मणिपुर का मोरेगांव भारत का अंतिम गांव है। इस गांव में लोहिया के साथी जार्ज फर्नांडिस के साथ सत्याग्रह 1998 में जाना हुआ। आज मणिपुर में जो हो रहा उसको देखकर उस दौरे की याद आ गई। मणिपुर के हालात आज ही नहीं उस समय भी बेहद खराब थे। मणिपुर नागालैण्ड आदि में संघर्ष बिभिन्न गुटों और जातीय समूहों में बहुत कम होता था। 1998 के सत्याग्रह में हमारे साथ समता पार्टी के विधायक राजधारी सिंह जी के नेतृत्व में बस्ती से निरंकार शुक्ल जी और अन्य लोग गये थे।गोवाहाटी से रात में हमारी बस जब शहर से बाहर निकल आई तो बस कंडक्टर ने राजधारी जी के गनर से कहा कि आप अपनी पुलिस की वर्दी उतार कर साधारण वस्त्र पहन लीजिए और अपनी बंदूक मुझे दे दीजिए मैं इसे छिपा देता हूं। आप जब-तक मणिपुर से लौट कर गोहाटी वापस नही आ जाते तब तक सामान्य आदमी की तरह रहिए तभी आप सुरक्षित हैं अन्यथा आप के साथ ही तमाम लोग मारे जा सकते हैं।बस में जौनपुर से एक सज्जन जो मणिपुर में अध्यापक थे हमारे बगल मे बैठे थे।वह फुसफुसा कर बातें कर रहे थे और उन्होंने कहा कि मणिपुर में समानांतर सरकार उग्रवादियों की चलती है। हमारे सामने एक अखबार आया जो उग्रवादी सरकार के सरकार का बजट सत्र से संबंधित था। जिसमें रक्षा मंत्री ने रक्षा बजट और वित्त मंत्री ने वित्त बजट पेश किया था। सरकार ने उग्रवादी सरकार के तरफ़ से पास कराया था। फिर हम सभी लोग जार्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में दूसरे दिन मोरेगांव सीमा पर गये। वहां हमारे स्वागत में बैनर लगे थे भारतीय कुत्ते वापस जाओ। बहरहाल जार्ज फर्नांडिस ने उग्रवादी संगठनों के दो धड़ों से बात करते हुए कहा कि हमारे लोग केवल ड्रग्स और एड्स से बचाव और जागरूकता अभियान हेतु यह सत्याग्रह आन्दोलन यहां करने आएं हैं। तब जाकर किसी तरह एक सहमति बनी तब हम लोग सत्याग्रह आन्दोलन कर सके। मणिपुर में आदिवासी समुदाय इसाई और हिंदू धर्म दोनों ही स्वतंत्र रूप से अपनी सरकार चाहते हैं। और आम आदमी से धन दोहन बड़े संगठित तरीके से करते हैं। बाकायदा उनके रजिस्टर पर रूपए के लेन-देन दर्ज किया जाएगा और रसीदें दी जाती है। ऐसे राज्य में स्थिति पहले से बेहतर हो रही थी लेकिन मुझे लगता है कि मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी हिंदू समाज को अपने साथ लेकर चलने की गलती कर बैठी और हाईकोर्ट के फैसला आने तक जो यथास्थिति बरकरार थी वो टूट गई और फिर जो हुआ वह कल्पना से परे है। नंगी स्त्रियां घुमाई गई और सरकार कुछ भी नहीं कर सकी। मणिपुर के जंगलों में उग्रवादी सरकार के विधान सभा की सरकार चलती है। पहले से ही भारत सरकार यह जानती है और अब भी सरकार जानती है। युवा ड्रग के शिकार हैं। महिलाए हमारे कैंप में आकर देह बेच कर चंद रुपए के लिए हमारे साथियों को लुभा रही थी। आज़ से 25 साल पहले से चली आ रही स्थिति बरकरार है सरकारें बदलती रहती है। लेकिन मणिपुर में समानांतर सरकार ही वास्तविक रूप से अपना नियंत्रण रखती है।कहा जाता है कि सभी सरकारी कर्मचारी उग्रवादी सरकार को नियमित चंदा लेती है और लोग स्वेच्छा से देते हैं।यह है मणिपुर। ( बस्ती जिले के राजनेता कौशल पाण्डेय की कलम से )
मणिपुर डायरी - 1998 में जब जार्ज फर्नांडिस के साथ पहुँचे तो स्वागत में बैनर लगे थे भारतीय कुत्ते वापस जाओ
जुलाई 27, 2023
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