तारीख 15 जुलाई 2021 को रात 12 बजे से मंडुआडीह स्टेशन का नाम इतिहास बन गया। 'बनारस' ने अपना मुकाम हासिल कर लिया। अपना भी काम खत्म।बेचैनी और छटपटाहट खत्म। अक्सर सोचता था और जिम्मेदारानों से पूछता भी था कि आखिर कब बदलेगा नाम। सबकुछ तो हो चुका है। सबके अपने-अपने जवाब थे जिससे दिल को सुकुन नहीं मिलता था।
सोचा,अपना क्या! कोई सम्मान या सियासत के लिए तो ये मुहिम है नहीं।हमारा जो सामाजिक दायित्व है वह होते रहना चाहिए। साल 15 से सोशल मीडिया प्लेटफार्म खासकर फेसबुक पर शुरू हुई। मुहिम में न जाने कितने गुमनाम साथियों का साथ मिला।उन्होंने इस मुहिम को अपना बना लिया। ऐसे साथियों और 'बनारस' नाम के प्रेमियों को दिल से मुबारकबाद।आप नहीं होते, आपका साथ नहीं होता तो तय मानिए' बनारस' नाम अंकित नहीं होता।
विशेष आभार: तत्कालीन रेलराज्य मंत्री मनोज सिन्हा (अब जम्मू-कश्मीर के एलजी) का जिनका खास योगदान रहा। जब ये मुहिम शुरू हुई तो उन्होंने नोटिस लिया। मैसेज किया ये प्रस्ताव विचार योग्य है। हौसला बढ़ा तो मुहिम और तेज हुई। तमाम सवाल -जवाब चलते रहें। पर विश्वास बना रहा। इसके साथ ही दिल्ली में बैठे पुराने बनारसी साथी गोपाल जी राय ने मोर्चा संभाला। मुहिम शुरू करने का सुझाव भी आपसी विमर्श से ही शुरू हुआ।
राजस्थान से सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की चर्चा न करूँ तो नाइंसाफी होगी।साल 17 में उन्होंने भाई शरद सिंह के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की। बकायदा एक पत्र सौंपा जिसमें मंडुवाडीह स्टेशन का नाम बदलकर 'बनारस' करने की मांग थी। शुक्रिया और आभार।साथ और हौसला देने के लिए। आखिर में: अपने सांसद और देश के पीएम नरेन्द्र मोदी जी, गृहमंत्री अमित शाह जी, तत्कालीन रेलमंत्री पीयूष गोयल जी,मुख्यमंत्री यूपी योगी आदित्यनाथ जी का शुक्रिया। जिन्होंने इस मुहिम को नोटिस लिया और आज 'बनारस' नाम अंकित हो गया।
(काशी के कलमकार एके लारी की कलम से)
बनारस की हवा में ही इश्क़ बसता है इसीलिए तो नाम बनारस से इश्क टपकता है। जो इस नाम को सुनता है सम्मोहित हो जाता है। इश्क़ महाकाल का, धरती का पताल का, अस्सी के घाट का, काशी की चाट का, अनपूर्णा के भोजन का, बाबा विश्वनाथ के भजन का, पंडो के नाम का, बनारसी पान का.....
बनारस~ मिजाज का ऐसा शहर है जिसके कई नाम हैं लेकिन इस शहर के पाँच नाम ज्यादा ही प्रसिद्ध रहे हैं....
1. काशी
2. वाराणसी
3. अविमुक्त
4. आनन्द-कानन
5. बनारस
धार्मिक नगरी में वाराणसी और काशी नामक दो रेलवे स्टेशन कल तक थे लेकिन सबको सर्वाधिक प्रिय नाम बनारस नाम से एक स्टेशन भी नहीं था। काशी की संपदा मेरे अभिभावक एके लारी भाई के सतत प्रयासों व बनारस शब्द से स्नेह रखने वाले सभी श्रेष्ठ जनों के सहयोग से आज शहर के मध्य स्थित मडुआडीह स्टेशन का नाम बदल कर बनारस कर दिया गया। आनंदित हृदय से मुहिम के सभी सहयोगियों शुभचिंतकों के साथ लारी भईया के प्रयासों का अंतःकरण से अभिनंदन व वंदन करता हूँ। (शरद सिंह की कलम से)
अरे वाह, शानदार...
बनारस के मेयर अशोक तिवारी ने तो 15 जुलाई 2023 की सुबह कमाल ही कर दिया। भाजपा के जिला और शहर के पदाधिकारियों के टीम के साथ 'बनारस' स्टेशन पहुंचे। साथ में थे भाजपा के जिलाध्यक्ष और विधान परिषद सदस्य हंस राज विश्वकर्मा, महानगर अध्यक्ष विद्या सागर राय ।ट्रेन से उतर रहे यात्रियों को बुके दिया। गुलाब की कली और माला पहनाकर उनका स्वागत किया। यात्री भी भौंचक , कुछ ने पूछा ये क्या... साथियों ने बताया कि आप जिस स्टेशन पर उतरे हैं उसका नाम 'बनारस' है और 'बनारस' नाम के स्टेशन की आज दूसरी सालगिरह है।
ये सुनकर कुछ यात्रियों के मुंह से बरबस निकला ' इसी का नाम तो बनारस है'।
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