----------------------------------------
अमेरिका का सबसे बड़ा त्योहार क्रिसमस माना जाता है । इसे रोचेस्टर शहर में कैसे मनाया जाता है, यह जानने-समझने की उत्सुकता मेरे मन में पहले से ही थी । कोशिश थी कि पर्व को उस देश की संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में ही समझने की चेष्टा की जाए , तभी उसका वास्तविक आनंद लिया जा सकता है।
यह तो सभी जानते हैं कि 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन त्योहार के रूप में मनाया जाता है। लेकिन यह जानना रोचक है कि शुरू से ही ऐसा नहीं होता था।
पहला क्रिसमस रोम में मना था
----------‐-----------‐--------------------
दरअसल 14 दिसंबर, 10 जून और 2 फरवरी वह तारीखें हैं , जब ईसा का जन्मदिन विश्व के अलग-अलग देशों में रहने वाले लोग पहले मनाते रहे हैं। इस त्यौहार को 25 दिसंबर पर मनाने की परंंपरा बाद में शुरु हुई।
वैसे पहली बार क्रिसमस रोम में 336 ईसवी में मनाया गया था । अमेरिका, यूरोप में आजकल यह एक दिन का त्यौहार नहीं रह गया है। नए साल का स्वागत भी इसी से जुड़ गया है। 12 दिन तक त्यौहार का जश्न मनाया जाता है।
दीर्घायु का प्रतीक है पेड़
--------------------------------‐--
इस अवसर पर क्रिसमस ट्री का विशेष महत्व है। घर-घर में सजाने की परंपरा रही है । इसे जीवन की निरंतरता से जोड़कर देखा जाता है। माना जाता है कि इस पेड़ को सजाने से आयु लंबी होती है ।
इसमें लाइटिंग की जाती है हरा, लाल सफेद , सुनहरा रंग का प्रयोग कर इसे आकर्षक बनाया जाता है।
यह भी कहा जाता है कि जब जीसस का जन्म हुआ था, तब देवताओं ने उसे एक उपलब्धि मानते हुए पेड़ को सजाया था। सबसे पहले 10 वीं शताब्दी में जर्मनी में क्रिसमस ट्री को सजाने की शुरुआत हुई।
इस पेड़ में मोमबत्तियां, घंटी आदि लगायी जाती है । ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से घर से बुरी आत्माएं दूर रहती हैं।
सैंटा क्लॉस के बिना क्रिसमस की कल्पना ही अधूरी है । और बच्चों के लिए तो मानो सेंटा ही सब कुछ है। बचपन में मैंने भी वह किस्सा सुना हुआ है। लेकिन यह सेंंटा क्लाज आखिर कौन है? क्या यह एक पौराणिक कल्पना है?
संत निकोलस ही हैं सेंटा क्लॉज
‐-‐--------------------‐-------------------
ऐसी मान्यता है कि सेंटा क्लाज का असली नाम संत निकोलस है । उनका जन्म ईसा की मृत्यु के करीब 300 साल बाद एक धनी परिवार में हुआ था। वह बाल्यकाल से ही जीसस की शिक्षाओं से बहुत अधिक प्रभावित थे।
उन्हें जरूरतमंद को उपहार देना अच्छा लगता था। यह काम वह लोगों से छुपाकर रात में डरते थे ।
इस तरह सेंटा का सीधा संबंध क्रिसमस से नहीं था । लेकिन उनके परोपकारी कार्यों ने उन्हें क्रिसमस का एक प्रमुख किरदार बना दिया है।
मजेदार बात यह है कि सेंटा क्लाज के कद-काठी की जो कल्पना की गई है , वह स्थूल आकार का , गोरा, हंसमुख और सफेद दाढ़ी वाला आदमी है। अमेरिका में यह छवि 19वीं सदी में काफी लोकप्रिय हुई ।
