ठीक एक साल पहले की बात है। सेना में लागू अग्निवीर योजना के विरोध में आदोलन अचानक भड़क गया था। बिहार में कई ट्रेनें फूंकी जा चुकी थीं। लगातार हिंसक उपद्रव के चलते वहां के कई जिलों में इंटरनेट बन्द कर दिया गया था।
रेल सेवा डिस्टर्ब थी, एटीएम पर असर पड़ा था, पुलिस वाहन फूंके जा रहे थे। ऐसे में मीडिया के सामने भी चैलेंज था। इत्तफाकन में बक्सर (घर) गया था और कुछ दिनों के लिए वर्क फ्रॉम होम कर रहा था।
17 जून की रात जब से इंटरनेट बन्द हुआ, दिमाग ने काम करना बंद कर दिया। अब कल जय होगा? काम तो करना था। अगले दिन कुछ स्थानीय रिपोर्टर्स को फोन किया तो सब रेलवे स्टेशन पर मौजूद थे। सुबह का काम किसी तरह हुआ। हालांकि एसएमएस सेवा चल रही थी, लेकिन व्हाट्सएप के जमाने में अधिकतर लोग इसे भूल चुके थे।
शाम हुई। काम का वक्त। बब्लू उपाध्याय ने कहा कि नाथ बाबा घाट चलते हैं, वहां यूपी का इंटरनेट पकड़ेगा। वहां गए, काम किया। तब तक डुमरांव में पुलिस जीप फूंके जाने की सूचना पर बबलू वहां चले गए। बक्सर के तमाम घाटों पर भीड़ थी। स्नान के लिए नहीं, इंटरनेट के लिए। पहले कभी ऐसी भीड़ तब होती थी, जब रात भर बिजली कट जाए और सुबह पानी की सप्लाई न हो। खैर वह दिन कट गया। उंस दिन नाथ सम्प्रदाय के बारे में कई अच्छी जानकारी मंदिर के प्रमुख श्रीनाथ जी से मिली।
अगली शाम पुलिस ने घाट खाली करवा दिया। बिना कोई कारण बताए। हालांकि ज8न पुलिस वालों की वहां ड्यूटी लगी, वे अपने मोबाइल में उलझ गए। निशांत कुमार, विकास विद्यार्थी सब ने पुल पार कर यूपी चलने का प्लान बनाया। पहले बीच पुल पर पालथी मारकर सभी बैठे, लेकिन वहां सिग्नल कमज़ोर था। फिर सभी भरौली (यूपी) चले गए। वहां पुल से उतरते ही भोजपुरी गायक गोपाल राय का दफ्तर है। वहीं बैठकर उसी दिन ही नहीं, बल्कि इंटरनेट सेवा बहाल होने तक काम हुआ। वहां किसी के पास एक्सक्लूसिव नहीं था, सामान्य सूचनाएं थीं, जो सबके सामने थीं। हालत ऐसी थी कि जिला प्रशासन के अधिकारी भी वही फ़ोन कर जानकारी ले रहे थे कि आंदोलन को लेकर क्या चल रहा है। चूंकि वे सरकारी बाबू थे, इसलिए उनके सामने कष्ट में काम करने की मजबूरी नहीं थी।
पहले दिन इंटरनेट के लिए घाट पर बैठे लोगों का वीडियो सबसे पहले मैंने सोशल मीडिया पर डाला। कई लोगों ने फोन किया कि इसे अपनी खबर में इस्तेमाल कर लें? कई ने बिना कहे ले लिया और काट-छांट कर चला दिया। खैर, यह वह समय था, जब आप एक्सक्लूसिव नहीं कर सकते थे, सिर्फ पहले या थोड़ी देर बाद कर सकते थे। आमतौर पर मोबाइल पर आए मेसेज को भी अपने साथियों से छुपाकर पढ़ने वाले पत्रकारों के कम्प्यूटर की स्क्रीन एक -दूसरे के सामने खुली पड़ी थी। (नवभारत टाइम्स नईदिल्ली से जुड़े देश के वरिष्ट पत्रकार नवीन कृष्ण की कलम से)
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