रोचेस्टर में सुबह से ही बरसात वाला वातावरण था । कभी बूंदाबांदी होती तो कभी और तेज बरसात होने लगती। ठंड भी पर्याप्त थी, परंतु क्रिसमस की तुलना में कम ही।
यदि बनारस में होते , तब नए साल के पहले दिन संकट मोचन मंदिर जाते। यही सोचकर रोचेस्टर के मंदिर में भी हम मत्था टेकने पहुंचे। यह वही मंदिर है , जहां हम दशहरा, दीपावली आदि अवसरों पर आ चुके हैं । वैसे भी इस शहर में त्यौहार या खास अवसर मंदिर में ही समझ में आता है।
देखरेख करने वाला कोई नहीं
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रोचेस्टन के मंदिर में जहां पर जूते रखे जाते हैं , वहां लोग कोट , जैकेट और अन्य अपना सामान भी रख देते हैं । लेकिन इनकी देखरेख के लिए कोई आदमी नियुक्त नहीं होता । यह मैंने गुरुद्वारे में भी कई बार देखी है । शायद किसी का सामान कभी गायब नहीं होता होगा । लेकिन जरा सोच कर देखिए कि यह व्यवस्था क्या अपने देश में भी संभव है?
लोगो और वेबसाइट का उद्घाटन
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नए साल के उपलक्ष्य में मंदिर में विशेष पूजा पाठ का आयोजन था। इस अवसर पर मंदिर का 'लोगो' और वेबसाइट का उद्घाटन हुआ। साथ ही नया वार्षिक कैलेंडर भी जारी किया गया ।
यह लोगों के लिए $10 में उपलब्ध था । कैलेंडर में हमारे यहां की तरह ही तीज-त्यौहारों की विधिवत जानकारी दी गई थी।
यहीं पर मुझे ज्ञात हुआ कि मंदिर के कई अन्य रचनात्मक कार्य भी हैं। जैसे बच्चों के लिए भारतीय भाषाओं का प्रशिक्षण। हिंदी, तमिल आदि भाषाएं सिखाई जाती हैं ।
इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता । अमेरिका में पैदा हुए बच्चों को अपने देश की भाषा- संस्कृति से जोड़ने का यह प्रयास सराहनीय है।
बनारस वाले थे पुजारी जी
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मंदिर में एक नये पुजारी जी अभिषेक आदि अनुष्ठान करा रहे थे। संस्कृत के श्लोकों का निर्दोष उच्चारण मुझे आकर्षक लगा । मुझे यह जानकर अति प्रसन्नता हुई कि उनका जुड़ाव बनारस से भी है। अवसर मिलने पर मैंने उनसे बातचीत की । पुजारी जी दिल्ली के जरूर थे, लेकिन उनकी शिक्षा बनारस से हुई थी ।
बीएचयू से उन्होंने स्नातक और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य किया था। अमेरिका में किस प्रकार उनका आना हुआ यह भी बताया । उन्होंने मेरे परिवार की अलग से पूजा भी कराई। हमने उनको घर आने का निमंत्रण भी दिया । वैसे मंदिर में अन्य पुजारी भी हैं। मुख्य पुजारी जी बंगलुरु से जुड़ाव रखते हैं।
अमेरिका में हैं सात सौ पचास मंदिर
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उपलब्ध स्रोतों के अनुसार पूरे अमेरिका में लगभग 750 मंदिर हैं। जबकि 2017 में यह संख्या 250 ही थी ।
ऐसा माना जाता है कि न्यूजर्सी शहर में बना स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर अमेरिका में सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है। 2014 में इसका उद्घाटन हुआ था। जबकि अमेरिका में सबसे पुराना मंदिर कौन है , इसको लेकर दो प्रकार के तथ्य मिलते हैं - पहला यह 1905 में वेदांत सोसाइटी द्वारा सैन फ्रांसिस्को नगर में पहला मंदिर बनवाया गया था । खास बात यह है कि स्वामी विवेकानंद ने ही इस वेदांत सोसाइटी की स्थापना न्यूयॉर्क और सैन फ्रांसिस्को में की थी ।
दूसरी तरफ यह भी उल्लेख मिलता है कि अमेरिका में पहला मंदिर 1977 में न्यूयॉर्क में बनवाया गया है। गणेश भगवान को समर्पित यह मंदिर 7 वर्षों में पूर्ण हुआ। इसे महा वल्लभ गणपति देवस्थानम कहा जाता है।
अमेरिका के प्रमुख मंदिरों में इसकी गणना भी होती है ।
खैर पहला कौन है , इस विवाद में न पड़ते हुए हम आगे बढ़ते हैं । वैसे रोचेस्टर में भी दो हिंदू मंदिर हैं।
सभी राज्यों में हैं मंदिर
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आज स्थिति यह है कि अमेरिका का कोई ऐसा राज्य नहीं है जहां आधा दर्जन हिंदू मंदिर ना हों। जैसे-जैसे भारतीयों की संख्या अमेरिका में बढ़ती जा रही है वैसे-वैसे मंदिरों की संख्या भी बढ़ती ही जानी है। अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता का यह एक बेहतर उदाहरण हो सकता है। ऐसे में अगर अमेरिका अपनी सांस्कृतिक विविधता की थाती पर गर्व करता है तो यह गलत नहीं लगता।
संस्कृत का जलवा अब भी
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अमेरिका में जब इतने सारे मंदिर हैं, तो यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है कि मंदिर में जो भी पुजारी होंगे , वह संस्कृत भिज्ञ तो होंगे ही । क्योंकि धार्मिक कर्मकांडों पर संस्कृत भाषा का एकाधिकार अब भी है।
यह कहना मुश्किल होगा कि भारत के किस विश्वविद्यालय से सर्वाधिक पुजारी आज अमेरिका में हैं। हो सकता है कि बनारस का संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय भी इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हो ।
मेरे लिए यह बहुत ही सुखद जानकारी और अनुभव है कि संसार की बूढी भाषाओं में से एक संस्कृत का जलवा अमेरिका में भी है।
रोचेस्टर के मंदिर वाले पुजारी जी से वार्तालाप करके इतना तो समझ में आ ही गया था कि अमेरिका में पुजारी बनना सहज नहीं है । उनके ज्ञान की परीक्षा होती है । केवल सत्य नारायण कथा से काम नहीं चलेगा।
संस्कृत के साथ अंग्रेजी भी ठीक होनी चाहिए। चूंकि अमेरिका में संपन्न हिंदू रहते हैं । इसलिए पुजारी भी कार से चलते हैं और धड़ल्ले से अंग्रेजी बोलते हैं ।
हिंदू समाज के कर्मकांड इन्हीं पुजारी जी की सहायता से संपन्न होते हैं । बात गृह प्रवेश की हो या नई कार की पूजा करानी हो , पुजारी जी इसमें माध्यम होते हैं।
साल के पहले दिन सुबह मंदिर में दर्शन हो गए और शाम को एक भारतीय परिवार घर पर भोजन के लिए आमंत्रित था । जिनसे देर तक बात होती रही। इस तरह बीता मेरे नए साल का पहला दिन। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
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