एक कार्टूनिस्ट थॉमस नास्ट ने इसे गढ़ा था । इस तरह किताबों और तमाम फिल्मों के माध्यम से यह पात्र इतना लोकप्रिय हो गया कि अक्सर उन्हें क्रिसमस का पिता भी कहा जाता है ।
लोक कथाओं की मानें तो यह सेंटा क्लॉज किसी बर्फीले प्रदेश में रहता है पत्नी के साथ। उसके साथ बड़ी संख्या में बौने और बारहसिंघा रहते हैं। कुछ देशों में तो उसके लिए स्थान भी बताया गया है। अमेरिकी लोग मानते हैं कि वह स्थान उत्तरी ध्रुव है। सेंटा क्लॉज की गाड़ी खींचने का काम बारहसिंघा (रेनडियर) करते हैं और बौने बच्चों को उपहार देने से पहले उनकी सूची बनाते हैं।
सेंटा क्लॉज का है कारखाना भी
‐--------------------------------------
जिसमें अच्छे बच्चों को क्रिसमस की रात खिलौने, चॉकलेट और अन्य उपहार दिए जाते हैं । जबकि शरारती बच्चों को कोयला मिल जाता है। कहानी आगे भी रोचक है । आखिर सेंटा इतने उपहार जुटाता कैसे है? दरअसल सेंटा का एक कारखाना है जहां पर सालभर बच्चों के खिलौने आदि सामान बनाए जाते हैं । जिनमें वही बौने मदद भी करते हैं ।
बच्चे इस चरित्र को इतना वास्तविक मानते हैं कि वह उपहार पाने के लिए सेंटा को चिट्ठियां भी लिखते हैं। ऐसे कुछ स्थान भी रहे हैं, जहां से उनको जवाब भी दिया जाता है। उपहार पाने के लिए अच्छा बच्चा होना जरूरी है। इसलिए हर बच्चा पहले से काफी तैयारी करता है । वह चाहता है कि मां-बाप अच्छे होने की पुष्टि कर दें ।
मोजा लटकाने की है परंपरा
‐---------------------------------------
बच्चों को यह उपहार सेंटा देता कहां है? इसके लिए घरों में मोजे लटकाने की परंपरा है । यहां भी एक कहानी है । एक गरीब आदमी की तीन बेटियां थीं। उनके बड़ी होने पर वह शादी की चिंता में निमग्न रहा करता था।
लेकिन काफी प्रयत्न करने के बाद ही वह शादी के लिए पर्याप्त पैसा नहीं जुटा पाया। कुछ दिनों बाद क्रिसमस का त्यौहार आया। तब तीनों बहनों ने क्रिसमस ट्री सजाकर परमेश्वर से प्रार्थना की और सोने चली गईं।
रात में सेंटा ने घर की चिमनी से एक सोने से भरी थैली अंदर डाल दी । जो घर में लटके मोजे के अंदर गिरी। सुबह लड़कियों ने सोने से भरी थैली पिता को दिखाया। तबसे क्रिसमस पर मोजे लटकाने की रवायत शुरू हो गई।
इसीलिए क्रिसमस की रात सोने से पहले बच्चे बड़े रोमांचित रहते हैं कि उनको क्या गिफ्ट मिलेगा? रात में ही घर के लोग मोजे में उपहार भर देते हैं । सुबह बच्चा सेंटा का उपहार समझ कर खुश हो जाता है । कई साल तक होने के बाद भी बच्चे यह नहीं समझ पाते हैं कि गिफ्ट सेंटा नहीं उनके मम्मी-पापा ही देते हैं। कई अन्य लोग भी सेंटा के जरिए बच्चों में उपहार बांंटते हैं ।
बाजार के लिए अवसर है क्रिसमस
------------‐-----------‐----‐--‐--------------
दूसरी तरफ बाजार क्रिसमस को एक बड़े अवसर के रूप में लेता है ।महीनों पहले से दुकानों पर पर्व से जुड़े सामान सज जाते हैं। क्रिसमस का पेड. तो दूर से ही दिखने लगता है। खरीदारों को लुभाने के लिए आफर भी खूूब रहते हैं । लोग खरीदारी भी जमकर करते हैं। आखिर बच्चों का मामला है तो घर वालों को उपहार तो खरीदना ही पड़ेगा।
