेगी । जबकि पैसे लेकर वह घर से निकल गई थी । अमेरिका में यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगा कि यहां हर कोई अपने काम को बेहतर तरीके से अंजाम देने की कोशिश जरूर करता है। संभवत: अमेरिका की संपन्नता के पीछे यह भावना कहीं न कहीं जरूर काम करती होगी। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश:........
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