सोशल मीडिया ने कई पशु पक्षियों के बारे में आम लोगों की जानकारी बढ़ाने में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। अब जिन्हें प्राणि जगत और प्रकृति में अभिरुचि हैं, कई पक्षियों, सांपों और दीगर सरीसृपों को पहचानने लगे हैं। कई समूह हैं जो निरंतर जीव जन्तुओं पर जानकारी साझा करते हैं।
अब आप इस पक्षी के बारे में बताईये। क्या आप इसे पहचान पा रहे हैं? और इसके बारे में एक बहुत रोचक बात है - क्या आप जानते हैं? पहले आप बताईये फिर मैं इस पक्षी की पहचान और इससे जुड़ी एक बड़ी रोचक बात बताऊंगा।
अब आईये आपको इस पक्षी के बारे में बता ही देते हैं। मित्रों, यह पपीहे ( हाॅक कक्कू) का बच्चा है। हमारे पूर्वांचल के जिलों में पपीहे की पी कहां में विरहिणी की विरह वेदना की अनुगूंज है। वैसे हम हिन्दी भाषियों के लिए यह पी कहां बोलता है या मराठियों को वर्षा आगमन का संदेश पाओस आला कहकर देता है एक ध्वन्यालंकार है। जैसी हमारी भाषा बोली वैसे ही हम पपीहे की बोली को परिभाषित कर लेते हैं। वैसे ही जैसे पहले भाप इंजन वाली ट्रेन मानों यह कहते गुजरती थी कि छह छह पैसा चल कलकत्ता। पपीहे की एक दूसरी खूबी या खामी है कि इसकी मादा मातृत्व और वात्सल्य से सर्वथा विहीन है। यह कोयल की ही तरह दूसरे पक्षियों के घोसले में अंडे देते हैं। इस वीडियो में यह पपीहा शिशु चर्खियों /सत बहनियों /बैबलर द्वारा पाला जा रहा है। हमारे फोटो लेते समय वे उड़कर दूर चली गयीं हैं। और यह खाने की गुहार लगा रहा है। यह परभृत पक्षी शिशु एक उदर पिशाच से कम नहीं। अपने नीड़ के सह शिशुओं की तुलना में यह लगातार अनवरत खाना मांगने में दबंगई दिखाता है। जल्दी उड़ने लायक हो जाता है और एक दिन चर्खी परिवार को छोड़ यह बेवफा उड़ चलता है अपने मां बाप के देश। पक्षी जगत की इस विचित्र सी और पहेलीनुमा घटना को नीड़ परिजीविता कहते हैं। अब आप चौकस रहिएगा। यह अद्भुत घटना आपके इर्द-गिर्द भी घट रही होगी और आप अनजान हैं। खासतौर पर यदि आप ग्राम्य वासी हैं।
(बीएचयू के जीव-जंतु विशेषज्ञ डॉक्टर अरविंद मिश्र की कलम से)
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