दिल्ली की तपती दोपहरी में मैं तकरीबन रोज ही सत्तू की लस्सी बनाता हूं. इसको पीने के बाद जो तृप्ति मिलती है, वो वाकई खास होती है. इसका स्वाद, टैक्सचर और पेट में इसका ठंडा अहसास गजब का होता है. इसको मैं कैसे बनाता हूं, ये तो बताऊंगा लेकिन इसका जायका कैसे लगा, पहले सह जान लेते हैं.बनारस में नौकरी के दौरान कचहरी के पास सत्तू की लस्सी के तमाम ठेले लगते थे। दो दशक पहले की बात है, सत्तू को सतुआन के दिन खाने व दान करने की पारिवारिक परंपरा रही है। सत्तू की लस्सी एक दिन मेरे एक मित्र ठेले पर पिलाएं तो इसका जायका ऐसा लगा कि आदत पड़ गयी। डेड़ दशक पहले वह मित्र दिल्ली आ गए। संयोग से पिछले साल वह मुझे अपने फ्लैट पर ले गए। कुछ मिनट बाद जब वह लौटे तो उनके हाथ में सत्तू की लस्सी का गिलास देखकर पुरानी यादें ताजा हो गयी। दिल्ली में इसका स्वाद चखने का मौका मिला तो मजा आ गया। एक दिन करोलबाग वीकली ऑफ में घूमने गया तो ठेले पर भी इसका स्वाद मिला। स्वाद ठेठ देसी और मजेदार था. पीते ही पेट में जो ठंडापन और तृप्ति महसूस हुई वो अलग लगी. इसको पीने के बाद हो सकता है कि आप पेट को इतनी देर तक भरा हुआ महसूस करें कि लंच या डिनर स्किप कर दें, जैसा आजकल मेरे साथ होने लगा है.
सत्तू के साथ बचपन भी याद आता है जब 80 के दशक में ज्यादातर खानपान ठेठ देशज था. गांव से अनाज और तमाम चीजें आ जाती थीं. घर का स्टोर इनसे भरा होता था. ये रोज के जीवन में इस्तेमाल होते थे. तब तक परिवार इतनी तेजी से न्यूक्लियर फैमिली में नहीं बदले थे. आमतौर पर कंबाइड फैमिली होती थीं. संतकबीरनगर जिले के बेलहरकला गांव में जाने पर कई तरह के सत्तू खाने का आनंद मिलता था. सत्तू के राब (गन्ने के शीरे को जब कड़ाह में खौलाया जाता है तो ये बनता है) और नींबू के साथ बने मीठे शरबत के तो कहने ही क्या. भूख लगी हो बस सत्तू में पानी, नमक, भरवा मिर्च अचार का मसाला मिलाइए. हल्का गुंथिए. फिर प्याज और नींबू के साथ इसको खाने का आनंद लीजिए. ये फटाफट मैगी के आने से डेढ़ दो दशक पहले का दौर था.
अब लजीज सत्तू के नमकीन शरबत का आसान तरीका हाजिर है. बाजार से 250 ग्राम जौ और 250 ग्राम चने का सत्तू खरीद लाइए. आटा चक्कियों पर ये ज्यादा फ्रेश और बेहतर क्वालिटी का मिल जाएगा. बाकि तो आजकल ये डिपार्टमेंटल स्टोर में भी मिलने लगा है.
अब प्याज, भुने जीरे का पाउडर, नींबू, काला नमक, हरी मिर्च और साधारण नमक ले लीजिए. घर में अमूमन दो गिलास ऐसा शरबत बनाने के लिए मैं एक बर्तन में दो बड़े चम्मच जौ का सत्तू और दो बड़े चम्मच चने का सत्तू डालता हूं. इसमें आधा चम्मच भुने जीरे का पाउडर मिला दीजिए. स्वाद के अनुसार काला नमक और साधारण नमक. भुने जीरे का पाउडर सौंधापन देता है. चने का सत्तू सौंधेपन और खास स्वाद की ठसक.
अब आधा छोटा प्याज बहुत पतला पतला काटिए. एक हरी मिर्च लेकर बारीक काटिए. चाहिए तो इसे मर्तबान में कूच लीजिए. इसे भी सत्तू, जीरा पाउडर और नमक के मिश्रण में मिलाइए. अब सबसे जरूरी चीज, जो इस शरबत में जान डालेगा, वो है नींबू. एक से डेढ नींबू का रस निकालिए. उसे भी मिला दीजिए. करीब एक गिलास सादा पानी इसमें डालें और अच्छे से मिला दें. सादा पानी डालने से सत्तू की गांठें नहीं बनेंगी. इसे दो खाली गिलास में डिवाइड करें. ऊपर से आइस क्यूब के 04-05 टुकड़े गिराएं. अब दोनों गिलासों में ऊपर तक ठंडा चिल्ड पानी मिलाकर इसे चम्मच से हिला लें.
लीजिए गर्मी में तन-मन को सुकून देने वाला सत्तू की लस्सी तैयार है. इसे पीजिए और गर्मी में परेशान करती गर्मी को इसके साथ कम करिए.
सत्तू के इतिहास के बारे में कई कहानियां हैं. कहा जाता है कि इसकी शुरुआत तिब्बत से हुई. वहां रहने वाले बौद्ध भिक्षु ज्ञान की तलाश में दूर देशों की यात्राएं किया करते थे, इसलिए वो खाने के लिए सत्तू का इस्तेमाल करते थे. वो लोग इसे Tsampa कहते थे. मुस्लिम धर्म ग्रंथ कुरान में भी सत्तू (जौ का सत्तू) का ज़िक्र किया गया है. यह भी बताया जाता है कि कारगिल युद्ध में भी सत्तू ने सैनिकों का पेट भरने में अहम भूमिका निभाई थी. साथ ही, कई लेखकों ने यह भी लिखा है कि वीर शिवाजी ने भी गौरिल्ला युद्ध के समय अपनी सेना के सैनिकों को सत्तू खाने के लिए दिया था.
फूड हिस्टोरियन केटी अचाया अपनी किताब "ए हिस्टोरिकल कंपेनियन इंडियन फूड" में लिखते हैं कि प्राचीन भारत में आमतौर पर लोग जौ और चने का ही इस्तेमाल करते थे. वो इसे पीसकर भी खाते थे और भूनकर सत्तू बनाकर भी. सत्तू खाने से लू नहीं लगती. शरीर ठंडा रखता है.
ये प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम और आयरन से भरपूर होता है. एसिडिटी या गैस की दिक्कत दूर करता है. वजन कंट्रोल में रहता है.
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