रोचेस्टर की डायरी 1
नई दिल्ली से शिकागो (अमेरिका ) का सफर 12000 किमी से भी अधिक लंबा है । 16 . 30 घंटे की अनवरत थकान वाली उड़ान के बाद शिकागो मेरी नजर के सामने था । शिकागो को मैं इससे ज्यादा नहीं जानता था कि यहां पर स्वामी विवेकानंद जी 1893 में आए थे और सर्व धर्म सम्मेलन में अपने संबोधन से लोगों को अभिभूत कर दिया था ।
मुझे अमेरिकी शहर रोचेस्टर जाने के लिए अगली उड़ान 6 घंटे बाद पकड़नी थी। यह दूसरी उड़ान सवा घंटे की थी । सोचा यह 6 घंटे एक अवसर के रूप में है। एयरपोर्ट के बाहर घूमकर इसका लाभ उठाते हैं। एयरपोर्ट से बाहर निकला तो सामने सड़क थी। मैं सड़क पार करने के तरीकों को समझ ही रहा था , तभी महिला ट्रैफिक पुलिसकर्मी ने मुझे अपनी ओर बुलाया और यातायात को रोक कर सड़क पार करने का अवसर दिया । जहां मैंने आसपास घूम कर कई तस्वीरें खींची। सुबह के 10:00 बज रहे थे और चमकदार धूप थी फिर भी हवा के कारण गलन महसूस हो रही थी ।
बिटिया और दामाद शिकागो एक-दो दिन पहले ही आ गए थे। यहां एयरपोर्ट पर उन्होंने हमारा स्वागत किया। फिर हम सभी एक साथ दूूसरे जहाज से रोचेस्टर पहुंचे। शाम होते-होते घर भी पहुंच गए थे । रास्ते की थकान इतनी ज्यादा थी कि भोजन करने के बाद सोने में देरी नहीं की।
रोचेस्टर
शहर अमेरिका के न्यूयॉर्क राज्य में अवस्थित है। न्यूयॉर्क से लगभग 550
किलोमीटर दूर यह नगर मेरी डॉक्टर बिटिया का निवास स्थान है । केवल सवा दो
लाख की आबादी वाला यह स्थान फूलों व झीलों के लिए अपनी पहचान रखता है ।
प्रदूषण का यहां नामोनिशान नहीं है । ऐसा लगता है जैसे जंगल में मकान बना
दिए गए हैं। पहली बार मैंने सेब के बागान देखे । देखे ही नहीं बल्कि खुद
पेड़ से तोड़कर रसीले सेब खाए । हमें देखने वाला कोई नहीं , जितना हम
बताएंगे उतना ही सेब का दाम लिया जाएगा। इस ईमानदारी की प्रशंसा तो करनी ही पड़ेगी।
(काशी के वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष पाण्डेय की कलम से)
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