बात सन 1966 की है जब लखनऊ से मेरा तबादला उत्तर रेलवे के बड़ौदा हाउस में 6 महीने के लिए हो गया। वैसे तो दिल्ली के बारे में एक कहावत बहुत मशहूर थी कि अगर आपको दौड़ लगाना नहीं आता है तो आप दिल्ली में नहीं रह सकते हैं। इसका मतलब यह था कि दिल्ली की बसें बस एक दो सैकिंड के लिए रूकती हैं उसी में जो दौड़ लगाकर उसको पकड़ ले चढ़ जाए वही चढ़ सकता है। बड़ी हिम्मत जुटाई और सोचा कि दिल्ली से बाहर शकुरबस्ती में एक कमरा किराए पर ले लेते हैं और अपना वक्त रेलगाड़ी में काट लेते हैं। उस समय रोहतक से एक शटल चलती थी जिसका नाम था रोहतक शटल। उसी से हम शकूरबस्ती से चलते थे और तिलक ब्रिज पर उतर जाते थे। वहां से हजारों कर्मचारियों और अधिकारियों का काफिला अपने अपने ऑफिस के लिए चलता। बसों के कारण हमें कोई दिक्कत महसूस नहीं हुई। ग्यारह नम्बर की बस से ही हम सभी अपने-अपने आफिस आते जाते रहे। अवधि समाप्त होने पर लखनऊ वापिस आ गए।
अब दिल्ली में जब तबादला हुआ तो हर रविवार के दिन दिल्ली दर्शन के लिए निकल जाते। कभी जंतर-मंतर,कभी कुतुब मिनार कभी इंडिया गेट कभी कुछ और कभी कुछ। एक दिन की बात है कि हम बिरला मंदिर देखने के लिए गए। बहुत आनंद आया। अचानक देखा की एक और सीढ़ियां बनी हुई थी जिनके साइड में लिखा हुआ था स्वर्ग और नर्क। एक तीर का निशान ऊपर को बना हुआ था। समझ में आ गया के स्वर्ग और नर्क की झांकियां दिखाई गईं होगी । साहस कर ऊपर चढ़े तो क्या देखते हैं कि स्कूलों से फूट कर ढ़ेरों लड़के-लड़कियां साक्षात स्वर्ग नरक का दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे। कोई शर्म लिहाज़ नहीं थी। उलटे पांव वापस आ गये।
अभी चंद महीने पहले मेरे एक जानकार की बेटी ने दिल्ली के एक मशहूर कालेज में पढ़ाई करने के लिए बहुत जिद किया। उसने कहा अमुक कालेज का बहुत नाम है। मुझे उसी कालेज में पढ़ना है। मुझे अपना कैरियर बनाना है। आजकल बच्चे यह सोचते हैं कि स्कूल कालेज का बड़ा नाम है तभी कैरियर बनेगा। यह सब गोरखधंधा है। स्कूल कालेज और शिक्षा बोर्ड मिले होते हैं। मशहूर कालेज के बच्चों को कॉपी खाली होने पर भी बढ़िया नंबर मिलते हैं। इसी कारण से स्कूलों का नाम रोशन हो जाता है। जब बेटी ने बहुत तंग किया तो माता-पिता ने उस कॉलेज में मजबूरन दाखिला कराने की सोची। दुःखी माता पिता अचानक मुझसे बात कर बैठे। मैंने उन्हें कहा आप कृपया लड़की को दिल्ली भेजने से पहले मेरे पास ले आइएगा ताकि मैं उसे दिल्ली के बारे में कुछ मार्गदर्शन कर सकूं।
बहुत दौड़-धूप करके उस बेटी का उस नामी कॉलेज में एडमिशन करवा दिया गया। भेजने से पहले परिवार मुझे मिलने के लिए आया। मैंने अपनी ओर से उस बेटी को यथोचित नसीहत दे डाली। पहली नसीहत तो यह थी कि तुमने वहां की लड़कियों के साथ किसी भी प्रकार का कोई ऐसा संबंध नहीं बनाना कि कॉलेज से फूट करके मटरगश्ती की जाए। कॉलेज से सीधा हॉस्टल या जहां तुम एक कमरा लेकर दिया जा रहा है उसी के बीच आना जाना है। निर्भया कांड की याद दिलाते हुए मैंने उसे बताया की निर्भया अपने बॉयफ्रेंड के साथ रात का शो देखने के लिए गई थी और वह दोनों सड़क पर अकेले थे। उनकी मजबूरी को भांपते हुए कांड हो गया। मैंने उसे बताया कि हर कॉलेज स्कूल के बाहर ड्रग बेचने का रैकेट चलता है। कॉलेज की कैंटीन से जो कुछ भी चाहो खा लेना लेकिन कॉलेज के बाहर आइसक्रीम तक भी मत खाना।
बेटी ने बड़ी श्रद्धा से मेरी बात को सुना समझा। माता पिता बेटी को दिल्ली छोड़कर आ गए। उसके रहने का उचित प्रबंध कर दिया गया। कॉलेज की फीस वगैरह भर दी गई। अचानक एक दिन माता-पिता को फोन आया। बेटी ने कहा है मुझे आकर ले जाओ। माता पिता दिल्ली पहुंचे। बेटी ने बताया कि कॉलेज का नाम तो मैंने बहुत दिनों से सुना था परंतु असलियत उस समय सामने आई जब मैं कॉलेज में गई। कॉलेज में कई पीरियड्स में लेक्चरर आई ही नहीं और लड़कियां बड़े मजे से सिगरेट निकाल कर पी रही थीं। कईयों ने तो अपने बैग में दारू के पाउच भी रखे हुए थे। उसने बताया कि लड़कियों ने मुझे भी सिगरेट और दारु ऑफर किया। मैंने मना कर दिया। मना करने के कारण मुझे बैकवर्ड शब्द भी सुनना पड़ा। मैंने तो कॉलेज का नाम ही सुना था परंतु असली दर्शन हो गए। लड़कियां उसे बता रही थी कि हम लोगों के 95, 96, 97 प्रतिशत नंबर आ ही जाएंगे। यह जीवन तो मस्ती के लिए है। खूब मौज करो। उच्च प्रतिशत के कारण हमारा जीवन बढ़िया बन ही जाएगा। बेटी ने आकर मुझे धन्यवाद दिया की अंकल आपने मुझे पहले से ही सचेत कर दिया था नहीं तो मैं भी इसी जाल में फंस जाती। उस कालेज का इतना नाम है कि सभी प्रांतों की लड़कियां उसमें प्रवेश लेने आती हैं। कुछ मेरी तरह की बैकवर्ड लड़कियां ही छोड़ कर आ जाती हैं। बेटी ने कहा पैसा बर्बाद जरूर हो गया पर मैं बच गई।
बाल कृष्ण गुप्ता 'सागर
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