क्रिसमस के खास डिजाइन वाले कपड़े लोगों की पसंद होते हैं। जिसमें लाल टोपी शामिल रहती है। इस दौरान हम तो सजे-धजे माल में घूमने और फोटोग्राफी का शौक पूरा करते रहे। एक माल में मैंने सेंंटा क्लाज बने हुए व्यक्ति के साथ बच्चों को बड़े उत्साह से फोटो खिंचवाते हुए देखा । खास बात यह रही कि फोटो खिंचवाने के लिए बच्चों के अभिभावकों को पैसे भी देने पड़ते थे।
त्योहार करीब आने पर लोगों के घरों की सजावट देखने शहर में भी निकले। कुछ स्थानों पर इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के माध्यम से बहुत अच्छी सजावट की गई थी । कई घरों के सामने जीसस की झांकियां भी सजाई गई थीं। लोग उनकी तस्वीरें लेते रहे। हालांकि उस वक्त इतनी ठंड थी कि कार से बाहर निकलकर सजावट देखने की मेेरी हिम्मत नहीं पड़ी।
बर्फबारी ने घटाया उत्साह
-----‐----‐--------------------------
जिस क्रिसमस वाले दिन का हम कई दिनों से इंतजार कर रहे थे, उस दिन बिल्कुल अलग तरह का नजारा था। दिन में तेज हवा, बर्फबारी ने ठंड काफी बढ़ा दी थी। शहर में जैसे सफेद रंग की चादर बिछ गई हो। जब चर्च में आधी रात को जीसस का जन्म उत्सव मनाया जाना था । उसके पहले यानी रात 9:00 बजते- बजते ही शहर का तापमान माइनस 11 पर पहुंच गया था । दूसरी तरफ मौसम विभाग ने बर्फबारी को देखते हुए सुझाव जारी किया था कि लोग ज्यादा से ज्यादा अपने घरों में ही रहें।
ऐसे में घर से बाहर निकलना सेहत के साथ खिलवाड़ करना ही था और यह करने को मैं तैयार नहीं हुआ। बाद में समाचारों से पता चला कि बर्फबारी से इलाके में काफी नुकसान भी हुआ है । ऐसे में घर से बाहर निकलने की कल्पना तक नहीं की जा सकती। यद्यपि मेरे घर के करीब ही दो चर्च हैं। मैं जानना चाहता था कि चर्च में किस तरह के अनुष्ठान होते हैं । वैसे रोचेस्टर में तो दर्जनों चर्च हैं।
घर में भी मना पर्व
---------------------------
स्थान विशेष का कुुछ असर पड़ना तो अवश्यंभावी है। इस तरह यह क्रिसमस हमारे लिए भी खास रहा।
घर में बड़े उत्साह से क्रिसमस ट्री को सजाया गया था। छुट्टी का दिन होने से सुबह देवेश जी (दामाद) ने नाश्ते में विविध व्यंजन बनाए , तो रात में बिटिया ने भी अपनी पाक कला का प्रदर्शन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । डॉक्टर लोग इतना अच्छा खाना बनाते हैं , यह मेरे लिए 'मेरी क्रिसमस' का उपहार नहीं तो और क्या है ? वैसे भी केक और दावत तो क्रिसमस का अहम हिस्सा माना जाता है। (काशी के कलमकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
क्रमश: .........
दुनियाभर के घुमक्कड़ पत्रकारों का एक मंच है,आप विश्व की तमाम घटनाओं को कवरेज करने वाले खबरनवीसों के अनुभव को पढ़ सकेंगे
https://www.roamingjournalist.com/