ऑरलैंडो एयरपोर्ट से बाहर निकले , तो अपने होटल तक पहुंचने के लिए गूगल मैप मार्गदर्शक बना । अपने देश की तरह यहां कोई रास्ता बताने वाला तो होता नहीं। यह गूगल ही है जो किसी भी अनजानी जगह पर बिल्कुल सही- सही पहुंचा देता है।
जगह-जगह पर अमेरिकी झंडे
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रोचेस्टर में भी मैंने जगह- जगह पर अमेरिकी झंडे लगे देखे थे। वह यहां पर भी दिख रहे थे। छोटे और बड़े आकार वाले । घरों पर भी थे और खुले मैदानों में भी लहरा रहे थे। लेकिन कोई भी झंडा ऐसा नहीं दिखा, जो गलत तरीके से लगा हो अथवा कटा- फटा हो ।
अपने देश से प्रेम दर्शाने का अमेरिकियों का यह अंदाज अच्छा लगा । कई रास्तों से गुजरने के बाद हम अपने मंजिल होटल तक पहुंच गए।
अमेरिकी होटल में पहली बार
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अमेरिका के किसी होटल में ठहरने का यह मेरा पहला अवसर था । यहां हमें आईडी प्रूफ के रूप में पासपोर्ट को प्रस्तुत करना पड़ा।
कमरे में सामान व्यवस्थित करने के बाद सबसे पहले मैंने दरवाजे को बंद करना और खोलने का तरीका सीखा। कमरे में चाय- कॉफी बनाने की सुविधा थी ।
खाना भी बना सकते थे पर इसके लिए सामान जरूरी था। पत्नी ने चाय बनाकर पिलाया । यद्यपि अमेरिका प्रवास के दौरान चाय बनाने की जिम्मेदारी मैंने खुद ले रखी है। बाथरूम में गर्म और ठंडे पानी के नल के बारे में जाना । टीवी देखने का वक्त तो नहीं था इसलिए उसे चलाना भर सीख लिया ।
होटल में कुत्ते भी रहते हैं
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कमरे में लगे पंखे होने का मतलब था कि गर्मियों में इनकी जरूरत अवश्य पड़ती होगी। जहाज में कुत्तों का सफर करना तो मैं देख ही चुका था, लेकिन होटल में कुत्तों का रहना अब देख रहा था। कुत्ते अपने मालिकों के साथ घूमते हुए नजर आए।
मद्रास कैफे में गाना - मेरे पिया गए रंगून
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रात में भारतीय खाने की तलाश में ऑरलैंडो की सड़कों पर निकले। मौसम अच्छा था, इसलिए सड़कों पर काफी लोग थे । घूमते-फिरते हम ऐसी जगह पहुंचे, जहां भारतीय व्यंजनों वाले रेस्टोरेंट दिख रहे थे । वैसे तो कई थे, पर जहां पर सबसे ज्यादा भीड़ थी , हम वहीं पहुंचे । रेस्तरा का नाम मद्रास कैफे हमें आकर्षित करने वाला लगा।
अंदर जाने पर पता चला कि हमारा नंबर प्रतीक्षा सूची में है । आर्डर नोट कराते समय ही बता दिया गया कि करीब एक घंटे इंतजार करना पड़ेगा। टीवी पर नजर पड़ी तो गाना चल रहा था - मेरे पिया गए रंगून...... यहां आकर लगा कि सचमुच अपने देश वाला माहौल ही है।
हाल में अधिकतर ग्राहक भारतीय थे। दरअसल यह शनिवार की रात थी।
इसलिए अगला दिन छुट्टी का होने के कारण लोग इत्मिनान से बैठे हुए थे । एक - दो अमेरिकी भी दिख रहे थे , जो हिंदुस्तानी भोजन का लुत्फ लेने के लिए पहुंचे थे ।
रेस्टोरेंट के बाहर भी दो-चार टेेबल लगे हुए थे। हमने बाहर बैठना ही ज्यादा पसंद किया क्योंकि वहां से सड़क का आवागमन भी दिख रहा था ।
सिजलिंग ब्राउनी से हुआ परिचय
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जब तक टेबल पर हमारे खाने का सामान नहीं आया, तब तक आसपास घूूमते रहे । इस बीच होटल में हो रहे नृत्य का वीडियो भी बनाया । खाने में जो सामान आया, वह पूर्व परिचित था । इसलिए उस पर विशेष लिखने की जरूरत नहीं है ।
सिर्फ एक व्यंजन उल्लेखनीय है । पहली बार नाम सुना था- सिजलिंग ब्राउनी। पता नहीं यह किस देश का व्यंजन है ।
जब खाने के लिए आया तो वह काफी गर्म था। नीचे से आग जल रही थी । मजेदार बात यह थी कि यह ऊपर की तरफ ठंडा था और आइसक्रीम जैसा लग रहा था, जबकि नीचे की तरफ गर्म था और स्वाद चॉकलेट वाला था।
रात 10:00 बजे तक खाने वाले चले आ रहे थे । इससे यह अनुमान लगाया कि यह भारतीयों का पसंदीदा रेस्टोरेंट होगा।
फ्लोरिडा है सन शाइन स्टेट
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ऑरलैंडो में गाड़ियों पर फ्लोरिडा के नंबर दिखाई पड़ते हैं । कई गाड़ियों पर सनशाइन स्टेट भी लिखा हुआ था। इसलिए समझ में आया कि फ्लोरिडा की पहचान इस नाम से भी है ।
जबकि रोचेस्टर में गाड़ियों के नंबर न्यूयॉर्क राज्य के होते हैं । यानी अब हम दूसरे राज्य में आ चुके हैं। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश: ......
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